हेमूनगर दुर्गा पंडाल में आयोजित दिव्य प्रवचन के अवसर पर जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज की कृपा प्राप्त प्रचारिका सुश्री श्रीश्वरी देवी जी ने संसार के स्वरूप बताते हुए कहा कि संसार में कोई भी जीव किसी अन्य जीव के सदृश एक सेकंड को भी नहीं रह सकता क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति के भीतर माया के तीन गुण प्रतिक्षण बदल रहे हैं। सत्वगुण, रजोगुण और तमोगुण यदि दो व्यक्तियों के गुण एक से हुए तो आपस में दोस्ती हो जाएगी और गुण अगर अलग–अलग हुए तो बनी बनाई दोस्ती भी समाप्त हो जाएगी। वेद इत्यादि से प्रमाण प्रस्तुत करते हुए देवी जी ने कहा कि संसार में कोई किसी के सुख के लिए कुछ नहीं कर सकता। जब तक मनुष्य स्वयं आनंद मय नहीं हो जाता अर्थात ईश्वर प्राप्ति नहीं कर लेता तब तक वो जो भी कार्य करता है स्वयं के आनंद के लिए ही करता है।


संसार में ना ही कहीं सुख है ना ही कहीं दुःख हैं। यदि संसार में किसी भी व्यक्ति या वस्तु से सबको एक समान सुख मिलता और सदा सुख मिलता परन्तु ऐसा तो नहीं होता। हम जहाँ सुख मान लेते हैं वो अपना ही माना हुआ सुख हमको संसार से प्राप्त होता है और जब वही वस्तु या व्यक्ति हमसे छिन जाता है तो उतनी ही मात्रा का दुःख होता है जितना हमने उससे सुख की आशा की थी। यदि संसार में हम कहीं भी सुख ना माने किसी भी व्यक्ति या वस्तु में तो हमे संसार छिनने पर दुःख भी नहीं होगा और इस प्रकार से हम संसार से राग और द्वेष से रहित हो जायेंगे ।


गीता के आंठवे अध्याय का सोलहवां श्लोक में भगवान श्री कृष्ण कहते हैं ब्रम्हलोक तक माया का राज्य है अतएव ब्रह्मलोक तक जाकर पुनः मृत्युलोक में लौटना पड़ेगा, क्योंकि हमारी दिव्य आत्मा का विषय दिव्य वस्तु ही हो सकती है, प्राकृत जगत दिव्य आत्मा का विषय नहीं हो सकता। अतएव हमारी तृप्ति ब्रम्हलोक तक जाकर भी नहीं हो सकती है दिव्य आत्मा का विषय दिव्य भगवान ही हो सकते हैं अतएव भगवान को प्राप्त करके ही आत्मा सदा सदा के लिए आनंदमय हो सकती है।

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