आध्यात्मिक दार्शनिक प्रवचन में जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज की प्रमुख प्रचारिका सुश्री श्रीश्वरी देवी जी ने कहा की केवल घर छोड़कर जंगल में बैठ जाना ही वैराग्य नहीं कहलाता अपितु संसार में रहते हुए भी मन में संसार की आसक्ति का त्याग ही वास्तविक वैराग्य है। मन ही हमारे प्रत्येक कार्य का कर्ता है। अतः हमें बाहर से नही भीतर से विरक्त होना है। संसार में ना कहीं राग हो ना कहीं द्वेष हो और राग और द्वेष से रहित होने का अहंकार भी ना होना यही वैराग्य की परिभाषा है।
संसार में राग और द्वेष दोनो ही खतरनाक है। जैसे पिघली हुई लाख में जब कोई रंग छोड़ा जाता है तो वह रंग लाख के परमाणु–परमाणु में समा जाता है और लाख उसी रंग का दिखने लगता है ठीक ऐसे ही जब हम किसी से राग या द्वेष करते हैं तो हमारा अंतः कारण संबंधित व्यक्ति या वस्तु के लिये पिघलता है और वो व्यक्ति हमारे अंतः कारण में समा जाता है। अतः यदि हम संसार से राग या द्वेष करे तो ये संसार हमारे अंतःकारण में समा जायेगा और अंतःकारण को गंदा कर देगा किंतु भगवान और महापुरुष के प्रति अपने मन का लगाव किया तो अंतःकारण शुद्ध हो जाएगा, दिव्य हो जाएगा एवं सदा–सदा के लिए हम आनंदमय हो जाएंगे।
आप सभी नगर वासियों से विनम्र निवेदन है कि इस दिव्य दार्शनिक प्रवचन में अधिक से अधिक संख्या में आकर इस सत्संग का लाभ उठावें। दुर्गा पंडाल हेमू नगर बिलासपुर