16 जून महान पार्श्वगायक हेमंत कुमार की जयंती पर विशेष लेख संजय अनंत की कलम से

आप में से बहुत कम लोग ये जानते होंगे हिन्दी और बांग्ला के महान पार्श्व गायक संगीतकार हेमन्त कुमार बनारसी थे यानि काशी वासी । उनका जन्म काशी के बंगाली टोला में हुआ और बचपन भी काशी में ही बीता ।2020 उनके जन्मदिन शताब्दी वर्ष पर हेमन्त दा की स्मृति मे,टाइम्स ऑफ़ इंडिया ने एक आलेख प्रकाशित किया था, जिस मे उनके तमिल फ़िल्म मे उनके दिए संगीत को याद किया गया था सादगी की प्रतिमूर्ति हेमंत कुमार के विषय में प्रख्यात संगीत निर्देशक सलिल चौधरी की ये टिप्पणी अति महत्वपूर्ण है , उनकी महानता व विलक्षण आवाज़ के लिए ”If God ever decided to sing, he would do so in the voice of Hemant Kumar.” | गहरी किन्तु प्रेम से परिपूर्ण मखमली आवाज़ ,जो उन्हें अन्य गायकों से भिन्नता प्रदान करती है , सचमुच ईश्वर की आवाज़ | पूरा बंगाल तो हेमंत दा का दीवाना था और है। हिन्दी वालो के हेमंत कुमार और बांग्ला भाषी जनो के हेमंता | रवीन्द्र संगीत उनके बिना अधुरा है | उनको हिंदी में सबसे ज्यादा उपयोग किया गुरुदत्त ने । उनकी लगभग सभी क्लासिक फिल्मो में हेमंत कुमार का संगीत अवश्य रहा। फिल्म प्यासा का गुरुदत्त पर फिल्माया जाने वो कैसे लोग थे जिनके प्यार को प्यार मिला …. हिन्दी का क्लासिक “ये नयन डरे डरे…” का मूल बांग्ला गीत इसी धुन में हेमंत दा का गाया
एइ रात तोमार आमार ओइ चाँद तुमार आमार…. खूब मिष्ठी… मुझे बहुत पसंद है ।हिंदी में जितना गाया सब का सब कालजयी है | उनके गैर फ़िल्मी गीतो का दुर्लभ संग्रह मेरे पास है | ” तुम पुकार लो .” या ” ये नयन डरे डरे …” या ” ये रात ये चांदनी फिर कहा …” या ” जाने वो कैसे लोग थे जिनके…” सब इतना मधुर , उम्दा | आँखे बंद कर उनके गीत सुनिए , आप भावनाओ के सागर में गोते लगाएगे| यदि आखे नम हो जाए तो समझना हेमंत दा गीतों के शब्दों ने ह्रदय को छुआ….ये रहा हेमन्त दा गाया मेरा मनपसंद गीत….

ये रात ये चाँदनी फिर कहाँ
सुन जा दिल की दास्ताँ
ये रात…

पेड़ों की शाखों पे सोई सोई चाँदनी
तेरे खयालों में खोई खोई चाँदनी
और थोड़ी देर में थक के लौट जाएगी
रात ये बहार की फिर कभी न आएगी
दो एक पल और है ये समा, सुन जा…

लहरों के होंठों पे धीमा धीमा राग है
भीगी हवाओं में ठंडी ठंडी आग है
इस हसीन आग में तू भी जलके देखले
ज़िंदगी के गीत की धुन बदल के देखले
खुलने दे अब धड़कनों की ज़ुबाँ, सुन जा…

जाती बहारें हैं उठती जवानियाँ
तारों के छाओं में पहले कहानियाँ
एक बार चल दिये गर तुझे पुकारके
लौटकर न आएंगे क़ाफ़िले बहार के
आजा अभी ज़िंदगी है जवाँ, सुन जा…
संजय ‘अनंत ‘ ©

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