पुस्तक समीक्षा क्या इस्कॉन विदेशी संस्था है??

संजय अनंत


इस्कॉन से जुड़ी अनेक भ्रान्तियो को दूर करती, इस्कॉन के सनातन धर्म की विश्व व्यापी बनाने में योगदान की अनकही, अनसुनी सत्य कथा और अथक शोध के बाद लिखी संजय अनंत की यह कृति
संजय अनंत जी देश के जाने-माने कवि, कथाकार, फिल्म समीक्षक और आलोचक हैं| वे हमारे द फिल्म फाउंडेशन ट्रस्ट के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पद को भी सुशोभित कर रहे हैं| अनंत जी ने इस्कॉन अर्थात अंतर्राष्ट्रीय श्रीकृष्ण भावनामृत संघ पर एक उत्कृष्ट पुस्तक ‘वैश्विक सनातन संस्कृति : साकार होते स्वप्न’ शीर्षक से लिखी है, जो इस्कॉन के महत्त्वपूर्ण कार्यों को समझने हेतु अपरिहार्य ग्रंथ है| इसकी भूमिका लिखने का सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ है| प्रस्तुत है मेरे द्वारा लिखी भूमिका-
सनातन के वैश्विक स्वरूप इस्कॉन को जानने हेतु अपरिहार्य ग्रंथ
चिरकाल से भारत में विधर्मियों ने आकर छल, बल, प्रलोभन और मृत्यु भय दिखाकर सनातनियों को विधर्मी बनाने के कुत्सित और घृणित प्रयास किए हैं| सम्पूर्ण सिक्ख पंथ इस्लामिक क्रूरता के आगे डटकर खड़े होने और उनका पूर्ण शक्ति के साथ मुकाबला करने की अमर कथा है| मराठों तथा राजपूतों ने भी अपने अपरिमित शौर्य से इस्लाम की आँधी को रोकने में महती भूमिका का निर्वहन किया| इसी प्रकार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवकों ने विगत सौ वर्षों से मुस्लिम तथा ईसाइयत की धर्मांतरण की दुरभिसंधि का सुदूर ग्रामीण एवं आदिवासी क्षेत्रों में रहकर न सिर्फ प्रतिरोध किया, वरन भटके हुए लोगों को पुनः सनातनी बनाने मे महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया| इसी प्रकार स्वामी विवेकानंद जी ने अनेक विदेशी धर्मानुयायियों को सनातन धर्म की ओर आकृष्ट किया| इन सभी महत्त्वपूर्ण प्रयासों के साथ आवश्यकता इस बात की थी कि कोई जादुई व्यक्तित्व आकर विदेशों में विधर्मियों के मध्य उसी प्रकार सनातन धर्म को प्रतिष्ठित करे, जिस प्रकार ईसाई मिशनरी तथा सूफ़ी और मौलवी किया करते हैं|
श्रील प्रभुपाद ने 69 वर्ष की उम्र में एक मालवाहक जहाज में बैठकर सन 1965 में भारत से अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर की ओर प्रस्थान किया, रास्ते में उन्होंने दो बार हृदयाघात का सामना किया, किन्तु प्रखर जिजीविषा के बल पर इससे उबरकर 35 दिनों में वे अमेरिका पहुँचने में सफल रहे, जहाँ उन्हें अनेक दुश्वारियों का सामना करना पड़ा, किन्तु इनसे विचलित हुए बगैर वहाँ रहकर उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय कृष्ण भावनामृत संघ अर्थात (International Society For Krishna Consciousness) की स्थापना की, जिसे आज हम इस्कॉन के नाम से दुनिया भर में जानते और पहचानते हैं| उन्होंने इस सोसाइटी के गठन का उद्देश्य ‘विश्व में मूल्यों के असंतुलन की जाँच करना तथा वास्तविक एकता एवं शांति हेतु कार्य करना’ घोषित किया| तदुपरांत अगले ग्यारह वर्षों तक अर्थात 80 वर्ष की उम्र तक उन्होंने विश्व के चौदह स्थानों पर जाकर भगवान श्रीकृष्ण के पावन संदेशों के माध्यम से विश्व को मूल्यपरक तथा शांतिमय जीवन-यापन हेतु आदर्श स्थल बनाने का उपक्रम किया| ध्यातव्य है कि जिस उम्र में सामान्य व्यक्ति थककर घर बैठ जाया करते हैं, उस उम्र में उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण के भावनामृत को विश्व में प्रसारित करने का गोवर्धन पर्वत उठाया और उसके माध्यम से पश्चिमी सभ्यता के इन्द्र का गर्व चूर्ण किया|
