लोक आस्था का महा पर्व छठ शनिवार से होगा आरंभ, अरपा महा आरती, संध्या और उषा अर्घ्य के मुहूर्त हुए जारी

प्रवीर भट्टाचार्य

लोक आस्था, श्रद्धा और सूर्य उपासना के सबसे पवित्र पर्व छठ का आरंभ इस शनिवार से हो जाएगा। यह पर्व मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ सहित पूरे देश में बड़े ही हर्षोल्लास और अनुशासन के साथ मनाया जाता है। इस पर्व की विशेषता यह है कि इसमें न तो कोई मूर्तिपूजा होती है और न ही कोई आडंबर, बल्कि यह शुद्धता, संयम और प्रकृति के प्रति आभार का उत्सव है।

छठ महापर्व की उत्पत्ति को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं। पुराणों के अनुसार, सूर्यदेव की उपासना और अर्घ्य देने की परंपरा त्रेतायुग से आरंभ हुई। माना जाता है कि भगवान श्रीराम और माता सीता जब अयोध्या लौटे थे, तब उन्होंने कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को सूर्यदेव की आराधना कर राज्याभिषेक की सफलता के लिए आशीर्वाद मांगा था। इसी दिन से छठ पूजा की परंपरा शुरू हुई।

एक अन्य कथा के अनुसार, कर्ण, जो सूर्यदेव के पुत्र थे, वे प्रतिदिन सूर्य को अर्घ्य देते थे। उनकी शक्ति और तेज का रहस्य यही सूर्य उपासना थी। इसी परंपरा को जनमानस ने “छठ” के रूप में अपनाया।
वहीं, कुछ मान्यताओं के अनुसार, द्रौपदी और पांडवों ने भी संकट के समय सूर्यदेव की आराधना कर राज्य और समृद्धि की प्राप्ति की थी।

छठ पर्व चार दिनों तक मनाया जाता है। यह पर्व पूरी तरह से सात्विकता, स्वच्छता और आत्मसंयम पर आधारित होता है।

पर्व की शुरुआत नहाय-खाय से होती है। इस दिन व्रती स्नान कर शुद्ध भोजन बनाते हैं और सूर्यदेव का आह्वान कर आरंभ करते हैं। भोजन में लौकी-भात और चने की दाल प्रमुख रहती है।

दूसरे दिन व्रती पूरे दिन निर्जला उपवास रखते हैं और शाम को सूर्यास्त के बाद गुड़ से बनी खीर, रोटी और केले का प्रसाद बनाकर अर्घ्य देते हैं। इसके बाद उपवास की शुरुआत होती है जो 36 घंटे तक जल तक ग्रहण किए बिना चलता है।

तीसरे दिन संध्या बेला में सभी व्रती घाटों या नदियों के तट पर पहुंचकर अस्त होते सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं। पूजा स्थल को केले के पेड़ों, बांस की टोकरी और दीपों से सजाया जाता है। व्रती के परिजन सर पर दउरा रखकर घाट पर पहुंचते हैं।

चौथे और अंतिम दिन व्रती सुबह सूर्योदय से पहले पुनः घाट पर पहुंचते हैं और उदयमान सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं। इसके बाद व्रत का पारण होता है और घर में प्रसाद वितरण किया जाता है।

छठ महापर्व पूरी तरह से पर्यावरण और प्रकृति से जुड़ा हुआ है। इसमें सूर्यदेव और छठी मैया की पूजा के माध्यम से जल, वायु, भूमि और प्रकाश — इन सभी पंचतत्वों का आभार प्रकट किया जाता है। पर्व में प्रयुक्त सभी सामग्री — जैसे बांस की टोकरी, मिट्टी के दीये, गुड़, फल, गन्ना और ठेकुआ — प्रकृति से जुड़ी होती हैं।

छठ केवल एक पर्व नहीं, बल्कि आत्मशुद्धि, निष्ठा और लोक-परंपरा का प्रतीक है। यह भारत की उस संस्कृति को दर्शाता है जिसमें प्रकृति और देवत्व के प्रति कृतज्ञता का भाव सर्वोपरि है।

छठ घाट में की जा रही है भव्य तैयारी

बिलासपुर में विगत 25 वर्षों से तोरवा छठ घाट पर भव्य आयोजन किया जाता है। दावा है कि यह घाट दुनिया का सबसे बड़ा स्थाई घाट है। करीब 1 किलोमीटर लंबे और 7 एकड़ क्षेत्रफल में फैले इस घाट में हर वर्ष छठ महापर्व पर 60 हजार से अधिक लोग जुटते हैं, जिनमें व्रतियों और उनके परिजनों के अतिरिक्त भी दर्शनार्थी होते हैं ।

इस वर्ष छठ पूजा के सफल संचालन के लिए 5 सदस्यीय संचालक समिति का गठन किया गया है , जिसमें डॉक्टर धर्मेंद्र कुमार दास , प्रवीण झा, अभय नारायण राय, सुधीर झा और बी एन ओझा शामिल है। इनके अलावा समिति के अन्य सदस्य जिनमे पाटलिपुत्र संस्कृति विकास मंच, भोजपुरी समाज और सहजानंद समाज शामिल है, के सदस्य पिछले पखवाड़े से आयोजन को अंतिम रूप देने में जुटे हुए हैं।

इसके तहत घाट की साफ सफाई पूरी कर ली गई है। समस्त घाट की शानदार विद्युत सज्जा की गई है। बिलासपुर नगर निगम द्वारा लगाए गए लाइट से पूरे घाट में दूधिया रौशनी फैल गई है।

