बिलासपुर -:- विधायक का फर्जी प्रतिनिधि बनकर सामान्य सभा में हंगामा करने का मामला अब तूल पकड़ता जा रहा है। बताया जा रहा है कि मामले में जिला पंचायत के कुछ अधिकारियों की भूमिका संदिग्ध है। खबर है कि जिला पंचायत सभापति अंकित गौरहा ने मामले को गंभीरता से लिया है। जानकारी मिल रही है जिला पंचायत में पेश किए गए पत्र की जांच हो सकती है।
जिला पंचायत में 14 दिसंबर को सामान्य सभा के दौरान बैठक व्यवस्था को लेकर जनपद उपाध्यक्ष विक्रम सिंह का मामला अब तूल पकड़ता जा रहा है। जानकारी देते चले की सामान्य सभा बैठक के दौरान सीटिंग व्यवस्था को लेकर बसपा से भाजपा में आने वाले विक्रम सिंह ने जमकर हंगामा किया था। जिसके चलते समान सभा की बैठक को करीब 45 मिनट तक रोका गया। बावजूद इसके विक्रम सिंह और अशोक कौशिक ने जमीन पर बैठकर विधायक प्रतिनिधि के अपमान का आरोप लगाया। इसके बाद भाजपा के विधायक और जिला पंचायत सदस्यों ने भी जनपद उपाध्यक्ष का साथ छोड़ दिया और बैठक में शामिल हुए। खबर मिल रही है कि जिला पंचायत सभापति अंकित गौरहा ने सामान्य सभा के दौरान हंगामा को बहुत ही गंभीरता से लिया है। इसके बाद उन्होंने विधायक प्रतिनिधियों की जानकारी के लिए अधिकारियों को तलब करना शुरू किया। जॉच के दौरान सामने आया कि बेलतरा विधायक रजनीश सिंह ने कभी भी जिला पंचायत सामान्य सभा में प्रतिनिधि भेजने को लेकर कभी पत्र ही नहीं लिखा है।
बताते चलें कि सिटींग व्यवस्था के दौरान भाजपा नेता विक्रम सिंह ने हंगामा के दौरान कहा कि वह बेलतरा विधायक रजनीश सिंह की प्रतिनिधि की हैसियत से बैठक में आए हैं लेकिन उनका अपमान किया गया। हंगामा के बाद जिला पंचायत सभापति अंकित गौरहा ने छानबीन के दौरान पाया कि बेलतरा विधायक रजनीश सिंह ने कभी भी विधायक प्रतिनिधि को लेकर कोई पत्र जिला पंचायत को नहीं दिया है। लेकिन कुछ दिन बात पता चला कि रजनीश सिंह के लेटर पैड से जो पत्र लिखा गया है वह संदिग्ध है। क्योंकि जब अध्यक्ष ने जानकारी मांगी तो अधिकारियों ने बताया था कि कोई पत्र नहीं है। जबकि दो दिन बाद बेक डेट से पत्र जमा हो गया। वो भी बैठक के एक महीना पहले के दिन पर और विधायक रजनीश सिंह ने यह लिखा है कि पूर्व में टेलिफोनिक सूचना दे दी गई थी जो कि हास्यप्रद है क्योंकि सदन की कार्यवाही किसी मौखिक सूचना के आधार पर नहीं चलती इतना तो एक्सीडेंटल विधायक को ज्ञान होना चाहिए। पूरा मामला संदिग्ध माना जा रहा है क्योंकि विधायक का पत्र चुपके से जमा कराने में एक अधिकारी की भूमिका संदिग्ध है।