पखांजुर से बिप्लब कुण्डू
पखांजुर,,
अंतागढ़ विकासखंड के ग्राम हवेचुर में धर्मांतरण के विरोध में आदिवासी समाज द्वारा बैठक कर इसके विरोध में अंतागढ़ एसडीम एस. के. पैकरा के नाम अंतागढ़ तहसीलदार सह ताड़ोकी थानाप्रभारी छत्रपाल कँवल को ज्ञापन सौंपा गया।
मामला ग्राम हवेचुर का है जहां की दो नाबालिग बच्चियों लक्ष्मी व लच्छाय जो कि बारह से पंद्रह वर्ष की हैं अपने परिवार के सदस्यों के साथ ना रह कर गाँव के ही एक व्यक्ति सुखदेव के घर में रहने लगी हैं, ग्रामीणो का आरोप है कि नाबालिग बच्चियों को इस तरह से डराया व धमकाया गया है की वह आज अपने ही परिवारजन जिनमे की नानी, चाचा-चची व एक छोटा भई सम्मिलित हैं उनके साथ वे नहीं रहना चाहते और ना ही वे अपने घर वापस आना चाहते हैं। वहीं इस सम्बंध में परिवारजन सह ग्रामवासियों व समाज के वरिष्ठजनो का कहना है कि बच्चियाँ अपने मूल धर्म में वापस आकर अपने समाज के बीच रहें व इस हेतु परिवार सह समाज के लोग भी नाबालिग बच्चियों को उनकी इच्छा के अनुरूप वे जहां भी रहना चाहें सुरक्षित रखने को तैय्यार हैं।
पिछले पंद्रह से बीस दिनो के भीतर यह दूसरा मामला है, जब मतांतरण के विरोध में ग्रामीण लामबंद हुए हैं। बीते दिनो अंतागढ़ विकासखंड के ग्राम मासबरस में मतांतरित चार परिवारों के घरों को ग्रामीणो द्वारा तोड़ फोड़ कर ध्वस्थ कर दिया था, तथा उन्हें अपने मूल धर्म में वापस आने को आदेशित किया गया था, मामले ने तूल पकड़ा व बात तब भी अंतागढ़ थाने तक पहुंची गई थी।आदिवासी परंपरा के साथ ही प्रकृति के रंगों से सजा बस्तर संभाग, आज दो भागों में विभाजित किया जा चुका है, उत्तर बस्तर और दक्षिण बस्तर, किसी समय बस्तर का नाम सुनकर एक सुखद प्राकृतिक सुंदरता के साथ आदिवासी समाज के लोगों का सहज और सरल रूप आंखो के सामने आने लगता था, किंतु वक्त के साथ अब सब कुछ बदलने लगा है।
बस्तर को प्रकृति ने जो अथाह प्राकृतिक संसाधन दिए हैं आज वही संसाधन बस्तर की सुंदरता के लिए अभिशाप बनने लगा है, प्राकृतिक संसाधनों का निर्ममता से दोहन लगातार जारी है।जातिगत दृष्टिकोण से बस्तर की जनसन्ख्या मे 70 प्रतिशत जनजातीय समुदाय जैसे गोंड, मारिया, मुरिया, भतरा, हल्बा, धुरुवा समुदाय आदि आते हैं।वहीं सर्व आदिवासी समाज में लगभग सभी जनजातीय समूहों को अंगीकृत किया गया है।
किंतु आज आदिवासी समाज अपनी आदिम संस्कृति को बचाने जद्दोजहद कर रहा है, एक तो आधुनिकता की अंधी दौड़ और उसपर धार्मिक मतांतरण के बढ़ते मामलों ने आदिवासी संस्कृति के तानेबाने को उलझा दिया है, वहीं बस्तर संभाग में नक्सलवाद के आने के बाद आदिवासी समाज की स्थिति दो पाटों के बीच पीसने जैसी हो गई है, नक्सलवाद के खात्मे के लिए आए सुरक्षा बलों की वजह से आदिवासी अपने पारंपरिक आखेट जो उनके लिए किसी मल्टीप्लेक्स में सिनेमा देखने से कम नहीं होता था, आज वो समाप्ति की कगार पर है।
आदिवासी समाज आज सबसे ज्यादा अगर किसी बात से चिंतित है तो वो है ईसाई मिशनरी द्वारा कराया जाने वाला मतांतरण, इन कुछ दिनों में कुछ ऐसे मामले सामने आने लगे हैं जिसे समय रहते नही रोका गया तो किसी बड़े संघर्ष की अनहोनी से इनकार नहीं किया जा सकता।ऐसे तो ईसाई मिशनरी क्षेत्र में सालों से अंदर ही अंदर अपने धर्म का प्रचार सालों से कर रहे हैं, लगातार मतांतरण के मामले अखबारों की सुर्खियां बनती रहती हैं.!