उगते सूरज को दुनिया सलाम करती है लेकिन छठ महापर्व भारतीय संस्कृति का वह उदाहरण है जहां अस्त होते सूर्य को भी पूजा जाता है। रविवार शाम के अर्ध्य के बाद सोमवार तड़के एक बार फिर व्रती तोरवा छठ घाट पहुंचे । आधी रात के बाद से ही गाजे बाजे, जलता हुआ दीपक और दउरा लेकर व्रती सपरिवार एक बार फिर घाट की ओर जाते दिखे।


रविवार शाम को सूर्य देवता और सष्ठी मैया को अर्घ्य देने के बाद व्रती घाट से जलता हुआ दीपक लेकर घर लौटे थे। इस दीपक को पूरी रात जलाए रखा। नियम अनुसार इसी जलते दीपक को लेकर सब घाट पर पहुंचे। जिस स्थान पर सूर्य देवता को पहला अर्घ्य दिया गया था, उसी स्थान पर पहुंचकर व्रत धारियों ने गन्ने से वापस मंडप सजाया। सुबह 6:05 पर उदित सूर्य को गाय के कच्चे दूध और जल का अर्घ्य प्रदान किया गया। छठ पूजा समिति की ओर से श्रद्धालुओं को निशुल्क दूध उपलब्ध कराया गया।

रविवार शाम की तरह सोमवार सुबह भी यहां हजारों लोग पहुंचे, जिसमें बिलासपुर विधायक शैलेश पांडे, सांसद अरुण साव, विधायक रजनीश सिंह, पूर्व मंत्री अमर अग्रवाल भी शामिल थे। सभी जनप्रतिनिधियों ने भी सूर्य देवता को अर्घ्य प्रदान कर सुख, समृद्धि, शांति की कामना की।
सोमवार सुबह षष्ठी मैया की उपासना और सूर्य देवता को अर्घ्य देकर 36 घंटे के व्रत का परायण हुआ, जिसके पश्चात व्रतियों ने जल ग्रहण किया। तत्पश्चात यहां प्रसाद का वितरण किया गया, जिसमें मौसमी फल के साथ पारंपरिक ठेकुआ भी शामिल था।


बिलासपुर के छठ घाट में इस दौरान 50 हज़ार से अधिक लोग पहुंचे , जिससे यह सिद्ध हो गया कि छठ महापर्व बिलासपुर का सबसे बड़ा जन आस्था का पर्व बन चुका है। जिसमें सिर्फ व्रत रखने वाले ही नहीं , बल्कि स्थानीय छत्तीसगढ़िया भी खुशी खुशी शामिल हो रहा है।
विगत 18 वर्षों की तरह इस वर्ष भी समिति के कोषाध्यक्ष डॉ धर्मेंद्र दास की ओर से यहां सबके लिए निशुल्क चाय, कॉफी की व्यवस्था की गई थी। सुबह ठंड में इससे लोगों को बड़ी राहत मिली। तो वही इस भव्य आयोजन के समापन पर डॉ धर्मेंद्र दास भावुक होते भी दिखे
छत्तीसगढ़ की अपनी मजबूत संस्कृति है, लेकिन इसकी दूसरी विशेषता यह भी है कि यह अन्य प्रदेश की संस्कृतियों को भी बहुत सहजता से अपने में समाहित कर लेता है। यही खूबी इसे महान बनाती है और यही विशेषता इस बार के लोक आस्था के महापर्व छठ पर भी नजर आई। दीपावली के बाद एक बार फिर से दीपावली जैसे नजारे छठ पर्व पर नजर आए।

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