
यूनुस मेमन

हमारे देश में सभी को ईमानदार और कर्मठ अधिकारी चाहिए, लेकिन जब कभी ऐसा अधिकारी मिलता है तो फिर उसके खिलाफ साजिश का दौर शुरू हो जाता है। ऐसा ही कुछ हो रहा है दिनों वन परीक्षेत्र रतनपुर में। यहां पिछले सात-आठ महीनों में ही पदस्थापना के बाद से रेंजर सुनीत साहू ने अपनी कार्यशैली से सभी को प्रभावित किया है। उनके त्वरित निर्णय लेने की क्षमता, कार्यकुशलता, इमानदारी और स्पष्ट वादिता से जहां आम लोग खुश है , तो वहीं उनके मातहत कुछ ऐसे बेईमान कर्मचारियों में इसी वजह से हड़कंप है, जो इससे पहले इस तरह के अधिकारी के आदि नहीं रहे हैं। वन परीक्षेत्र रतनपुर के अंतर्गत सोढ़ा खुर्द बानाबेल में पदस्थ परिसर रक्षक नीतीश कुमार पैकरा का नाम ऐसे ही कर्मचारियों में शुमार किया जा सकता है। कहते हैं नीतीश कुमार को कर्मचारी संगठन का संरक्षण हासिल है इसलिए मामूली परिसर रक्षक होने के बावजूद उसकी हमेशा से दादागिरी चलती रही है। बार-बार विभागीय कार्य में उदासीनता बरतने और वन अपराध की रोकथाम में नाकाम पाए जाने पर पहले उन्हें कारण बताओ नोटिस दिया गया, जिसका माकूल जवाब नहीं मिलने पर उसे निलंबित कर दिया गया।

अब कर्मचारी संगठन उसके पक्ष में खड़ा हो गया है। अपने साथी परिसर रक्षक की गलतियां देखने के बजाय कर्मचारी संगठन उस पर विभागीय कार्यवाही करने वाले रेंजर सुनीत साहू के ही खिलाफ मोर्चा खोलते दिख रहा है । कर्मचारी संगठन की मांग है कि सुनीत साहू का तबादला कर दिया जाए ।शायद रेंजर सुनीत साहू की ईमानदारी और कार्यकुशलता कुछ बेईमान कर्मचारियों के लिए समस्या बन चुकी है, इसीलिए संगठित तौर पर रेंजर के खिलाफ साजिश की जा रही है।
हमने जब धरातल पर जाकर मामले की तहकीकात की तो पाया कि वन क्षेत्र रतनपुर में व्याप्त समस्याओं की वजह से पिछले साल भर में ही यहां तीन से चार रेंजर बदल दिए गए थे। वही हर तरफ भर्रा शाही का आलम था, लेकिन जब से बतौर रेंजर सुनीत साहू की पदस्थापना हुई है तब से क्षेत्र में एक-एक कर समस्याओं का निराकरण हो रहा है। लंबे अरसे से लंबित मजदूरों का भुगतान भी नए रेंजर द्वारा किया गया। जिससे करीब ढाई हजार मजदूर लाभान्वित हुए। क्षेत्र की सुरक्षा और वन संवर्धन को लेकर भी सुनीत साहू गंभीर नजर आते हैं । शायद इसी वजह से उन्होंने लापरवाह कर्मचारी के खिलाफ कार्यवाही की, जो अब उनके गले में फांस बनती नजर आ रही है ।
पता चला कि नीतीश कुमार पैकरा शुरू से ही लापरवाह और उद्दंड कर्मचारी रहा है। नए रेंजर के प्रभार लेने के बाद भी उसकी कार्यशैली में कोई बदलाव नहीं आया।
रेंजर सुनीत साहू ने जब बानाबेल क्षेत्र का भ्रमण किया तब उन्हें परिसर में अवैध कटाई और अतिक्रमण के प्रमाण मिले।
14 दिसंबर को सूचना मिली कि बानाबेल परिसर में जमुनाही नाला के पास सोढ़ा खुर्द में वन भूमि पर कब्जा किया जा रहा है। तुरंत नीतीश कुमार को व्हाट्सएप पर कुछ तस्वीरें भेजते हुए कार्यवाही करने के निर्देश दिए गए । लेकिन उन्होंने अपने आदत अनुसार ऐसा कुछ नहीं किया ।
