तमाम प्रयासों के बावजूद आधे मतदाता वोट डालने ही नहीं पहुंचे, क्या है कम वोटिंग का कारण ?

पार्षद और महापौर बनने के लिए प्रत्याशियों ने पूरी ताकत झोंक दी। इस शहर और वार्ड स्तरीय चुनाव में ही प्रत्याशियों ने लाखों रुपए पानी की तरह बहा दिया। प्रचार के अलावा कथित तौर पर लाखों रुपए नगद, शराब, साड़ी, पायल बांटे गए, लेकिन मतदाताओं पर इसका कोई असर नहीं हुआ।

बिलासपुर में केवल 51.37 प्रतिशत मतदाताओं ने ही अपने मताधिकार का प्रयोग किया। सुबह से ही मतदान की गति धीमी रही और शाम 5:00 बजे तक इसमें कोई खास परिवर्तन नहीं हुआ। बिलासपुर के 5 लाख से अधिक मतदाताओं में 52.48% पुरुषों और 50.39% महिलाओं ने ही वोटिंग किया। हालांकि ग्रामीण क्षेत्रों में स्थिति कुछ बेहतर नजर आई ।
तखतपुर में 74.30% , रतनपुर में 72.03% , बोदरी में 70.60% , बिल्हा में 74.76 प्रतिशत, कोटा में 69.88% और मल्हार में 64.26% प्रदान हुआ। बिलासपुर जिले में कुल 54.41% मतदान हुआ।

क्यों हुआ कम मतदान

इससे पहले लोकसभा और विधानसभा चुनाव में मतदाता जागरूकता के लिए जिला प्रशासन ने कई प्रोग्राम चलाएं, जिस कारण से वोटिंग प्रतिशत में इजाफा हुआ था। नगरीय निकाय चुनाव में इस तरह के प्रयास अधिक नहीं हुए । तो वहीं यह भी माना जा रहा है कि बिलासपुर के नागरिकों का अपने पार्षद और महापौर से विश्वास उठ चुका है। वे समझ चुके हैं कि किसी भी दल के पार्षद को अवसर दे भी दे, तो वह वार्ड की तरक्की के लिए कुछ नहीं करता। उसके लिए जन समस्या की बजाय स्वयं का विकास करना प्राथमिकता होता है। यही कारण है कि लोगों में अब पार्षद और महापौर प्रत्याशी को लेकर कोई उत्साह नहीं बचा।
बिलासपुर में भाजपा ने महापौर के तौर पर महिला प्रत्याशी को मैदान में उतारा लेकिन आधी महिलाओं ने घर से निकलकर वोट डालना भी जरूरी नहीं समझा। यही स्थिति पुरुषों की भी रही। आधे लोग वोट डालने ही नहीं पहुंचे ।

कम मतदान प्रतिशत का परिणाम पर क्या होगा प्रभाव

जाहिर तौर पर मतदान का प्रतिशत कम होने से अब कांटे की टक्कर देखने को मिलेगी ।अधिकांश वार्डो में आधे मतदाताओं ने ही मताधिकार का प्रयोग किया है। ज्यादातर वार्डों में कांग्रेस और भाजपा के बीच मुकाबला है तो कहीं मुकाबला त्रिकोणीय और चतुष्कोणीय भी है । अधिक प्रत्याशियों के करण वोट बटेंगे और जीत का अंतर बेहद मामूली होगा।
बिलासपुर में महापौर के लिए भी कांटे की टक्कर होने की संभावना है। जीत का अंतर 1 या 2% का ही हो सकता है ,जिस कारण सभी प्रत्याशियों के चेहरे पर चिंता की लकीर देखी जा रही है और कोई भी अपनी जीत को लेकर आश्वस्त नहीं है।

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