श्रीकृष्ण कर्म, योग और प्रेम के साक्षात आधार हैं तथा अन्याय के विरुद्ध सदैव युद्धरत व्यक्तित्व के साक्षात प्रतीक हैं| कंस से लेकर कौरवों तक तथा अपने स्वजन के विरुद्ध भी अति आवश्यक होने पर वे न्याय के पक्ष में जाकर खड़े होते हैं| वे वास्तव में विश्व में मूल्यों के असंतुलन को निर्मूल करने वाले हैं तथा एकता और शांति के दूत के रूप में अंतिम क्षण तक युद्ध को टालने के लिए प्रयासरत दिखाई देते हैं, अतः भगवान श्रीकृष्ण की उपासना को आधार बनाकर मूल्यपरक एवं शांतिमय विश्व की दिशा में सहज ही अग्रसर हुआ जा सकता है, इस तथ्य को श्रील प्रभुपाद जी ने अपनी दूरदर्शी दृष्टि से पहचान लिया था और विश्व भर में फैले 800 से अधिक इस्कॉन के मंदिर उनकी इस अभूतपूर्व सोच को साकार करने की दिशा में सार्थक योगदान कर रहे हैं|
सनातन संस्कृति ‘सर्वे भवन्ति सुखिनः सर्वे संतु निरामया’ तथा ‘वसुधैव कुटुंबकम’ की पावन विचारधारा की अनुगामी रही है और समस्त सनातन परंपरा इन्हीं पर आधृत रही है| इसी कारण से इस्कॉन के कार्यों में संलग्न रहकर साधक और भक्त मानसिक शांति तथा आंतरिक ऊर्जा के प्रस्फुटन के लिए भक्ति योग तथा कीर्तन का नित्य अभ्यास करते हैं| भौतिक आवश्यकताओं की अभिपूर्ति के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए इस्कॉन भुखमरी को विश्व से उन्मूलित करने हेतु ‘अन्नपूर्णा’ अथवा ‘जीवन के लिए भोजन कार्यक्रम (Food For Life Programme), पर्यावरण हितैषी ग्रामों की स्थापना करना और गौ सेवा के माध्यम से इस कार्य में सहयोग देना एवं आधुनिक शिक्षा प्रदान करना जैसे अनेक कार्यक्रम विश्व भर में फैले अपने मंदिरों तथा केंद्रों के माध्यम से संचालित करता है|
संजय ‘अनंत’ जी देश के जाने-माने कवि, लेखक और विचारक हैं, जिनकी लेखनी सनातन संस्कृति की विशिष्टता तथा महत्ता को सदैव शब्द देती रही है| उन्होंने समय-समय पर अपनी कविताओं, कहानियों एवं लेखों के माध्यम से अपनी इस पुनीत विचार सरणि को विश्व के समक्ष रखा है| ‘इस्कॉन : सनातान का विश्व रूप’ ग्रंथ में अनंत जी ने युद्धरत यूक्रेन की भयावह दशा-दुर्दशा के चित्रांकन से प्रारंभ करते हुए इस्कॉन के महामंत्र ‘हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे, हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे’ बोलते और यूक्रेनवासियों को फूड फॉर लाइफ कार्यक्रम के तहत निःशुल्क भोजन वितरित करते इस्कॉन के साधकों का सजीव चित्र उकेर दिया है| वस्तुतः यही भारतीय संस्कृति और सनातन लोक की संकल्पना है, जिसे यूक्रेन में अपनी जान की परवाह किए बगैर कृष्णभक्त सफलतापूर्वक साकार कर रहे हैं| इसके पश्चात वे विश्व भर के ईसाई, मुस्लिम बाहुल्य देशों के इस्कॉन मंदिरों की चर्चा करते हुए मनुष्यता के सही स्वरूप को हृदयंगम करने वाले श्रील प्रभुपसाद जी तथा इस्कॉन की वैचारिकी की चर्चा करते हैं|
संजय ‘अनंत’ जी ने अत्यंत व्यवस्थित ढंग से सनातन के वैश्विक आयाम के रूप में इस्कॉन के उभार की चर्चा की है तथा स्पष्ट किया है कि ईसाइयत की भोगवादी एवं हिटलर तथा इस्लाम की स्वयं को सर्वश्रेष्ठ घोषित कर शेष को अनार्य अथवा काफिर मानने की क्षुद्र मानसिकता का समाधान सनातन धर्म की व्यापकता और विराटता का वट वृक्ष ही कर सकता है, जो बलपूर्वक धर्मांतरण नहीं करता, निर्दोषों पर अत्याचार नहीं करता और सम्पूर्ण विश्व के कल्याण की पावन सोच को जाग्रत रखता है|