15 दिसंबर को नीतीश कुमार के ही क्षेत्र में अवैध कटाई की भी जानकारी मिली। मौके पर निरीक्षण करने पर सागौन और अन्य पेड़ों की कटाई की जानकारी मिली। इस पर कार्यवाही के निर्देश मिलने के बावजूद एक बार फिर नीतीश कुमार ने कोई कार्यवाही नहीं की और ना ही इस संबंध में स्पष्टीकरण दिया।
नीतीश कुमार की लगातार लापरवाही सामने आती रही। 16 दिसंबर को वन परी क्षेत्र में रात्रि गश्त निर्धारित थी ।सभी कर्मचारी रात्रि गश्त पर थे, इसकी जांच के लिए मुख्य वन संरक्षक बिलासपुर एवं वन मंडल अधिकारी भी बानाबेल पहुंचे थे, जहां नीतीश कुमार पैकरा हमेशा की तरह गायब मिला।
17 दिसंबर को छत्तीसगढ़ शासन द्वारा गौरव दिवस मनाया गया। शासन के निर्देश पर सभी वन कर्मियों ने भी इस दिन मिलकर कार्य किया। गौठान में आयोजित गौरव दिवस कार्यक्रम में से भी नीतीश कुमार नदारद मिला।
26 दिसंबर को एसडीम कोटा के निर्देश पर बेलगहना में आयोजित जन समस्या निवारण शिविर में भी निर्देश के बावजूद नीतीश कुमार नहीं पहुंचा और ना ही मोबाइल कॉल रिसीव किया। 29 दिसंबर को शासन की महत्वपूर्ण योजना वन मितान जागृति कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसमें सभी वन कर्मचारी पहुंचे लेकिन नीतीश कुमार पैकरा नहीं पहुंचा। मोबाइल पर उसने बताया कि वह जन समस्या निवारण शिविर में चपोरा जा रहा है, लेकिन असल में वह उस शिविर में भी नहीं पहुंचा , जबकि चपोरा का शिविर उनके क्षेत्र से बाहर का था ।
वन क्षेत्र से बाहर वृक्षारोपण के लिए हितग्राहियों का चयन सूची बनाने के निर्देश की भी अवहेलना इस कर्मचारी द्वारा की गई। यह फेहरिस्त तो खत्म ही नहीं होती।
पता चला कि कर्मचारी संगठन के संरक्षण में नीतीश कुमार पैकरा बार-बार विभागीय अधिकारियों और शासन के निर्देशों एवं आदेश की अवहेलना करता रहा है, जिसके बाद उन्हें कारण बताओ नोटिस दिया गया। जिसका भी संतुष्ट जनक जवाब नहीं मिला। जिसके बाद उन्हें नियमानुसार निलंबित कर दिया गया। इसके बाद से ही नीतीश कुमार अपने कर्मचारी संगठन के साथ मिलकर रेंजर के खिलाफ जगह-जगह शिकायत करता दिख रहा है। अब बड़ा सवाल यह है कि क्या कर्मचारी संगठन का दायित्व केवल अपने सदस्यों के हितों की रक्षा करना ही है या उनकी कोई निष्ठा उस विभाग से भी है जिसके लिए वे काम करते हैं।
इस मामले में आसपास के लोगों से जब अपने बातचीत की तो उन्होंने भी कहा कि नए रेंजर ईमानदार, कार्य कुशल और कर्तव्यनिष्ठ है ।बरसो बाद ऐसा अधिकारी जंगल को मिला है, जिससे हालात बेहतर होने की उम्मीद की जा सकती है। यही बात कुछ कर्मचारियों के गले नहीं उतर रही है। इन लोगों का मानना है कि बड़े अधिकारी स्वयं धरातल पर आकर सच की पड़ताल करें , तभी उन्हें हकीकत की जानकारी होगी। नीतीश कुमार जैसे ना जाने कितने कर्मचारी सरकारी विभागों में मौजूद है जो दीमक बनकर अपने ही विभाग को खा रहे हैं । अगर कर्मचारी संगठन ऐसे ही कर्मचारियों के साथ खड़ा है तो उनके भी उद्देश्यों पर सवाल तो खड़े ही होंगे।