फ़िल्म समीक्षा: हिंदवी स्वराज का उद्घोष करती फिल्म है छावा…


अभी फिल्म छावा देख कर निकल रहा हु , जिन पत्र-पत्रिकाओं के लिए समीक्षा लिखनी होती है , उनका आग्रह होता है की आप पहले दिन और हो सके तो पहला शो देखिए, ताकि रिव्यू लिख उन्हें दे सकू
फिल्म की सब से बड़ी शुचिता ये है की फिल्म मेरे अतिशय प्रिय , मराठी साहित्य की अमर लेखनी शिवाजी सावंत की कृति छावा के स्मरण से आरम्भ होती है , और फिल्म उनकी इस कृति पर आधारित है इसे सहर्ष स्वीकार करती है।
विक्की कौशल और फिल्म में छत्रपति संभाजी को अलग नहीं किया जा सकता , फिल्म में औरंगजेब और अक्षय खन्ना को भी पृथक नहीं किया जा सकता , दोनों ही आप को अपने अभिनय से यकीन दिलाते है की आप परदे पर सच ही देख रहे है , कुछ भी बनावटी नहीं , सहज और पात्र में डूबा हुआ अभिनय


यदि बजट और होता हो शायद फिल्म और अधिक भव्य बनती , किन्तु फिल्म का निर्देशन इस कमी को दूर कर देता है छत्रपति शिवाजी से लेकर उन के पुत्र छत्रपति संभाजी तक जो हिंदवी स्वराज के लिए संघर्ष किया गया ,उसे परदे पर पुनः जीवंत किया गया
महाराष्ट्र में छत्रपति शिवाजी महाराज
आमची दैवत आहे
उन्हें देव माना जाता है , यदि आप ने नाम के आगे छत्रपति न लगाया तो इसे शिवाजी का अपमान समझा जाता है


महाराष्ट्र में इस समर्पण का कारण ,आप इस फिल्म को देख कर समझ सकते है , छत्रपति और उनके परिवार का अद्भुत त्याग तेजस्वी जीवन..
विक्की कौशल, फिल्म में छत्रपति संभाजी के रूप में जब गरजते है
नमः पार्वती पतये, हर-हर महादेव:
तो रोंगटे खड़े हो जाते है ,रक्त में उष्णता आ जाती है
देश में जो पॉलिटिकल बदलाव आया है , इस कारण इतिहास का सच अब पर्दे पर दिखाया जा रहा है
फिल्म को बनाते समय उस काल खंड का , पहनावे का, उस दौर में उपयोग में लाए जाने हथियारों का ,
इन विषयों पर गहन शोध किया गया है
फिल्म में नायिका है रश्मिका , जो आज कल पूरे भारत के युवाओं का क्रश है , उनके लिए अभिनय के अवसर फिल्म में कम ही है
औरंगजेब ने जिस क्रूरता से छत्रपति संभाजी की हत्या की , वो रोंगटे खड़े कर देने वाला है , मैने थियेटर में आसपास देखा , अनेक टीन एज बच्चियां डर कर आंखे बंद कर लेती है
दरअसल हम तो चाहते ही यही थे की युवा, इतिहास के सच को देखे और समझे
हम ने तो महान कृति छावा को पढ़ा है, जिस पर ये फिल्म आधारित है किन्तु आज कल की पीढ़ी में शायद एक भी नहीं..
एडिटिंग उत्तम है , संगीत सामान्य है कोई यादगार गीत नहीं है
इस प्रकार की फिल्म में इसकी जरूरत भी नहीं
तो देखिए ,अपने आस-पास जो भी युवा दिखे ,उस से कहिए की अपने गर्ल या बॉय फ्रेंड के साथ इस फिल्म को देखने जरूर जाए
बड़ी कीमती है साहब !
ये आजादी, ये स्वतंत्रता..
छत्रपति संभाजी ने नाखून नोचे गए , दोनों आंखों को गर्म लाल लोहे की सलाख घुसेड़ कर फोड़ा गया , उनकी जीभ संसी से पकड़ खींच कर काटी गई, उनके शरीर का मांस खुरच खुरच कर निकाला गया
पर न तो इस्लाम कबूल किया न अपने पिता छत्रपति शिवाजी का शीश झुकने दिया
इस विषय पर और भव्य फिल्म बन सकती थी , यदि निर्माता का बजट पच्चीस करोड़ से दुगना होता
फिल्म हिट तो होगी , पर संतोष हमें तब होगा जब ये पुष्पा जैसी मसाला फिल्म का रिकॉर्ड तोड़े
हमारी ओर से दस में आठ


डॉ.संजय अनंत ©

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