संतान प्राप्ति और संतान के दीर्घायु होने की कामना के साथ माताओ ने किया हल षष्ठी व्रत, सगरी बनाकर विधि विधान से की गई पूजा अर्चना , पोता मारकर बच्चों को दिया आशीर्वाद

कैलाश यादव

सनातनी परंपराओं में स्त्री को त्याग की प्रतिमूर्ति यूं ही नहीं कहा जाता। स्त्रियों के लगभग सभी व्रत अपने निकट संबंधियों के कल्याण हेतु ही होते हैं । उन्ही में से एक हल षष्ठी का पर्व मंगलवार को मनाया गया। संतान की दीर्घायु और उनके अकाल मृत्यु से बचाव के लिए किए जाने वाले व्रत को खमर छठ भी कहते हैं। भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी को भगवान श्री कृष्ण के बड़े भाई बलराम का जन्म हुआ था उनके जन्मोत्सव को हल छठ के रूप में मनाया जाता है। इसे हल छठ, कमर छठ, चंदन छठ या खमर छठ भी कहते हैं । संतान प्राप्ति, संतान की दीर्घायु और उनके सुखमय जीवन की कामना के साथ माता इस व्रत तो रखती है। इस व्रत के लिए कठिन नियम होते हैं ।

इस दिन हल चले ज़मीन पर उगे अनाज और सब्जियों का सेवन वर्जित है, इसलिए व्रती इस दिन प्राकृतिक रूप से उगे पसहर चावल खाकर व्रत रखती है। इस पर्व पर गाय के दूध का प्रयोग भी वर्जित है, इसलिए भैंस के दूध, दही, घी आदि का प्रयोग किया जाता है।
मंगलवार को प्रातः सूर्य देव को जल अर्पित कर माताओ ने व्रत का संकल्प लिया। सुबह महुआ के पेड़ की डाली का दातौन किया, इसके साथ उपवास की शुरुआत हुई। माताओ ने अपनी संतान की मंगल कामना के साथ तो वही नव विवाहित स्त्रियों ने संतान प्राप्ति की कामना के साथ इस व्रत को किया। घर के सामने, मंदिर आदि स्थानों पर कृत्रिम तालाब सगरी का निर्माण किया गया, जिसमें झरबरी, पलाश और कांसे के पेड़ लगाए गए। गोबर से निर्मित छठ माता, भगवान गणेश, माता पार्वती बलदाऊ की पूजा अर्चना करने के बाद हल षष्ठी की कथा का श्रवण किया गया। पूजा अर्चना के पश्चात बच्चों के पीठ पर प्यार भरा पोता लगाया गया।

ऐसी मान्यता है कि इस पूजा को करने से बच्चों की उम्र लंबी होती है और उन पर कोई परेशानी नहीं आती। रात को पसहर चल खाकर उपवास खत्म किया गया। इस तिथि पर भगवान बलराम का जन्म हुआ था और उन्होंने हल धारण किया हुआ है, इसलिए इस पर्व को हल षष्ठी कहते हैं । इसीलिए इस पर्व पर भगवान बलराम की पूजा कर उनसे संतान के दीर्घायु होने का आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है।


पूजा में मिट्टी और शक्कर के बने चुकिया में चना, गेहूं, जौ, धान ,अरहर, मूंग ,मक्का, महुआ भरकर दूध, दही, गंगाजल अर्पित करते हुए षष्ठी देवी की पूजा की गई। पूजा के पश्चात सगरी से पानी लेकर बच्चों का मुंह धुलवाया गया। इसके बाद घर जाकर कपड़ा को भिगोकर बच्चों की पीठ पर आशीर्वाद भरा पोता मारा गया।

बिलासपुर में भी जगह-जगह खमर छठ की पूजा अर्चना महिलाओं ने सामूहिक रूप से की।

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