नेकी भी है तो बदी भी यक़ीनन यहीं है,
यह किसी और जहां का फितूर नहीं है।
कहने को तो हम खुद को इंसान कहते हैं लेकिन इसी जहां में इंसानियत के मुकाबिल वहशी दरिंदे और पत्थर दिल जालिमों की भी कोई कमी नहीं है । विघ्नसंतोषी लोगों के दिलों में तो चैन किसी को परेशान कर ही आता है ।यह सब कुछ इसलिए कहना पड़ रहा है क्योंकि धार्मिक नगरी रतनपुर में एक ऐसा अधर्म हुआ है जिसकी हर तरफ भर्त्सना की जा रही है। देश भर में कई स्थानों पर गरीब जरूरतमंदों की मदद के लिए नेकी की दीवार विकल्प बनकर उभरी है। रतनपुर में भी कुछ समाजसेवी और जागरूक लोगों ने मिलकर कोसगाई मंदिर, भेड़ी मुड़ा वार्ड क्रमांक 8 में नेकी की दीवार परंपरा की शुरुआत की थी ,जहां रतनपुर के सहृदय, सेवाभावी लोग स्वस्फूर्त जरूरतमंद लोगों के लिए कुछ जरूरी चीजें इस दीवार पर टांग रहे थे। जिन कपड़ों का इस्तेमाल अब लोग नहीं करते, चादर ,गद्दे, तकिया या फिर कोई और घरेलू सामान जो किसी जरूरतमंद के काम आ सके, उसे लोग चुपके से यह रख जाते थे, तो वही ऐसे साधनहीन, जरूरतमंद गरीब लोग बिना किसी से पूछे, बिना किसी के आगे हाथ पसारे अपनी जरूरत के सामान आतसम्मान की रक्षा करते हुए यहां से ले जाते थे। नेकी की दीवार अपनी नेक नियति के वजह से धार्मिक नगरी में प्रसिद्ध हो रही थी, लेकिन जहां उजाला है, वहीँ आसपास ही कहीं अँधेरे का भी वजुद होता ही है।
यहाँ भी नेकी के पीछे पीछे बदी भी कब चली आई, किसी को पता भी नहीं चला । एक तरफ जहां दूसरों के दर्द में पीड़ा महसूस करने वाले नेक दिल लोग हैं जो उनकी परेशानी कम करने के इरादे लिए नेकी की दीवार में अपना सामान उन्हें देने के मकसद से छोड़ रहे थे तो वहीं किसी असामाजिक तत्वों ने यहां आग लगा दी। रात के अंधेरे में पता नहीं किसने नेकी की दीवार पर टंगे कपड़ों और नीचे रखें अन्य सामानों को आग के हवाले कर दिया, जिससे यहां अधिकांश सामान जलकर खाक हो गए या फिर अनुपयोगी बन गए। ऐसा नहीं है कि इस आगजनी से लाखों करोड़ों का नुकसान हो गया हो लेकिन लोग इस बात से हैरान है कि आखिर वह कैसा पत्थर दिल इंसान होगा जिसे गरीब जरूरतमंदों को मिलने वाले उतरन से भी इतनी ईर्ष्या हो रही है। आखिर इन सामानों से इतना गुस्सा, इतनी बेचैनी का एहसास पता नहीं किसमें जाग गया , जिसने
ऐसे साधन हीन लोगों के लिए उपलब्ध मामूली चीजों को भी आग लगाकर जरूर मन ही मन अट्टहास किया होगा। उसके अट्टहास में शैतान की हंसी छुपी होगी, क्योंकि कोई भी सामान्य व्यक्ति इस तरह की हरकत नहीं कर सकता, इसके लिए तो इंसान को बेहद क्रूर ,पत्थर दिल और राक्षसी प्रवृत्ति का होना होगा। पता नहीं धार्मिक नगरी रतनपुर में कहां से ऐसा कोई राक्षस आ गया है। असुरों का संहार करने वाली मां महामाया की नगरी में ही ऐसा कोई तो नराधम है जो आम इंसान बनकर आम लोगों के बीच छुपा हुआ है। उस चेहरे की कलई कभी न कभी उतरेगी जरूर, लेकिन भगवान की लाठी में आवाज नहीं होती। जिस किसी ने गरीबों की इस मामूली सी दौलत में आग लगाई है, उस पर जिस दिन गरीबों की आह कहर बनकर टूटेगी तब उसे अपने किए का एहसास होगा। वैसे कोई सरफिरा ही होगा जो इस तरह की हरकत कर सकता है । नहीं तो किसी संवेदनशील व्यक्ति के तो हाथ इन पुराने कपड़ों और टूटे-फूटे सामानों में आग लगाने के दौरान कांप उठते। रतनपुर के संवेदनशील लोग नेकी की दीवार में आगजनी की घटना से हतप्रभ है। जाहिर है रतनपुर में ही परोपकारी और सहृदय लोग भी हैं जिन्होंने नेकी की दीवार की शुरुआत की थी लेकिन अफसोस इसी शहर में कोई तो ऐसा भी है जिसे इंसान कहना इंसानियत से नाइंसाफी होगी। वैसे इस मामूली हैसियत के लोगों के साथ हुई नाइंसाफी के बाद पुलिस उनके लिए इंसाफ तलाशेगी इसकी किसी को भी उम्मीद नहीं है, इसलिए ऐसी कोई जांच नहीं होगी, जिसमें नेकी की दीवार में आगजनी करने वाले की तलाश हो सके। किसी ने ईश्वर के बंदों के खिलाफ जुर्म किया है इसलिए उम्मीद की जा रही है कि यहां न्याय भी दैवीय होगी।