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सस्पेंड आईपीएस रजनेश सिंह को हाईकोर्ट से तगड़ा झटका लगा है। हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस अरूप कुमार गोस्वामी और जस्टिस पार्थ प्रीतम साहू की डिवीजन बेंच ने अपने फैसले में कहा है कि, राज्य शासन की ओर से उनके निलंबन आदेश को यूनियन पब्लिक सर्विस के नियमों का उल्लंघन नहीं माना जा सकता। कोर्ट ने केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (कैट) से उनके पक्ष में दिए गए फैसले को खारिज कर दिया है। बता दें, कि राज्य शासन ने फोन टेपिंग व अनियमितता के आरोप में उन्हें 2019 में निलंबित कर दिया था।
छत्तीसगढ़ के आईपीएस रजनेश सिंह साल 2014 से 2017 तक एंटी करप्शन ब्यूरो में एसपी थे। इस दौरान उन्होंने अपने अधीनस्थ अधिकारियों से दस्तावेजों में बैक डेट में रिकार्ड दुरुस्त कराया, साथ ही नियमों की अनदेखी कर आम नागरिकों का फोन टेपिंग करा जानकारी हासिल किया, फिर उसे बतौर साक्ष्य कोर्ट में प्रस्तुत किया था। साथ ही शासन को गुमराह कर अपने पद का दुरुपयोग करने का आरोप भी उन पर है। इन आरोपों को लेकर राज्य शासन ने विभागीय जांच के आदेश दिए और उन्हें 9 फरवरी 2019 को सस्पेंड कर दिया। जिसे लेकर रजनेश सिंह ने केंद्र सरकार के समक्ष अपील प्रस्तुत की, जिसे केंद्र सरकार ने खारिज कर दिया, तो उन्होंने केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण में केस लगाया। केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण जबलपुर ने 16 नवंबर 2021 को उनके निलंबन आदेश को बहाल करते हुए दो माह के भीतर उन्हें सभी देयकों का लाभ देने का आदेश दिया था।
इधर राज्य शासन ने आईपीएस रजनेश सिंह के पक्ष में दिए गए कैट के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की। हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने मामले की प्राम्भिक सुनवाई के बाद कैट के आदेश पर रोक लगा दी थी। मामले में सभी पक्षों को सुनने के बाद हाईकोर्ट ने उनके निलंबन आदेश को सही ठहराया और कैट के फैसले को खारिज कर दिया है।
