सनातन मान्यताओं में अगर कोई व्यक्ति अपने जीवन में चार धाम की यात्रा पूर्ण कर लेता है तो वह जीवन- मरण के चक्र से मुक्ति पा लेता है। मान्यता यह भी है कि जो व्यक्ति केदारनाथ ज्योतिर्लिंग के दर्शन कर जल ग्रहण करता है वह पुनर्जन्म के चक्र से भी मुक्त हो जाता है। यही कारण है कि हर सनातनी का सपना होता है कि वह जीवन में कम से कम एक बार चार धाम की यात्रा अवश्य करें, साथ ही 12 ज्योतिर्लिंगों की यात्रा भी इसी जीवन में संपन्न हो जाए तो इससे सुखद और क्या हो सकता है।
कौनसे हैं ये चार धाम
वैसे भारत में चार धाम की परिभाषा थोड़ी भिन्न है। आदि शंकराचार्य ने देश के चार कोनों में चार धाम की स्थापना की थी जो क्रमशः उत्तराखंड में स्थित बद्रीनाथ धाम, गुजरात में स्थित द्वारकाधीश धाम, उड़ीसा में स्थित जगन्नाथ पुरी धाम और तमिलनाडु में स्थित रामेश्वर धाम है । तो वही उत्तराखंड के भी चार धाम है। जिसमें बद्रीनाथ धाम, केदारनाथ धाम, गंगोत्री धाम और यमुनोत्री धाम शामिल है। इन्हें उत्तराखंड के चार धाम कहा जाता है। यह भी हिंदू धर्म में बहुत पवित्र माने जाते हैं । बद्रीनाथ धाम भगवान विष्णु को समर्पित है तो वहीं केदारनाथ धाम में भगवान शिव विराजमान है। गंगोत्री धाम से गंगा नदी का उद्गम होता है तो वहीं यमुनोत्री धाम यमुना का उद्गम स्थल है । इन्ही पवित्र धामो की यात्रा कर दास परिवार इस मंगलवार को वापस शहर पहुंचा तो उनका तिलक आरती कर स्वागत किया गया।
बिलासपुर सरकंडा क्षेत्र के पाटलिपुत्र नगर में रहने वाले नरेंद्र दास और डॉक्टर धर्मेंद्र कुमार दास की माता जी श्रीमती श्यामा दास की बरसों पुरानी इच्छा थी कि वे अपने परिवार के साथ उत्तराखंड के चार धाम की यात्रा करें। दास परिवार के अधिकांश सदस्य पहले ही अन्य चार धाम और प्रायः प्रायः सभी ज्योतिर्लिंगों की पवित्र यात्रा कर चुके हैं ।
इस बार उत्तराखंड के चार धाम की यह यात्रा नवरात्र के पवित्र अवसर पर 5 अक्टूबर को आरंभ हुई। बिलासपुर से वायु मार्ग से दास परिवार की तीन पीढ़ी सबसे पहले देहरादून पहुंची। इसमें श्रीमती श्यामा दास, नरेंद्र दास , रूपम दास, डॉक्टर धर्मेंद्र कुमार दास, वर्षा दास के साथ तीसरी पीढ़ी का प्रतिनिधित्व समृद्धि दास ने किया। यह सभी देहरादून से हेलीकॉप्टर से सबसे पहले यमुनोत्री धाम पहुंचे, जहां दर्शन पूजन के बाद अगले दिन ये सभी गंगोत्री गए।
जमुना जी के दर्शन के बाद अगले दिन देश के सबसे पवित्र नदी गंगा जी के उद्गम स्थल के दर्शन, गंगा स्नान, पूजन आदि के बाद पवित्र गंगाजल लेकर यह सभी दुर्गम केदारनाथ धाम पहुंचे। अन्य सभी भक्तों की तरह दास परिवार के सदस्यों के लिए भी यह किसी सपने के सच होने जैसा था। वहां के मनोरम और अलौकिक वातावरण से सभी मंत्र मुग्ध रह गए। भगवान केदारनाथ के दर्शन के पश्चात रात में रुद्राभिषेक का भी सौभाग्य प्राप्त हुआ। केदारनाथ में भैरव बाबा के भी दर्शन हुए। इन सभी तीर्थ यात्रियों ने केदारनाथ में पवित्र भीम शिला के भी दर्शन किये। कभी इसे नारद शीला कहा जाता था। 2013 में उत्तराखंड में आई भीषण बाढ़ के दौरान भीम शिला ने केदारनाथ मंदिर की रक्षा की थी। तब से 15 फीट लंबी, 10 फीट चौड़ी और 500 टन वजनी यह शीला भी पूजनीय हो गई।
इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन के साथ ही दास परिवार के अधिकांश सदस्यों की 12 ज्योतिर्लिंग के दर्शन संपूर्ण हुए। केदारनाथ के दर्शन के बाद अगले दिन यह सभी पवित्र बद्रीनाथ धाम पहुंचे। बद्री बाबा के दर्शन, आराधना के बाद सभी छह तीर्थ यात्री पवित्र नगरी हरिद्वार पहुंचे। जहां हर की पौड़ी में गंगा स्नान , चंडी देवी मंदिर दर्शन , मनसा देवी दर्शन, गंगा आरती में सम्मिलित होने के बाद अगले दिन ऋषिकेश जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। जहां पवित्र गंगा नदी में स्नान, गंगा आरती में सम्मिलित होने के साथ लक्ष्मण झूला, जानकी माता झूला के भी दर्शन हुए। करीब 10 दिनों तक भारत के विविध पवित्र तीर्थ स्थलों की उत्तराखंड चार धाम यात्रा कर यह सभी मंगलवार सुबह बिलासपुर पहुंचे, जहां पाटलिपुत्र नगर में रहने वालों ने फूल वर्षा कर तीर्थ यात्रियों का स्वागत किया। उनके पांव पखारे गए। आरती उतार कर श्रीफल प्रदान कर स्वागत किया गया।
श्रीमती श्यामा दास की बरसो की आस थी कि वे उत्तराखंड के चार धाम की पवित्र तीर्थ यात्रा पूर्ण करें। उनके सुपुत्र नरेंद्र दास और डॉक्टर धर्मेंद्र दास के साथ बहु रूपम दास और वर्षा दास के साथ उनकी यह इच्छा पूर्ण हुई। यह खुशी इसलिए दोहरी हो गई कि दादी के साथ साथ उनकी पोती समृद्धि दास ने भी सनातन मान्यताओं के पवित्र चार धाम की यात्रा संपूर्ण की है।
प्राचीन काल में तीर्थ यात्रा कठिन और असाध्य माने जाते थे और बहुत कम लोगों को ही इसे पूर्ण करने का सौभाग्य मिलता था। वर्तमान में तमाम सुविधा उपलब्ध होने के बाद भी बहुत कम सौभाग्यशाली लोग होते हैं जो चार धाम और 12 ज्योतिर्लिंग की यह यात्रा संपूर्ण कर पाते हैं। दास परिवार के तीन पीढ़ी ने एक साथ यह तीर्थ यात्रा पूरी कर अपने जीवन के सबसे यादगार पलो को अपनी स्मृति में हमेशा के लिए कैद कर लिया है।
तस्वीरों में यात्रा वृतांत