छोटे अपराधों में आधी सजा काट चुके बंदियों के लिए खुशखबरी, जानिए सुप्रीम कोर्ट ने इस बारे में क्या कहा

शीर्ष अदालत ने कहा है कि ऐसे छोटे अपराध वाले कैदियों को पहचानें, जो अपने अपराध की आधी सजा काट चुके हैं। उन्हें प्ली बारगेनिंग करवाकर जेलों से मुक्त करें।

सुप्रीम कोर्ट ने जेलों में भीषण भीड़ और अदालतों में मुकदमों और अपीलों के निपटने में लगने वाले लंबे समय को देखते हुए यह कदम उठाया है।

छत्तीसगढ़ का बेहतर प्रदर्शन
इस मामले में छत्तीसगढ़ जैसे छोटे राज्य ने प्रगति की है। उसने 31 मामलों में फैसला ले लिया है। छत्तीसगढ़ ने हर जिले और तालुका से तीन मजिस्ट्रेटों को शनिवार को जेलों में भेजकर प्ली बारगेनिंग माफी पर फैसला लेने की पहल की है। सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली, गुवाहाटी, केरल, मध्य प्रदेश, ओडिशा, राजस्थान और पश्चिम बंगाल को आदेश दिया है कि वे भी ऐसे प्रयास करें और प्ली बारगेनिंग के माध्यम से अपराधियों को रिहा करें। साथ ही अन्य राज्यों कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात से कहा है कि वे भी इस मॉडल को अपनाएं। कोर्ट इस मामले की लगातार निगरानी कर रहा है। इस पर अगली सुनवाई 14 सितंबर को होगी।

क्या है ‘प्ली बारगेनिंग’
यह सजा माफी का एक प्रावधान है। इसे सात वर्ष या उससे कम के सजा पाने वाले अपराधों में, अपराधी के गुनाह कबूलने पर लागू किया जाता है। माफी के प्रावधान धारा 265ए से 265एल को 2005 में संशोधन के जरिये सीआरपीसी में जोड़ा गया था। गंभीर अपराधों जैसे हत्या, दुष्कर्म, डकैती, बच्चों के प्रति अपराधों में यह प्रावधान लागू नहीं है।

17 वर्ष बीतने के बाद भी परिणाम सिफर
प्ली बारगेनिंग का प्रावधान लागू होने के 17 वर्ष बाद भी इस दिशा में संतोषजनक प्रगति नहीं हुई है। इसका कोई आंकड़ा मौजूद नहीं है कि कितने अपराधियों को प्ली बारगेनिंग के तहत छोड़ा गया। यही वजह है कि सर्वोच्च अदालत ने इस मामले को अपने हाथों में लिया है। जस्टिस एसके कौल की पीठ ने ही एक अन्य स्वत: संज्ञान मामले में यूपी की जेलों में बंद 60 वर्ष से अधिक के कैदियों को रिहा करने, और जो अपनी सजा की आधी अवधि काट चुके हैं, उन्हें सशर्त माफी देने एवं पैरोल पर छोड़ने के लिए सलाहकार बोर्ड बनाने पर सुनवाई कर रहा है।

इन कारणों से ‘प्ली बारगेनिंग’ लोकप्रिय नहीं

1- ‘प्ली बारगेनिंग’ के लोकप्रिय नहीं होने के पीछे एक कारण यह बताया गया है कि ‘प्ली बारगेनिंग’ के विफल होने की स्थिति में अपराधियों को सख्त सजा मिलने की आशंका सामने आई है। उनका कहना है कि यदि वे अपनी गलती मान लेते हैं और कोर्ट में माफी की अर्जी देते हैं। यदि कोर्ट ने उसे स्वीकार नहीं किया और खरिज कर दिया, तो मुकदमा चलने पर उन्हें पूरी सजा मिलेगी क्योंकि वे अपनी गलती स्वीकार कर चुके हैं। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यह चिंता का विषय है, इस पर विस्तृत दिशा-निर्देश दिए जा सकते हैं।

2- भारत में ‘प्ली बारगेनिंग’ दंड केंद्रित है, जबकि अन्य देशों में यह अपराध की प्रकृति पर केंद्रित है। भारत में अपराधी यदि अपना दोष स्वीकार करता है और कम सजा लेकर छूटता है, तो उस पर दंडित होने का दाग बना रहता है। जिसके सामाजिक परिणाम होते हैं। इस कारण वे इससे हिचकते हैं। कोर्ट को सलाह दी गई है कि न्यायिक आदेश से इस कमी को दूर किया जा सकता है। लेकिन कोर्ट ने इससे इनकार कर दिया और कहा कि यह काम विधायिका का है।

अमेरिका और अन्य विकसित देशों में क्या हैं प्रावधान
यहां अपराध की प्रकृति के अनुसार माफी के प्रावधान हैं। इसके अलावा माफी तभी दी जाती है, जब अभियुक्त मुकदमा न लड़े और सीधे अपना दोष स्वीकार कर ले। माफी की इन विधियों को अल्फोर्ड प्ली और नोलो कंटेंडर प्ली कहा जाता है। इनमें छूटने पर अपराधी पर दोष सिद्धी या दंडित होने का दाग नहीं रहता। भारत में इसे लागू करने के लिए कोर्ट प्रयास कर रहा है।

कुछ महत्वपूर्ण जानकारी
4.5 लाख के लगभग दोषी जेलों में बंद हैं।
तीन लाख के लगभग इनमें से विचाराधीन कैदी (68 फीसदी अनपढ़/स्कूल छोड़ चुके)

इन राज्यों को आदेश : दिल्ली, गुवाहाटी, केरल, मध्य प्रदेश, ओडिशा, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, गुजरात एवं छत्तीसगढ़।

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