इस बार शारदीय दुर्गा पूजा के अवसर पर अष्टमी और नवमी की तिथि एक ही दिन रही, इसलिए शुक्रवार को ही हवन, कन्या पूजन किया गया। शारदीय नवरात्रि का पर्व पूरे भक्ति भाव और विधि विधान के साथ मनाया गया। शुक्रवार को संयुक्त रूप से महाष्टमी और महानवमी तिथि रही। शनिवार प्रातः ही महानवमी तिथि संपन्न हो जाने के कारण शुक्रवार को ही दुर्गा नवमी मनाई गई । इस अवसर पर मां बगलामुखी की विशेष आराधना और उपासना की गई।
मां बगलामुखी की आराधना सिद्धिदात्री देवी के रूप में की गई। इस दिन मंदिर में महादेव का रुद्राभिषेक किया गया। महाकाली, महालक्ष्मी महा सरस्वती की षोडश मंत्रो द्वारा पूजा अर्चना की गई। महानवमी के पावन अवसर पर पीतांबरा मां बगलामुखी देवी का विशेष पूजन, श्रृंगार किया गया। यहां शुक्रवार को कन्या पूजन, कन्याभोज और भंडारे का भी आयोजन हुआ। मंदिर के आचार्य दिनेश महाराज और यजमानों ने छोटी-छोटी कन्याओं का पूजन कर उन्हें तिलक लगाया। उन्हें भोजन कराकर उन्हें दक्षिणा प्रदान की ।
सनातन परंपराओं में नारी को देवी स्वरूप माना गया है। मान्यता है कि छोटी-छोटी कन्याओं में स्वयं मां दुर्गा वास करती है। इसलिए देवी को प्रसन्न करने के लिए इन्हीं कन्याओं को पूजा जाता है। कन्याओं की पूजा देवी के नौ रूपों की पूजा का एक हिस्सा है। ये कन्या , देवी दुर्गा की शक्ति का प्रतीक है और उनकी पूजा करने से घर में शक्ति और सुख की वृद्धि होती है। यह शुभता और मंगल का भी प्रतीक है। इस अवसर पर कन्याओं के पैर धोकर उनके प्रति आदर और सम्मान का भाव प्रस्तुत किया गया। उन्हें भोजन करा कर उपहार दिए गए। सनातन धर्म ही एकमात्र ऐसा धर्म है जहां कन्याओं का ऐसा सम्मान होता है।
श्री बगलामुखी त्रिदेव मंदिर के पीठाधीश्वर आचार्य दिनेश महाराज ने बताया कि 12 अक्टूबर शनिवार सुबह 10:58 पर नवरात्रि का विसर्जन किया जाएगा । तत्पश्चात विजयादशमी के पावन पर्व पर अपराजिता पूजा , शमी पूजा , शस्त्र पूजा का आयोजन किया जाएगा। इसके साथ ही शारदीय नवरात्र का पर्व संपन्न होगा।