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कोटा क्षेत्र स्थित पोड़ी ग्राम में किसान द्वारा जेसीबी से खुदाई के दौरान कलचुरी काल की प्रतिमाएं मिली. इन प्रतिमाओं की जानकारी पुरातत्व विभाग को दी गई, तब बिलासपुर और रायपुर के पुरातत्व अधिकारी मौके पर पहुंचकर प्रतिमाओं की जांच की।प्रतिमाओं की जांच करने पर प्रथम दृष्टया 13-14 ईस्वी की प्रतिमाएं प्रतीत हो रही हैं। मामले में पुरातत्व विभाग ने प्रतिमाओं को अपने कब्जे में ले लिया है और अब इसकी आगे की खुदाई पुरातत्व विभाग करने वाली है। किसान के जमीन के पीछे शासकीय भूमि पर खुदाई के दौरान यह प्रतिमा मिली है जिन्हें संरक्षित किया जा रहा है।

रतनपुर और कोटा क्षेत्र भोंसले वंशज और कलचुरी काल के राजाओं के शासनकाल में राजधानी के रूप में रही है. यही कारण है कि यहां सैकड़ों मंदिर और प्रतिमाएं स्थित है. कई मंदिर और प्रतिमाएं जमीन के अंदर भी दबी हुई है, जिसकी समय-समय पर खुदाई के दौरान अवशेष मिलते हैं. 2 दिन पहले पोड़ी ग्राम के एक किसान ने अपने खेत के साथ ही पीछे की सरकारी जमीन की खुदाई शुरू कर दी थी, तब यहां किसान को खुदाई के दौरान कुछ प्रतिमाएं मिली. प्रतिमाओं की मिलने की खबर फैलने के बाद रायपुर और बिलासपुर के पुरातत्व विभाग की टीम मौके पर पहुंच गई और जांच शुरू कर दी. किसान ने अपनी जमीन के साथ ही शासकीय जमीन में भी खेती करने खुदाई करवाई थी, लेकिन अब पटवारी के सीमांकन के बाद शासकीय भूमि को पुरातत्व विभाग अपने कब्जे में ले लिया है, और इसकी खुदाई कर रहा है, साथ ही खुदाई में मिले प्रतिमाओं को अपने कब्जे में लेकर इसकी जांच भी कर रहा है।कोटा में खुदाई के दौरान कलचुरी शासन काल की प्रतिमाएं मिलने की सूचना के बाद पुरातत्व विभाग रायपुर और बिलासपुर मौके पर पहुंचकर प्राचीन धरोहर को सुरक्षित करने जांच शुरू कर दी है. पुरातत्व विभाग के विशेषज्ञों ने मूर्तियों की बनावट देखकर कहा है कि 13-14 वी शताब्दी के कलचुरी काल ऐसे प्रतिमाएं निर्मित की जाती थी। अधिकारियों ने बताया कि 13-14 वी शताब्दी मे नन्दी क्वार्टजाइट पत्थर और शेष बलुआ पत्थर से इसका निर्माण हिया है। मंदिर की अवशेष मिलने के पहले यंहा नीम वृक्ष के नीचे स्थापत्य खंड द्वार, स्तंभ और आमलक के खंडित अवशेष विद्यमान थे. यह ग्रामीणों की आस्था का केंद्र भी रहा है. जेसीबी से खुदाई के दौरान योनि पीठ, नंदी और अलंकृत स्थापत्य खंड मिला है। मंदिर से शैल आचार्य, नंदी और योनि पीठ के अवशेषों भी मिले है।

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