छत्तीसगढ़ बिजली कर्मचारी संघ–महासंघ का सोलर पैनल का दबावपूर्वक स्थापना के आदेश पर विरोध

रायपुर, 11 नवम्बर 2025।
छत्तीसगढ़ स्टेट पावर ट्रांसमिशन/डिस्ट्रिब्यूशन/जनरेशन कंपनी लिमिटेड के अंतर्गत कार्यरत अधिकारियों एवं कर्मचारियों के ऊपर कंपनी प्रबंधन द्वारा जबरन सोलर पैनल स्थापना का आदेश थोपे जाने के खिलाफ छत्तीसगढ़ बिजली कर्मचारी संघ–महासंघ ने कड़ा विरोध दर्ज किया है। संघ ने इसे “कर्मचारी विरोधी एवं आर्थिक रूप से नुकसानदायक कदम” बताते हुए तत्काल आदेश निरस्त करने की मांग की है।

महासंघ के महामंत्री नवरतन बरेठ जी ने पत्र के माध्यम से कहा कि प्रधानमंत्री सूर्यघर मुफ्त बिजली योजना केंद्र सरकार की महत्वपूर्ण योजना है, जिसका उद्देश्य नागरिकों को स्वच्छ ऊर्जा के उपयोग हेतु प्रेरित करना है, न कि किसी पर बाध्यता थोपना। केंद्र सरकार द्वारा अपने किसी भी विभाग या कंपनी के कर्मचारियों को सोलर पैनल लगाने के लिए बाध्य नहीं किया गया है। इसके बावजूद केवल छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत कंपनियों में कार्यरत कर्मचारियों पर यह आदेश लागू करना सर्वथा अनुचित है।

संघ ने यह भी स्पष्ट किया कि देश के किसी अन्य राज्य के विद्युत विभाग में इस प्रकार की अनिवार्यता नहीं है। साथ ही, विद्युत कंपनी में कार्यरत कर्मचारियों को केंद्रीय विद्युत नियामक आयोग 2010 के तहत जो 50% और 25% की विशेष रियायती दर (Fringe Benefits) की सुविधा प्राप्त है, उसे समाप्त या बाधित नहीं किया जा सकता। संघ का कहना है कि इस रियायत को खत्म कर सोलर पैनल लगाने की अनिवार्यता थोपना “कर्मचारियों के अधिकारों पर कुठाराघात” है।

संघ ने किराए के मकानों और बहुमंजिला इमारतों में निवासरत कर्मचारियों के लिए इस आदेश को अव्यवहारिक बताया। किराए के मकान में रहने वाले कर्मचारियों के पास सोलर पैनल से उत्पन्न बिजली का वास्तविक लाभ नहीं पहुँच सकेगा, जबकि भुगतान और रखरखाव की पूरी जिम्मेदारी उन्हीं पर डाली जा रही है। बहुमंजिला इमारतों में रह रहे अधिकारियों/कर्मचारियों के लिए सामूहिक नेट मीटरिंग की प्रक्रिया जटिल है और उसमें सभी निवासियों की सहमति आवश्यक होती है, जो व्यावहारिक रूप से संभव नहीं है।

इसके अलावा, अल्पवेतन भोगी कर्मचारियों के लिए सोलर पैनल लगवाने का खर्च और ब्याज सहित भुगतान अत्यधिक बोझिल है। एक किलोवाट का सोलर पैनल लगाने पर लगभग ₹70,000 का खर्च आता है और बैंक लोन लेने पर 10 वर्षों तक मासिक लगभग ₹900 की किश्त देनी होगी, जिससे कुल भुगतान ₹1 लाख से अधिक हो जाएगा — जो मासिक ₹1000 बिजली बिल से कहीं अधिक बोझ साबित होगा।

महासंघ ने सुझाव दिया कि यदि कंपनी वास्तव में सौर ऊर्जा के उपयोग को बढ़ावा देना चाहती है, तो पहले चरण में अपने सभी कार्यालयों, उपकेंद्रों और सरकारी परिसरों में सोलर पैनल लगाए जाएँ। साथ ही कर्मचारियों पर आर्थिक दबाव न डालते हुए सरकार द्वारा दी जाने वाली सब्सिडी का लाभ सीधे कंपनी खाते में समायोजित कर शेष राशि की व्यवस्था कंपनी स्वयं करे।

संघ ने यह भी प्रस्ताव दिया कि कंपनी में कार्यरत कर्मचारियों से संबंधित किसी भी आदेश को लागू करने से पहले सबसे बड़े श्रमिक संगठन — छत्तीसगढ़ बिजली कर्मचारी संघ–महासंघ — से चर्चा और सहमति ली जाए, ताकि कंपनी, राज्य और कर्मचारियों सभी के हित सुरक्षित रह सकें।

महासंघ ने चेतावनी दी कि यदि कंपनी प्रबंधन ने एकतरफा आदेश वापस नहीं लिया तो संगठन आंदोलनात्मक कदम उठाने के लिए बाध्य होगा।

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