

शशि मिश्रा
बिलासपुर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने शनिवार को सिम्स ऑडिटोरियम में आयोजित समारोह में स्वर्गीय काशीनाथ गोरे की स्मृति में प्रकाशित स्मारिका का विमोचन किया। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि काशीनाथ गोरे ऐसे व्यक्तित्व थे, जिनसे एक बार मिलने वाला व्यक्ति जीवनभर के लिए उनसे जुड़ जाता था। वे संघ के लिए रत्नदीप की तरह थे, जिन्होंने कभी यश या मान-सम्मान की अपेक्षा किए बिना समाज और राष्ट्र सेवा को प्राथमिकता दी।

डॉ. भागवत ने कहा, “गुरुजी कहा करते थे कि संघ में साधारण स्वयंसेवक सबसे महत्वपूर्ण है। स्वयंसेवक एक घंटे शाखा में रहकर जो संस्कार ग्रहण करता है, उससे उसके जीवन के शेष 23 घंटे समाज के लिए उपयोगी बनते हैं। संघ स्वयंसेवकों के पुरुषार्थ और त्याग से ही हर बाधा और चुनौती के बीच निरंतर बढ़ा है। स्वयंसेवक ही समाज में अपनत्व का भाव जगाता है।”

उन्होंने आगे कहा कि संघ की सौ वर्षों की यात्रा के दौरान ऐसे सद्पुरुषों को स्मरण करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। स्मारिका के माध्यम से काशीनाथ गोरे के कृतित्व और जीवन दर्शन को नई पीढ़ी तक पहुँचाया जाएगा। जब-जब समाज को प्रेरणा की आवश्यकता होगी, तब-तब उनके जैसे पूर्वजों का स्मरण पुरुषार्थ को जागृत करेगा।
कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय सह बौद्धिक प्रमुख दीपक विस्पुते, मध्य क्षेत्र प्रचारक स्वप्निल कुलकर्णी, सह क्षेत्र प्रचारक प्रेमशंकर, क्षेत्र समग्र ग्राम विकास प्रमुख अनिल डागा, क्षेत्र बौद्धिक शिक्षण प्रमुख नागेंद्र, प्रांत संघचालक डॉ. टोपलाल, विभाग संघचालक राजकुमार सचदेव समेत संघ के कई पदाधिकारी उपस्थित रहे।

समाज के प्रति दायित्व का बोध कराया – डॉ. रमन सिंह
इस अवसर पर कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे छत्तीसगढ़ विधानसभा अध्यक्ष डॉ. रमन सिंह ने भी स्व. काशीनाथ गोरे से जुड़े संस्मरण साझा किए। उन्होंने बताया कि राजनीति में अपने शुरुआती दिनों के दौरान उनका परिचय गोरे से हुआ था। उस समय गोरे कवर्धा प्रवास पर आए थे और वे उन्हें एक डॉक्टर के रूप में जानते थे।

डॉ. सिंह ने कहा, “काशीनाथ जी ने शिक्षा और चिकित्सा के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किया। स्वयंसेवक, गृहस्थ और शासकीय सेवक के रूप में उन्होंने आदर्श प्रस्तुत किया। उन्होंने अपने जीवन का प्रत्येक क्षण राष्ट्र कार्य को समर्पित किया। उनका पूरा परिवार राष्ट्र कार्य में जुटा रहा और वह परंपरा आज भी जारी है। मेरे जीवन में भी उन्होंने समाज के प्रति दायित्व का बोध जगाया और मुझे सही दिशा दी।”

उन्होंने गोरे के व्यक्तित्व को प्रेरणास्रोत बताते हुए कई संस्मरण सुनाए और कहा कि उनकी स्मृति आज भी समाज में आदर्श और उदाहरण के रूप में जीवित है।

यह आयोजन केवल एक स्मारिका विमोचन नहीं बल्कि संघ और समाज के लिए समर्पित व्यक्तित्व के जीवन को याद करने और उससे प्रेरणा लेने का अवसर साबित हुआ।

