आज आयोजित प्रेसवार्ता के दौरान डॉ रेड्डी ने बताया सामान्य तौर पर, बच्चों में कैंसर असामान्य है। कैंसर से पीड़ित बच्चों और उनके परिवारों की विशेष ज़रूरतें होती हैं जिन्हें बच्चों के कैंसर सेंटर में सबसे अच्छी तरह से पूरा किया जा सकता है। इन सेंटर में बच्चों के कैंसर का उपचार विशेषज्ञों की एक टीम द्वारा किया जाता है, जो वयस्क और बचपन के कैंसर के बीच के अंतर को जानते हैं, साथ ही साथ कैंसर से पीड़ित बच्चों और उनके परिवारों की अनूठी जरूरतों को भी जानते हैं। इस टीम में आमतौर पर शामिल हैं पीडियाट्रिक ऑन्कोलॉजिस्ट डॉक्टर जो कैंसर वाले बच्चों के इलाज के लिए दवाओं का उपयोग करने में विशेषज्ञ हैं।
हेमेटोलॉजी ऑन्कोलॉजी:
Dr. राकेश रेड्डी ने बताया हेमेटोलॉजी ऑन्कोलॉजी रक्त से संबंधित कैंसर जैसे कि ल्यूकेमिया, लिम्फोमा और मल्टीपल मायलोमा से संबंधित है। हेमेटोलॉजिस्ट और ऑन्कोलॉजिस्ट इस प्रकार के कैंसर के निदान और उपचार के लिए मिलकर काम करते हैं।
बच्चों में कैंसर ट्रीटमेंट प्लान:
निदान के बाद, बच्चों के कैंसर में स्पेशलिस्ट डॉक्टर जिसे पीडियाट्रिक ऑन्कोलॉजिस्ट कहा जाता है, परिवार और अन्य कैंसर उप-विशेषज्ञों के साथ मिलकर एक ट्रीटमेंट प्लान या “प्रोटोकॉल” तैयार करेगा। ट्रीटमेंट प्लान में क्या शामिल है यह कैंसर के प्रकार, कैंसर के आनुवंशिकी और शरीर में कैंसर के स्थान पर निर्भर करता है।
बोन मैरो प्रत्यारोपण क्या है?
डा. रेड्डी ने बताया बोन मैरो प्रत्यारोपण एक ऐसी प्रक्रिया है जहाँ रोगी की डैमेज स्टेम सेल्स को स्वस्थ सेल्स से बदल दिया जाता है। यह प्रतिस्थापन संक्रमण और विकारों को रोकने के लिए शरीर को पर्याप्त रेड ब्लड सेल्स, WBC और प्लेटलेट्स का उत्पादन करने में मदद करता है।
बोन मैरो प्रत्यारोपण के अलग-अलग नाम हैं, जैसे हेमेटोपोएटिक स्टेम सेल ट्रांसप्लांट या स्टेम सेल ट्रांसप्लांट।
हालांकि यह एक प्रभावी इलाज हो सकता है, इस प्रक्रिया के संभावित दुष्प्रभाव हो सकते हैं जैसे थकान, मतली, उल्टी और संक्रमण जिन्हें सावधानीपूर्वक प्रबंधन की आवश्यकता होती है। इसलिए, रोगी को बोन मैरो प्रत्यारोपण के लिए जाने से पहले संभावित दुष्प्रभावों के बारे में पता होना चाहिए।
बोन मैरो प्रत्यारोपण ब्लड कैंसर और रक्त संबंधी विकारों वाले व्यक्तियों के लिए जीवन रक्षक समाधान प्रदान करता है। हालांकि किसी भी चिकित्सा प्रक्रिया से जुड़ी जटिलताएं और दुष्प्रभाव हो सकते हैं, लेकिन यह याद रखना आवश्यक है कि इसके कई लाभ और सकारात्मक परिणाम हो सकते हैं।
बोन मैरो ट्रांसप्लांट से ठीक होने में कितना समय लगता है?
बोन मैरो प्रत्यारोपण एक आवश्यक प्रक्रिया है जिसके लिए एक स्वस्थ इम्यून सिस्टम की आवश्यकता होती है। बोन मैरो प्रत्यारोपण से ठीक होने में आमतौर पर 06 महीने से एक साल तक का समय लगता है। इस उपचार प्रक्रिया के दौरान, किसी भी परेशानी को रोकने के लिए आपको अपनी स्वास्थ्य सेवा टीम के संपर्क में रहना चाहिए।
क्या बोन मैरो ट्रांसप्लांट से सब ठीक हो सकता है?
