श्रावण मास में श्री पीताम्बरा पीठ सुभाष चौक सरकंडा स्थित त्रिदेव मंदिर में सावन महोत्सव पर श्री शारदेश्वर पारदेश्वर महादेव का महारूद्राभिषेकात्मक महायज्ञ 4 जुलाई से लेकर 30अगस्त तक नमक चमक विधि से परमश्रद्धेय प्रातःस्मरणीय सतगुरुदेव परमहंस स्वामी शारदानंद सरस्वती जी महाराज जी की प्रेरणा एवं आशीर्वाद से दो महारुद्र का संकल्प पूर्ण हुआ अभिषेकात्मक महायज्ञ के अंतिम दिवस नगर के प्रथम नागरिक महापौर श्री रामशरण यादव सपत्नीक, श्री विशेषर पटेल पूर्व अध्यक्ष गौ सेवा आयोग छत्तीसगढ़ शासन सपत्नीक,श्री हर्षवर्धन अग्रवाल अधिवक्ता हाईकोर्ट छत्तीसगढ़ आदि भक्तजन उपस्थित रहे।
पीताम्बरा पीठ में 18 जून से प्रारंभ हुए पीताम्बरा हवनात्मक महायज्ञ 27 नवंबर 2023 तक निरन्तर चलेगा।जिसमें 36 लाख आहुतियाँ दी जाएगी।प्रतिदिन रात्रि 8:30 से रात्रि 1:30बजे तक हवनात्मक महायज्ञ तत्पश्चात रात्रि1:30बजे ब्रह्मशक्ति बगलामुखी देवी का महाआरती किया जा रहा है।
पीठाधीश्वर आचार्य दिनेश जी महाराज ने बताया कि सनातन परंपरा में श्रावण मास की पूर्णिमा पर मनाए जाने वाले श्रावणी उपाकर्म का बहुत ज्यादा महत्व माना गया है क्योंकि महापर्व का संबंध उस पवित्र ब्रह्मसूत्र से है जिसके तीन धागे देवऋण, पितृऋण और ऋषिऋण के प्रतीक माने जाते हैं. ब्रह्मसूत्र, यज्ञोपवीत या फिर कहें जनेऊ से जुड़ा पर्व साल भर में एक बार आता है इस पर्व को ब्राह्मणों द्वारा सामूहिक रूप से पवित्र नदी के घाट पर मनाया जाता है। इसे पुण्य करने का दिन कहा जाता है। प्राचीनकाल में ऋषि-मुनी इसी दिन से वेदों का पाठ करना शुरू करते थे। इस दिन स्नान और आत्मशुद्धि कर पितरों और खुद के कल्याण के लिए आहुतियां दी जाती हैं। इस दिन पेड़-पौधे लगाने का भी खास महत्व होता है।श्रावणी पर्व पर द्विजत्व के संकल्प का नवीनीकरण किया जाता है। उसके लिए परंपरागत ढंग से तीर्थ अवगाहन, दशस्नान, हेमाद्रि संकल्प एवं तर्पण आदि कर्म किए जाते हैं। श्रावणी के कर्मकाण्ड में पाप निवारण के लिए हेमाद्रि संकल्प कराया जाता है, जिसमें भविष्य में पातकों, उपपातकों और महापातकों से बचने, परद्रव्य अपहरण न करने, परनिंदा न करने, आहार-विहार का ध्यान रखने, हिंसा न करने , इंद्रियों का संयम करने एवं सदाचरण करने की प्रतिज्ञा ली जाती है। यह सृष्टि नियंता के संकल्प से उपजी है। हर व्यक्ति अपने लिए एक नई सृष्टि करता है। यह सृष्टि यदि ईश्वरीय योजना के अनुकूल हुई, तब तो कल्याणकारी परिणाम उपजते हैं, अन्यथा अनर्थ का सामना करना पड़ता है। अपनी सृष्टि में चाहने, सोचने तथा करने में कहीं भी विकार आया हो, तो उसे हटाने तथा नई शुरूआत करने के लिए हेमाद्रि संकल्प करते हैं। ऐसी क्रिया और भावना ही कर्मकाण्ड का प्राण है।