आज जब हम सोशल मीडिया पर इस्कॉन मंदिर के विषय में खोज करते हैं तो अनेक मूर्खतापूर्ण तथा असत्य संभाषण से युक्त जानकारी हमें परोसी जाती है, जो श्रीकृष्ण भक्तों के इस महान संगठन को कलुषित करने की दुरभिसंधि है, जिसमें देश-विदेश की अनेक मानवताद्रोही धार्मिक, राजनैतिक तथा भारतद्वेषी संस्थाएँ जोर-शोर से लगी हुई हैं, ताकि विश्व में इस्कॉन और प्रकारांतर से सनातन संस्कृति को विकृत घोषित करने में सफलता प्राप्त की जा सके और धर्मप्राण सनातनियों के मन में भी इस्कॉन और सनातन संस्कृति के प्रति शंका के विष बीज बोए जा सकें| अनेक धर्मशील सनातनी भी इनके दुष्प्रचार से प्रभावित होकर इस्कॉन के विषय में गलत तथा झूठी बातों को ही सच मान लेते हैं| इससे अनजाने में ही वे सनातन धर्म को क्षति पहुँचाने का कार्य करते हैं| संजय ‘अनंत’ जी की यह पुस्तक इस्कॉन के विरुद्ध पैदा किए गए संदेहों का निराकरण करती है तथा युद्ध, भूख, अशान्ति और दुःख से आक्रांत विश्व मानवता के लिए इस्कॉन की वास्तविक देन को हमारे समक्ष रखने का कार्य करती है| वे बांग्लादेश के ढाका में स्थित इस्कॉन मंदिर को अपवित्र करने तथा इसमें तोड़फोड़ किए जाने, इसके मुख्य पुजारी की नृशंस हत्या किए जाने की चर्चा कर इसी विद्वेष और दुरभिसंधि की ओर संकेत करते हैं|
समीक्ष्य पुस्तक में विद्वान लेखक ने विश्व के अनेक महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों के इस्कॉन से जुड़ाव को रेखांकित किया है तथा उनके द्वारा इस्कॉन की विचारधारा को आगे बढ़ाने में किए गए महत्त्वपूर्ण कार्यों की विशद चर्चा की है| इनमें हंगरी के पीटर लीटेल उपाख्य शिवराम स्वामी जी, श्रील प्रभुपाद जी के अमेरिकी शिष्य कीर्तनानन्द जी, फोर्ड फाउंडेशन के संस्थापक अल्फ्रेड फोर्ड आदि के महत्त्वपूर्ण योगदान और इस्कॉन के कारण उनमें सनातन संस्कृति के प्रति जन्मे अटूट अनुराग की चर्चा करते हुए अनंत जी सभी का आह्वान करते हुए लिखते हैं, “ इस्कॉन आपको बुला रहा है….क्यों चिंतित हो भाई, छोड़ो सब, आओ हमारे साथ….क्या लेकर आए थे और क्या लेकर जाओगे….इस संसार का अच्छा-बुरा सब यहीं एक दिन छूटना है|”
उपर्युक्त उद्धरण से यह स्वतः सुस्पष्ट है कि अनंत जी की भाषा में सरलता, सुबोधता और प्रवाहमयता है, जिससे वे पाठक को सहज ही अपनी ओर आकृष्ट कर लेते हैं| उनकी प्रस्तुतीकरण शैली में चुंबकीय आकर्षण है, इससे जो पाठक उन्हें पढ़ना प्रारंभ करता है, वह पुस्तक को पूर्ण किए बगैर छोड़ नहीं सकता| यही एक सफल लेखक की कसौटी है और कहने की आवश्यकता नहीं कि अनंत जी इस कसौटी पर कसकर सोने की भांति खरे सिद्ध होते हैं|
हिंदी के पाठकों को इस्कॉन जैसे महत्त्वपूर्ण और सनातन संस्कृति के वैश्विक उत्कर्ष के केंद्र बिंदु से अवगत कराने में यह पुस्तक प्रकाश स्तम्भ का कार्य करेगी, इसमें कोई संदेह नहीं है| मैं संजय ‘अनंत’ जी को इस महत्त्वपूर्ण और अपरिहार्य ग्रंथ के प्रणयन हेतु बधाई देता हूँ और आशा करता हूँ कि यह ग्रंथ इस्कॉन के विषय में उत्थित भ्रमपूर्ण तथा मिथ्या संदेहों का निराकरण करेगी तथा इस्कॉन के वैश्विक स्वरूप को सम्मुख लाने का कार्य करेगी|
प्रो. पुनीत बिसारिया आचार्य एवं पूर्व अध्यक्ष-हिंदी विभाग और शिक्षा संस्थान,बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय, झाँसी तथा अध्यक्ष-द फिल्म फाउंडेशन ट्रस्ट, नई दिल्ली

यह लेखक के निजी विचार है।  इससे S भारत न्यूज़ का सहमत होना आवश्यक नहीं है।

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