
संजय अनंत की कलम से

श्री रमेश नैयर जी नहीं रहे। अनेक स्मृतियां मानस पटल पर दस्तक दे रही है। ये वो व्यक्तित्व है जो शुद्ध थे, कथनी करनी के अंतर से दूर। जिन सिद्धांतो को स्वीकार किया उस पर निरंतर चलते रहे। ज़ब मै पहली बार उन से मिला तो बड़ा संकोच था, इतने बड़े पत्रकार, विद्वान और उन छतीसगढ़ सरकार द्वारा बनाई ग्रन्थ अकादमी के अध्यक्ष भी थे.. पर ज़ब उनके निवास पंहुचा तो मिलने के पश्चात् पता चला की वो अत्यंत सरल मनुष्य है.। मैंने Thomas Grey जो इंग्लिश साहित्य के महान कवि है, उनकी प्रतिनिधि रचनाओं का हिन्दी में काव्यानुवाद किया था। बड़े प्रभावित हुए और किसी अध्यापक की तरह Thomas Grey की रचनाधर्मिता को समझने की नवीन दृष्टि दी.. Elegy written in country chruchyard वास्तव में जनवाद का आरम्भ थी.. मानव समाज में लिखी प्रथम रचना जो ईश्वर या राज पुरुषो को समर्पित न हो कर आम जन की बात कर रही थी… मै उन्हें मन्त्रमुग्ध हो सुनता रहा और रमेश नैयर जी धारा प्रवाह बोलते रहे .. मै सोचता हुआ वापस लौटा.. मै तो एक़ पूर्व संपादक , धारदार पत्रकार से मिलने गया था . पर उनका अध्यन के विस्तृत विस्तार ने उनकी विलक्षणता ने प्रभावित किया… आदरणीय गिरीश पंकज, Sanjay Dwivedi से भी उसी दौर में मुलाक़ात और आत्मीय परिचय हुआ। बीते दौर की सुखद स्मृति ताज़ा हो गयी… रमेश नैयर जैसे सच्चे सिद्धांत वादी हमेशा याद किए जायेंगे ज़ब बात आदर्शवाद की होंगी.. जो आजकल बड़ा दुर्लभ हो गया है।