तीव्र लिम्फोब्लास्टिक ल्यूकेमिया (ALL) वाले किसी भी उम्र के लोगों के लिए बोन मैरो प्रत्यारोपण एक प्रभावी उपचार है। यह नए, स्वस्थ लोगों के लिए डैमेज ब्लड बनाने वाले सेल (स्टेम सेल) का आदान-प्रदान करके करता है। नतीजतन, प्रत्यारोपण कुछ रोगियों में स्वास्थ्य बहाल कर सकता है।
सिकल सेल डिज़ीज़ के लिए हाप्लिकल बोन मैरो ट्रांसप्लांट – एक नई आशा
सिकल सेल एनीमिया असामान्य हीमोग्लोबिन (लाल रक्त कोशिकाओं के भीतर ऑक्सीजन ले जाने वाले प्रोटीन) के कारण होने वाली रक्त की एक आनुवंशिक विकार है। असामान्य हीमोग्लोबिन के वजह से लाल रक्त कोशिकाएं सिकल के आकार की हो जाती हैं । यह उनकी ऑक्सीजन ले जाने की क्षमता और रक्त प्रवाह की मात्रा को कम करता है। इससे खून की कमी हो जाती है, जिससे एनीमिया हो जाता है।
हेप्लो आइडेंटिकल प्रक्रिया में डोनर आमतौर पर आपके माता-पिता या आपके बच्चे होते हैं । माता-पिता अपने बच्चों के लिए एक आधा मैच होते हैं। भाई-बहनों में एक-दूसरे के लिए आधे -मैच होने की 50% संभावना है। हेप्लो आइडेंटिकल बोन मैरो ट्रांसप्लांट हाई डोज़ कीमोथेरेपी के सहायता से किया जाता है। डोनर से स्टेम सेल्स इकट्ठा करने के लिए उन्हें कुछ दवाएं इंजेक्ट किया जाता है जिससे स्टेम सेल बोन मैरो से रक्त में स्थानांतरित हो जाता है जिन्हें फिर ड्रिप के माध्यम से एक मशीन में एकत्र किया जाता है। यह मशीन बाकी रक्त से सफेद रक्त (स्टेम सेल युक्त) सेल को अलग करती है। जब रोगी को ट्रांसफ़्यूज़ किया जाता है, तो एक सेंट्रल लाइन छाती के माध्यम से सीधे हृदय तक ले जाया जाता है जिससे स्टेम सेल सीधे हृदय से होता हुआ पूरे शरीर से बोन मैरो तक चला जाए। यहां वे स्थापित होते हैं और फैलना शुरू करते हैं। ये सत्र कई बार किए जाते हैं जिससे सफलता सुनिश्चित किया जा सके। सभी सत्र पूरे होने तक सेंट्रल लाइन बरकरार रहती है।
हेप्लो आइडेंटिकल बोन मैरो ट्रांसप्लांट से क्या उम्मीद रखें
चिकित्सीय परीक्षणों ने इस बात की पुष्टि की है कि प्रत्यारोपित मामलों का परिणाम अन्य चिकित्सकीय रूप से प्रबंधिhत मामलों से बेहतर होता है। इसे न केवल जीवन की गुणवत्ता में सुधार होता है बल्कि यह सिकल सेल रोग के लिए एकमात्र उपलब्ध उपचार है।
बोन मेरो ट्रांसप्लांट कब किया जाता है?
बोन मेरो ट्रांसप्लांट यदि कम उम्र में यानी दस-बारह वर्षों तक की उम्र तक कर दिया जाता है तो इसके सफल होने की संभावना काफी अधिक यानी 95 प्रतिशत तक होती है. इन्हीं वजहों से डॉक्टर दो से दस वर्ष तक की उम्र में ही उन बच्चों में बोन मैरो ट्रांसप्लांट करा लेने की सलाह देते हैं जो थैलेसीमिया,सिकल सेल एनीमिया जैसी बीमारिओं से ग्रसित होते हैं. पर, ल्यूकेमिया या एप्लास्टिक एनीमिया की स्थिति में जैसे ही डॉक्टरों को बीमारी का पता चलता है,वे तत्काल ही बोन मैरो ट्रांसप्लांट की प्रकिया शुरू कर देते हैं.
अपोलो हॉस्पिटल बिलासपुर के मुख्य कार्यपालन अधिकारी श्री अरनब स्मृति रहा एवम मेडिकल सुप्रीटेंडेंट डॉक्टर अनिल कुमार गुप्ता ने बताया छत्तीसगढ़ राज्य में सिकल सेल एनीमिया एवम थेलेसीमिया के मरीज बहुत अधिक संख्या में हैं । एवम समुदाय विशेष मैं इसे बहुतायत में देखा गया हैं । अंचल के मरीजों को होने वाली असुविधा को देखते हुए अपोलो प्रबंधन द्वारा लिया गया यह निर्णय एक मील का पत्थर साबित होगा। अपोलो के एम एस डॉक्टर अनिल कुमार गुप्ता ने डॉ राकेश रेड्डी बोया का रूप से अपोलो परिवार में swaगत किया।