
-कोटा तहसीलदार प्रमोद गुप्ता के द्वारा पंचायत चुनाव में आचार-संहिता लगने के बावजूद भी राजनीतिक दलों के दबाव में आकर अवैधानिक-कार्य करते रहे, सरपंच-पद की आदिवासी महिला प्रत्याशी से नामांकन जमा करने कि समय-सीमा समाप्त का कारण बताते हुए नामांकन-वैध करने के लिए 25 हजार की मांग की गई, आधा दर्जन से ऊपर ग्राम पंचायत में आरक्षित-आदिवासी बैगा सीटों में अस्थाई जाती प्रमाण-पत्रों के नाम पर हजारों रुपए उगाही का मामला जब मीडिया के संज्ञान में आने के बाद, मीडिया-कर्मियों ने रिटर्निंग अधिकारी प्रमोद गुप्ता जो कि वर्तमान कोटा तहसीलदार भी है संबंधित-सवाल पूछने पर मीडिया-कर्मियों के सवालों का जवाब देने के बजाए, मीडिया कर्मियों से ही दुर्व्यवहार करने लगें थे, नियम-कानून बताने लगे, काउंटर सवालो का जब तहसीलदार को जवाब नही सुझा तो रिटर्निंग-अधिकारी का रौब झाड़ते हुए पुलिस-बुलाकर मीडिया कर्मियों पर कार्रवाई करने की धमकी देने लगे, जिसके बाद मीडिया कर्मियों से तहसीलदार कोटा प्रमोद गुप्ता से काफी देर तक इस मामले में तीखी बहस भी हुई थी, कुछ देर बाद पंचायत चुनाव लड़ रहे अभ्यर्थियों ने भी अपनी बात रखी पर रिटर्निंग-अधिकारी को अभ्यर्थियों की बातों से कोई कोई फर्क नही पड़ा,अभ्यर्थियों से भी तानाशाही रवैया अपनाते हुए दुर्व्यवहार करने लगे जिसके बाद अभ्यर्थियों के समर्थकों ने तहसीलदार कोटा के खिलाफ नारेबाजी करने लगे, मीडिया-कर्मियों से दुर्व्यवहार मामले की जानकारी लगते ही कोटा प्रेस के सभी पत्रकार जनपद पंचायत कोटा में इकट्ठा होने लगे, मीडिया कर्मियों से दुर्व्यवहार मामले के बाद कोटा प्रेस के पत्रकारों द्वारा 08 जनवरी को तहसीलदार कोटा के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए प्रमोद गुप्ता को त्वरित-निलंबित करने की मांग को लेकर कोटा एसडीएम-कार्यालय में धरना प्रदर्शन करते हुए छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल जी के नाम का ज्ञापन सौंपा गया, गिरते पानी मे भी कोटा प्रेस के पत्रकारों ने तहसीलदार कोटा हटाओ कोटा बचाओ के नारेबाजी करते रहे, धरने-प्रदर्शन के बीच अखिल भारतीय-पत्रकार-सुरक्षा-समिति के प्रदेश-पदाधिकारियो सहित कोटा/रतनपुर बार एसोसिएशन के वकीलों ने भी मीडिया कर्मियों के धरना-प्रदर्शन को अपना समर्थन दिया।
नगर-पंचायत चुनाव संपन्न के बाद भी तहसीलदार कोटा प्रमोद गुप्ता के खिलाफ किसी भी प्रकार की कोई कार्यवाही नही होना वर्तमान समझ से परे है, इनके ऊपर कार्यवाही के बजाए इन्हें इनाम के रूप में पुनः इन्हें त्रिस्तरीय-पंचायत चुनाव के लिए रिटर्निंग अधिकारी बना दिया गया आश्चर्य है-?क्या पूरे बिलासपुर जिले में जिला-प्रशासन को या फिर जिला-निर्वाचन अधिकारी को कोई और अधिकारी नही मिला था, या फिर कोटा विकासखंड में अधिकारियों का अकाल पड़ गया है-?या फिर तहसील-कार्यालय में राजस्व विभाग में इनके कद का इनके रैंक का दूसरा अधिकारी नही है, इससे पहले भी तहसील कार्यालय में तहसीलदार के रूप में अधिकारी कार्य कर चुके हैं,और अभी भी राजस्व मामले के जानकर, समझदार आमजनो के बातो को सुनने वाले अधिकारी मौजूद हैं,उसके बाद भी प्रमोद गुप्ता जैसे अधिकारियों के सेवा ली जा रही है,ऐसे अधिकारियों को तो जनता से जुड़े या फिर जनहित से जुड़े मामलों से अलग बैठाए जाना चाहिए जहा पर इनसे किसी भी प्रकार के सवाल ना पूछे जाए, छत्तीसगढ़ में ऐसे बहुत से जिले मौजूद हैं,जिला प्रशासन सहित छत्तीसगढ़ शासन को इस पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
