आकाश दत्त मिश्रा
बात कहां से शुरू हुई थी और कहां जा पहुंची, या फिर कहिए पहुंचा दी गई।
लोकतंत्र के चार स्तंभ माने जाते हैं। विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका के साथ मीडिया को भी चौथा स्तंभ माना गया है, इसलिए इसकी भूमिका और जवाबदेही सुनिश्चित की जानी चाहिए। जिस तरह से एक नश्तर किसी की चिकित्सा कर उसकी जान बचाने के काम आता है और उसी नश्तर से किसी की जान ली भी जा सकती है, ठीक उसी तरह मीडिया में भी अवांछित तत्वों की घुसपैठ से ना केवल मीडिया की विश्वसनीयता और छवि खराब होती है बल्कि इसके दूरगामी दुष्परिणाम भी सामने आते हैं। ऐसा ही कुछ इन दिनों मुंगेली में हो रहा है।
चलिए शुरू से शुरू करते हैं । हमने पहले ही जिक्र किया कि बात कहां से निकली थी और फिर एक खास उद्देश्य से कहां तक पहुंचा दी गई।
छत्तीसगढ़ अनुसूचित जाति उत्थान संघ नाम की संस्था में अधिकार और वर्चस्व की लड़ाई जारी है। चिल्फी थाना क्षेत्र के ग्राम मुछेल निवासी हरजीत भास्कर का दावा है कि उसके द्वारा छत्तीसगढ़ अनुसूचित जाति उत्थान संघ के प्रदेश अध्यक्ष राजकुमार को 2 जनवरी को निष्कासित कर पद मुक्त कर दिया गया है। जिसके बाद भी राजकुमार नियम विरुद्ध संघ के लेटर पैड एवं सील का दुरुपयोग कर रहा है। जिसकी शिकायत चिल्फी थाने में करते हुए अपेक्षा की गई थी कि पुलिस राजकुमार के खिलाफ धोखाधड़ी का मामला दर्ज कर उसे जेल भेज दे।
पुलिस ने इस संबंध में जब ग्राम चंदली पथरिया निवासी राजकुमार से पूछताछ की तो नया तथ्य निकल कर सामने आया। राजकुमार का कहना है कि उक्त संस्था के संस्थापक संयोजक और मुख्य संरक्षक हरजीत भास्कर द्वारा नियम विरुद्ध और असंवैधानिक तरीके से उन्हें पद मुक्त किया गया है ।साथ ही अपने अधीनस्थ वेब पोर्टल, प्रिंट मीडिया और सोशल मीडिया में उनके विरुद्ध समाचार और पोस्ट कर उनकी छवि को धूमिल करने का प्रयास किया जा रहा है। इतना ही नहीं राजकुमार ने हरजीत पर व्हाट्सएप ग्रुप में अश्लील मैसेज भेजने का भी गंभीर आरोप लगाया।
इस संबंध में दोनों की लंबी लड़ाई चल रही है। जांच में पुलिस ने पाया कि संस्था पर काबिज होने की होड़ में राजकुमार और हरजीत के बीच की लड़ाई में पुलिस को मोहरा बनाने का प्रयास किया जा रहा है। इस व्यक्तिगत लड़ाई के बीच अब तक किसी संज्ञेय अपराध के घटित न होने के कारण पुलिस ने राजकुमार सतनामी के खिलाफ कोई कानूनी मामला दर्ज नहीं किया, जिससे हरजीत भास्कर चिल्फी थाना प्रभारी सुशील बंछोड़ से व्यक्तिगत रंजिश रखने लगा।
इसके बाद उसने मीडिया का दुरुपयोग करते हुए सुशील बंछोर के खिलाफ दुष्प्रचार आरंभ कर दिया। यहां तक कि उन पर व्यक्तिगत हमले किए जाने लगे।
वर्तमान में चिल्फी थाना प्रभारी सुशील बंछोर की कार्यकुशलता से न केवल विभाग बल्कि उन्हें जानने वाला हर व्यक्ति परिचित है। कानूनी मामलों के बेहद बारीक जानकारी रखने और चालान लिखने के विशेषज्ञ सुशील बंछोर अपने सेवाभावी कार्यों के लिए भी क्षेत्र में जाने जाते हैं । अभी कुछ समय पहले की ही बात है। हर ओर से निराश एक विकलांग खुदकुशी करने जा रहा था, जिसे सहारा देकर सुशील कुमार बंछोर ने ना सिर्फ उसकी जान बचाई बल्कि उसे स्वावलंबी बनाते हुए व्यक्तिगत तौर पर उसके लिए चाय दुकान स्टेशनरी और फल दुकान की व्यवस्था की। आज वह विकलांग उनकी सहृदयता के कारण आत्मनिर्भर होकर सुखपूर्वक जीवन जी रहा है । हैरानी की बात है कि ऐसे अधिकारी पर ओछी मानसिकता के साथ यह बचकाना आरोप लगाया जा रहा है कि वह रिश्वत के तौर पर प्रार्थी से मिठाई मांग रहे हैं ।
यह बता मजाक नहीं तो और क्या है ? एक पुलिस अधिकारी को रिश्वत ही मांगना होता तो वह कुछ और न मांगता। चाय और मिठाई भी भला कोई रिश्वत है ? पर जिनकी जैसी हैसियत, वैसी सोच ।
सुशील कुमार बंछोर अपने मजाकिया स्वभाव के लिए भी प्रसिद्ध हैं । अधिकांश पत्रकारों से उनकी घनिष्ठता है। शायद इसीलिए वे धोखा खा गए। इसीलिए जब पत्रकार का मुखौटा लगाकर कथित प्रार्थी उनके पास पहुंचा तो उन्होंने मजाकिया लहजे में अपने मातहत से कहा कि प्रार्थी अध्यक्ष चुने गए हैं, इसलिए इसकी मिठाई और चाय तो बनती है। लेकिन साजिश ढूंढ रहे व्यक्ति ने भरोसे का कत्ल करते हुए, इसकी वीडियो रिकॉर्डिंग कर ली और इसे ही सोशल मीडिया पर वायरल कर एक पुलिस अधिकारी की छवि धूमिल करने की कोशिश की जा रही है ।
यह बात भला किस व्यक्ति के गले उतरेगी कि एक थाना प्रभारी किसी से चाय और मिठाई की रिश्वत मांग रहा है ?