हर वर्ष की भांति इस बार भी आयोजन के पहले दिन यानी नहाये- खाये के दिन संध्या के समय अरपा मैया की महा आरती की जाएगी, जिसके मुख्य अतिथि ब्रह्मबाबा मंदिर के महंत श्री श्री 1008 प्रेम दास जी महाराज होंगे। उनके अलावा स्थानीय जनप्रतिनिधि भी अरपा मैया की महा आरती कर उसके वर्ष पर स्वच्छ होने की कामना करेंगे।


इस अवसर पर हर वर्ष 11000 दीपकों का दीपदान भी किया जाता था लेकिन इस बार घाट की साफ सफाई के बाद भी देखा जा रहा है कि लोग नदी में पूजन सामग्री, निर्माल्य और अन्य गंदगी प्रवाहित कर रहे हैं। यह निर्माल्य नदी किनारे पूजा करने वाले व्यक्तियों तक न पहुंचे इसके लिए समिति द्वारा इस बार घाट में ग्रीन नेट लगाया गया है। देखा जा रहा है कि नदी किनारे से दीप प्रवाहित करने पर ग्रीन नेट में आग लग जा रही है, इसलिए इस बार समिति ने निर्णय लिया है कि 11000 दीपकों के स्थान पर केवल सांकेतिक रूप से 2100 दीपक ही नदी में प्रवाहित किए जाएंगे ।

निरीक्षण करते एसएसपी

आयोजन समिति संचालक मंडल में शामिल पाटलिपुत्र संस्कृति विकास मंच के अध्यक्ष डॉ धर्मेंद्र कुमार दास ने कहा कि हर वर्ष आयोजन के दौरान पार्किंग को लेकर बड़ी चिंता होती है, इसलिए इस बार वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक रजनेश सिंह द्वारा पांच के स्थान पर सात पार्किंग बनाये जा रहे हैं। इसे अंतिम रूप देने के लिए गुरुवार शाम को एसएसपी रजनेश सिंह अपने मातहत कर्मचारियों के साथ तोरवा छठ घाट पहुंचे थे, जिन्होंने कहा कि इस बार पार्किंग में प्रवेश और निकासी के अलग-अलग मार्ग होंगे, जिससे कि जाम से बचा जा सके। पहली बार मोपका धान मंडी क्षेत्र के मैदान का इस्तेमाल पार्किंग के लिए किया जाएगा। घाट तक पहुंचने वाले सभी सड़कों को बड़े वाहनों के लिए प्रतिबंधित किया जाएगा। केवल व्रतियों को ही घाट तक एंट्री दी जाएगी, ट्रैफिक व्यवस्था पर निगाह रखने के लिए सीसीटीवी और ड्रोन कैमरे की भी मदद लेने की बात कही गई है। घाट पर बुजुर्गों, दिव्यांगों और व्रतियों के पूजा स्थल तक पहुंचाने के लिए पर्याप्त ई रिक्शा की भी व्यवस्था की जाएगी।

डॉक्टर धर्मेंद्र दास ने कहा कि अन्य वर्षो की अपेक्षा इस वर्ष बिलासपुर नगर निगम और कलेक्टर संजय अग्रवाल का विशेष सहयोग आयोजन समिति को मिला है, जिनके द्वारा पूरे घाट की साफ सफाई, रोशनी के पुख्ता इंतजाम किए गए हैं। पुलिस विभाग ने सुरक्षा की जिम्मेदारी संभाल ली है। इसके अलावा स्वास्थ्य विभाग की टीम , एसडीआरएफ की टीम, स्काउट एंड गाइड्स के कैडेट्स भी आयोजन के दौरान घाट पर मौजूद रहेंगे।

अर्घ्य वर्ग का समय

शनिवार 25 अक्टूबर को सूरज ढलते ही यहां छठ घाट पर संध्या आरती की जाएगी, इससे पहले मंचीय कार्यक्रम होगा। सोमवार 27 अक्टूबर को संध्या 5:29 बजे अस्ताचलगामी सूर्य देव को अर्घ्य प्रदान किया जाएगा, तो वही 28 अक्टूबर मंगलवार सुबह 6:03 मिनट पर उदित होते सूर्य देव को अर्घ्य देकर व्रत का पारण किया जाएगा। इस अवसर पर समिति की ओर से घाट पर पारंपरिक प्रसाद का विवरण होगा।

डॉ धर्मेंद्र कुमार दास ने आगे कहा कि शनिवार को हर वर्ष की भांति अरपा माता की पवित्रता हेतु समाज को जागरूक करने के उद्देश्य से सामूहिक महारथी का आयोजन किया जा रहा है। जिसमें उन्हें उन्होंने पूरे नगर वासियों के सम्मिलित होने का आह्वान किया है, साथ ही उन्होंने कहा कि छठ महापर्व सनातनी परंपराओं का प्रमुख पर्व है। यह केवल बिहार और उत्तर भारत का ही नहीं बल्कि संपूर्ण सनातन का पर्व है, इसलिए उन्होंने सभी सनातनियों से तीनों दिन घाट पर पहुंचने की प्रार्थना की है।
आयोजन का यह सिल्वर जुबली वर्ष है इसलिए आयोजन को अतिरिक्त भव्यता प्रदान करने का प्रयास किया जा रहा है। घाट पर इस अवसर पर एक मेला भी लगेगा, साथ ही दानदाताओं द्वारा निशुल्क चाय कॉफी आदि की सुविधा प्रदान की जाएगी।

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