
पखांजूर से बिप्लब कुण्डू-

पखांजूर।
वर्षा शुरू होते ही क्षेत्र के शालाओं की छत टपकना एक आम समस्या बन गई है। पहली वर्षा के बाद ही क्षेत्र के कई स्कूलों में पक्का भवन होने के बाद भी झिल्ली लगा शाला का संचालन करना पड़ता है। शाला भवन का निमार्ण इतना घटिया हुआ है की निमार्ण के कुछ साल बाद ही शाला भवन की छत टपकने लगती है पानी और कमरों में पानी भर जाता है। इसी समस्या से जूझ रही माध्यमिक शाला कलारकुटनी में पहली ही वर्षा के बाद शाला के छत पर झिल्ली लग गई। इसके बाद भी शाला की छत टपक ही रही है पानी ।जिससे शिक्षक और छात्र दोनों परेशान है।
वर्षा आते ही स्कूलों की छतों से पानी टपकना एक बड़ी समस्या है। कोयलीबेड़ा के अधिकांश शालाओं में पहली वर्षा के बाद ही स्कूलों की छत टपकने लगती है। ग्राम कलारकुटनी में बनी माध्यमिक शाला भवन भी इसी समस्या से जूझ रहा है। हर वर्ष बारिश शुरू होते ही शाला भवन की छत टपकने लगती है एसे में शिक्षकों द्वारा वर्षा के ठीक पहले स्कूल की छत में त्रिपाल लगानी पड़ती है। अगर यह त्रिपाल न लगाई जाऐ तो पूरे स्कूल की छत से इतना पानी टपकेगा की कमरों में पानी ही पानी हो जाऐगा एसे में छात्रों का कक्षा में बैठना मुशकील हो जाऐगा। यह समस्या क्षेत्र के एक स्कूल की नहीं अधिकांश शालाओं का यही हाल है। इसका मुख्य कारण निमार्ण एजेंसी द्वारा शाला भवन का निमार्ण इतना घटिया किया गया है की शालाओं की छत कुछ ही वर्ष बाद से ही टपकने लगती है पानी।

शाला के प्रभारी प्रधान पाठक के आर ठाकरे ने बताया की हर वर्ष बारिश शुरू होते ही तीन हजार की झिल्ली खरीद कर शाला भवन की छत में लगाना पड़ता है इसके बाद भी छत से पानी टपकता ही है। अगर झिल्ली न लगाया जाऐ तो पूरे कमरों में पानी भर जाऐगा और छात्र बैठ नहीं पाऐगे। इस संबध में विभाग को कई बार सूचना दी गई है और छत की मरम्मत की मांग की गई है पर अब तक काम स्वीकृत ही नहीं हो पाया है।
शासन की ओर से हर वर्ष स्कूलों की मरम्मत तथा रखरखाव के लिए निश्चित राशि भेजी जाती है इसके साथ ही अधिक खराब हो चुकी शालाओं के लिए हर वर्ष बड़ी राशि की स्वीकृती दे शालाओं की मरम्मत कराई जाती है पर शिक्षकों को आने वाली राशि के साथ साथ विभाग को भी आने वाली राशि भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाती है यहीं कारण है की हर वर्ष लाखों रूपए खर्च करने के बाद भी शालाओं की स्थिती खराब ही है।