पुलिस विभाग बेहतर जानता है कि किस अधिकारी को क्या जिम्मेदारी दी जा सकती है। योग्यता की परख एसपी से अधिक एक कथित अनजान गुमनाम पत्रकार को तो नहीं हो सकती, जो सुशील बंछोर की काबिलियत और नियुक्ति पर ही सवाल खड़े कर रहा है और इन्हें सहारा मिल रहा है ऐसे महत्वकांक्षी और गुमनाम कथित जनप्रतिनिधियों का जो आने वाले विधानसभा चुनाव के लिए अपने लिए राजनीतिक जमीन तलाश रहे हैं, जिनके बीच आपसी सांठगांठ से अपने छुद्र मंसूबों को पूरा करने का प्रयास किया जा रहा है।
छवि यूं बनाने का प्रयास किया जा रहा है कि चिल्फी थाना प्रभारी सुशील कुमार बंछोर की कार्यशैली से समूचा मीडिया असंतुष्ट है। जबकि इसके उलट सच्चाई यह है कि सैकड़ों की संख्या में मौजूद मीडिया में से केवल एक ही समूह अपने व्यक्तिगत दुर्भावना से उनके खिलाफ दुष्प्रचार कर रहा है। ऐसा नहीं है कि इनके द्वारा अन्य मीडिया से जुड़े लोगों से भी ऐसी ही खबरें प्रसारित करने को ना कहा गया हो, लेकिन पूरे घटनाक्रम और सच्चाई से वाकिफ होने की वजह से शेष मीडिया ने इस मामले से प्रयाप्त दूरी बना ली।
एक संस्था पर कब्जा करने की लड़ाई में कामयाब ना होने के खुन्नस में पुलिस अधिकारी को ही निशाना बनाने का यह प्रयास बेहद खतरनाक है। इस परंपरा को यही रोकने की आवश्यकता है। असल में मुंगेली में पुलिस विभाग में भी जातिगत असंतुलन बड़ी समस्या है। एक ही समुदाय के अधिकांश लोगों की पदस्थापना से गुटबाजी निर्मित हुई है, जिन्हें अपने ही जाति समूह के कुछ कथित पत्रकारों का भी समर्थन है। यह सभी मिलकर अन्य जाति के व्यक्ति को किसी भी सूरत में मुंगेली में टिकने देना नहीं चाहते, जिस कारण से आपसी संगठन बनाकर इस तरह की साजिश की जाती है। ऐसा नहीं है कि पुलिस के आला अधिकारी इन सबसे वाकिफ नहीं है, लेकिन शायद उनकी भी कोई मजबूरी हो, इसलिए ऐसे घटनाक्रम को रोकने के लिए आवश्यक है कि सबसे पहले मुंगेली जिले के थानों में जातिगत असंतुलन को तत्काल समाप्त किया जाए। क्षेत्र के ही जो पुलिसकर्मी बरसों से एक ही थाने में जमे हुए हैं उन्हें दीगर जिले में भेजा जाए। वहीं सभी थानों में नियुक्ति के समय जातिगत समीकरण का भी पूरा ध्यान रखा जाए, ताकि इस तरह की घटना क्रम की पुनरावृत्ति ना हो।
एक खास उद्देश्य से लगातार एक पुलिस अधिकारी को निशाना बनाए जाने के खिलाफ अब पुलिस कानूनी विकल्प भी तलाश रही है। इस लड़ाई को जिसने भी शुरू किया है, उसे यह समझने की आवश्यकता है कि तीर केवल उसके ही तरकश में नहीं है, सामने पुलिस है जो निसन्देह कानून की उनसे बेहतर जानकार है। इसलिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर मनगढ़ंत कुछ भी छाप देना इतना सरल भी नहीं है। इसका जवाब उचित मंच पर आरोप लगाने वालों को भी देना होगा, जो उनके लिए आसान तो नहीं होगा।