

बिलासपुर। धरती पर दीपावली का उत्सव मनाने के बाद अब बारी है देवताओं की दीपावली की। बुधवार 5 नवंबर 2025 को पूरे देश के साथ बिलासपुर में भी देव दीपावली पूरे श्रद्धा और भक्ति भाव के साथ मनाई जाएगी। सनातन परंपराओं के अनुसार, यह पर्व कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को मनाया जाता है, जिसे त्रिपुरारी पूर्णिमा भी कहा जाता है।
पौराणिक मान्यता है कि इसी दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नामक दैत्य का संहार किया था और भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार धारण किया था। इसीलिए इस तिथि का धार्मिक महत्व अत्यंत विशेष माना गया है। पूर्णिमा तिथि 4 नवंबर की रात 10:36 बजे से प्रारंभ होकर 5 नवंबर की शाम तक रहेगी, इसलिए देव दीपावली का पर्व 5 नवंबर को ही मनाया जाएगा।

नदियों में स्नान, दीपदान और उपवास की परंपरा

इस दिन सुबह तड़के श्रद्धालु पवित्र नदियों और सरोवरों में स्नान करते हैं। मान्यता है कि इस स्नान से आत्मा शुद्ध होती है, पापों का क्षय होता है और पुण्य की प्राप्ति होती है। स्नान के पश्चात भगवान शिव, विष्णु, देवी लक्ष्मी और चंद्रदेव की पूजा-अर्चना की जाती है।
शाम होते ही घरों, मंदिरों और नदी तटों पर मिट्टी के दीपक जलाए जाते हैं। कुछ स्थानों पर 365 दीप जलाने की परंपरा भी है, जो पूरे वर्ष के प्रकाश और शुभता का प्रतीक मानी जाती है। लोग इस दिन उपवास रखकर दान-पुण्य करते हैं — भोजन दान, वस्त्रदान और दीपदान को अत्यंत पुण्यदायी बताया गया है।

बिलासपुर में तैयारियाँ और चुनौतियाँ
बिलासपुर में भी तोरवा स्थित अरपा छठ घाट पर देव दीपावली का आयोजन होता है। यहां तड़के से ही श्रद्धालुओं की भीड़ स्नान और दीपदान के लिए उमड़ पड़ती है। घाट पर हजारों दीपों की ज्योति से एक दिव्य दृश्य बन जाता है।
हालांकि हर वर्ष की तरह इस बार भी आयोजन किसी एक संस्था या आयोजक के अधीन नहीं होता, इसलिए व्यवस्था की कमी देखने को मिलती है। श्रद्धालुओं की भीड़ के कारण सुबह तोरवा पुल और आसपास के मार्गों पर ट्रैफिक जाम की स्थिति बन जाती है।
स्थानीय श्रद्धालुओं ने बताया कि यातायात विभाग को इस दिन विशेष व्यवस्था करनी चाहिए ताकि लोगों को परेशानी न हो। साथ ही, छठ पर्व के बाद घाट की साफ-सफाई पूरी तरह नहीं हो पाई है, इसलिए प्रशासन को देव दीपावली से पहले घाट की स्वच्छता और सुरक्षा का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
आस्था और दिव्यता का संगम
देव दीपावली केवल दीप जलाने का पर्व नहीं, बल्कि भक्ति, शुद्धता और दान की भावना का प्रतीक है। यह वह दिन है जब माना जाता है कि देवता स्वयं धरती पर उतरकर दीपदान करते हैं। बिलासपुर में भी यह पर्व श्रद्धालुओं के लिए आध्यात्मिक उत्सव बन गया है — जहां भक्ति की रोशनी, दिव्यता की गूंज और आस्था की लहरें अरपा तट पर एक साथ मिलती हैं।
