
आलोक मित्तल

गुरुवार को भाई और बहन के स्नेह का पर्व भाई दूज मनाया गया। इसे यम द्वितीय भी कहते हैं। वैसे तो भाई दूज का पर्व दीपावली के एक दिन बाद मनाया जाता है लेकिन इस बार सूर्य ग्रहण की वजह से इसे तीसरे दिन मनाया गया। इस बार पूरे दीपावली की तरह भाई दूज पर भी मुहूर्त को लेकर मतभेद की स्थिति रही। 26 अक्टूबर दोपहर 2:45 से भाई दूज का पर्व आरंभ हो गया था तो वहीं 27 अक्टूबर को 12:45 पर मुहूर्त समाप्त हुआ। लेकिन अधिकांश लोगों ने गुरुवार को ही भाई दूज का पर्व मनाया। सुबह बहने नहा धोकर तैयार हुई। फिर भाई के माथे पर तिलक लगाकर उनके दीर्घायु होने की कामना की और उन्हें अच्छा अच्छा भोजन कराया । भाईयो ने भी बहनों को उपहार देकर उन्हें प्रसन्न कर दिया।

कहते हैं भाई दूज रक्षाबंधन से भी पुराना पर्व है। इसका संबंध यमराज और उनकी बहन यमुना से है। यह भाई के प्रति बहन के स्नेह की अभिव्यक्ति का पर्व है। पौराणिक कथा अनुसार अपनी व्यस्तता की वजह से यमराज अपनी बहन यमुना से भी नहीं मिल पा रहे थे। कार्तिक शुक्ल द्वितीया की तिथि पर ही यमराज अपनी बहन यमुना के पास पहुंचे थे। बहन यमुना ने सत्कार पूर्वक उनका स्वागत किया और भोजन कराया, जिससे यमराज ने प्रसन्न होकर यमुना को वरदान मांगने को कहा। जिन्होंने मांगा कि इसी तिथि पर जो भी भाई अपने बहन के पास जाए और बहन भाइयों का सत्कार कर उसे तिलक लगाकर उसे अच्छा भोजन कराये तो वह पाप और जीवन मृत्यु के बंधन से मुक्त हो जाएगा। यमराज के तथास्तु कहते ही इस पर्व का आरंभ हुआ। हर वर्ष भाई की आयु वृद्धि तथा सर्व कामना पूर्ति के उद्देश्य से बहने यह पर्व मनाती है। इस अवसर पर भाई बहनों के घर जाते है जहां बहने तिलक लगवाकर उनकी आरती उतारती हैं । बहने उन्हें यथा साध्य भोजन कराती है। भाई उन्हें उपहार प्रदान करते हैं।

रक्षाबंधन पर जहां भाई, बहन की रक्षा करने का वचन देते हैं तो वही भाईदूज पर बहने भाइयों की रक्षा का वरदान यमराज से मांगती है। बिलासपुर में भी पारंपरिक रूप से भाई दूज का पर्व मनाया गया। कई स्थानों पर पारंपरिक पूजा अर्चना भी की गई।
