नामांकन के समय विजय केशेरवानी ने कहा त्रिलोक श्रीवास कांग्रेस पार्टी का सदस्य ही नहीं, फिर चुनाव के बाद उसी की सदस्यता छिनने का कैसें कर रहे ऐलान ?

बिलासपुर कांग्रेस में कुछ भी ठीक नहीं चल रहा। विधानसभा के बाद लोकसभा और फिर नगरीय निकाय चुनाव में भी करारी हार का सामना करना पड़ा। इधर पार्टी आपस में ही उलझी हुई है। बिलासपुर कांग्रेस ग्रामीण जिला अध्यक्ष विजय केसरवानी पूरे रंग में है।वे एक के बाद एक बागी कांग्रेसियों को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा रहे हैं, जिसमें कई प्रदेश पदाधिकारी भी शामिल है। हालांकि ऐसे पदाधिकारी उनकी इस आदेश की जरा भी परवाह नहीं कर रहे हैं , उल्टे उसे खारिज करते हुए यह भी कह रहे हैं कि विजय केशेरवानी को यह फैसला लेने का अधिकार ही नहीं है। अभय नारायण राय को पार्टी से बाहर करने के बाद में मत गणना स्थल पर कांग्रेसियों के साथ गलबहियां करते नजर आए ।

सीमा पांडे और अभय नारायण राय के मामले में अभी स्थिति साफ भी नहीं हुई है इधर रविवार को पार्टी कार्यालय में पत्रकारों के समक्ष विजय केसरवानी ने ऐलान कर दिया कि उन्होंने सरकंडा क्षेत्र के विवादित कांग्रेसी नेता त्रिलोक श्रीवास को भी 6 साल के लिए पार्टी से बाहर कर दिया है। उनके खिलाफ खुला घात करने का आरोप है। चुनाव के दौरान त्रिलोक श्रीवास ने महापौर प्रत्याशी के तौर पर पर्चा भरा था लेकिन उन्होंने प्रमोद नायक के कहने पर नाम तो वापस ले लिया लेकिन अपने तेवर साफ कर दिए थे। आरोप है कि अपना नाम लेने के बाद त्रिलोक श्रीवास्तव ने अपनी पत्नी स्मृति श्रीवास को कांग्रेस अधिकृत प्रत्याशी कल्पना कतेरी के खिलाफ मैदान में उतार दिया है। इतना ही नहीं त्रिलोक खुलकर अपनी पत्नी का प्रचार कर रहे है और उनके प्रचार के बैनर पोस्टर में त्रिलोक श्रीवास की तस्वीर भी लगी है। जिसे पार्टी विरुद्ध गतिविधि और अनुशासन की धज्जि उड़ाने का मामला मानते हुए ब्लॉक कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष ने त्रिलोक श्रीवास को पार्टी से बाहर कर दिया है, साथ ही उनके परिवार के किसी भी सदस्य को दोबारा कांग्रेस से टिकट न देने की मांग की गई है।

इस मामले में कई बड़े नेता भी विजय केसरवानी के साथ खड़े नजर आ रहे हैं, हालांकि त्रिलोक श्रीवास भी खुद को प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर का कांग्रेस नेता बताते हैं इसलिए उनका भी दावा है कि विजय केसरवानी के अधिकार क्षेत्र में उन्हें बाहर करना शामिल नहीं है। जाहिर है इस फैसले के बाद विवाद का नया दौर शुरू होगा। वैसे त्रिलोक श्रीवास आदतन बागी नेता है और ऐसा पहली बार नहीं हुआ कि उन्होंने पार्टी के खिलाफ बगावत का बिल्कुल फूंक हो।

इस बार भी त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में कांग्रेस के अधिकृत प्रत्याशी के खिलाफ उन्होंने अपनी पत्नी को मैदान में उतार दिया है। इतना ही नहीं वे अन्य क्षेत्रों में भी कांग्रेस प्रत्याशियों के खिलाफ ही जमकर चुनाव प्रचार भी कर रहे हैं । पत्रकार वार्ता के दौरान विजय केसरवानी ने बताया कि जिला पंचायत में कुल 17 क्षेत्र है। जिला चयन समिति के अनुमोदन के बाद पार्टी ने 16 क्षेत्र में अपने प्रत्याशी का समर्थन किया है और अधिकृत प्रत्याशियों की सूची भी जारी की है। इसी क्रम में क्षेत्र क्रमांक 3 से कांग्रेस ने अधिकृत प्रत्याशी कल्पना कनेरी के नाम पर मोहर लगाया है लेकिन उनके खिलाफ ही त्रिलोक श्रीवास अपनी पत्नी को प्रत्याशी बनाकर चुनाव मैदान में उतर चुके हैं। स्मृति श्रीवास के प्रचार सामग्री में भी त्रिलोक श्रीवास की तस्वीर लगे हैं ।इधर पंचायत क्षेत्र क्रमांक 1 और 2 के अधिकृत प्रत्याशियों ने भी त्रिलोक श्रीवास के खिलाफ शिकायत की है। सुनीता सत्येंद्र कौशिक और झगड़ राम सूर्यवंशी ने भी त्रिलोक श्रीवास पर पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होने का आरोप लगाया है।

विजय केसरवानी ने बताया कि 2008, 2013 और 2018 के विधानसभा चुनाव के दौरान भी त्रिलोक श्रीवास ने पार्टी के खिलाफ काम किया था। लोकसभा चुनाव 2019 में भी उन्होंने प्रत्याशी के खिलाफ विपक्ष के लिए वोट मांगा । इसकी शिकायत पीसीसी से भी की गई थी। इसके बाद त्रिलोक को पार्टी से बाहर भी निकाला गया। अब भी नगरीय निकाय चुनाव में भी उन्होंने पार्टी प्रत्याशी मनीषा गढ़ेवाल के खिलाफ अपनी बहू के पक्ष में चुनाव प्रचार किया है ,इसलिए उन्हें पार्टी की प्राथमिक सदस्यता खारिज करते हुए उन्हें बाहर कर दिया गया है।

मजे की बात यह है कि जिस वक्त त्रिलोक श्रीवास ने पर्चा भरा था उस समय इसी विजय केसरवानी ने बताया था कि त्रिलोक श्रीवास कांग्रेस का सदस्य भी नहीं है। उन्हें पहले ही पार्टी से बाहर निकाला जा चुका है तो फिर सवाल यह उठता है कि जो कांग्रेस पार्टी का सदस्य ही नहीं है, भला उसकी सदस्यता कैसे खारिज की जा रही है ? मतलब सब कुछ गड़बड़ झाला है । लोग कह रहे हैं कि विजय केसरवानी इस बहाने अपनी कुंठा प्रदर्शित कर रहे हैं, जिसे प्रदेश के पदाधिकारी भी सहमत नहीं है। दीपक बैज ने भी उनके पूर्व फैसलों पर अब तक अपनी सहमति नहीं दी है , जिससे बिलासपुर कांग्रेस पूरी तरह से दो खेमों में बंटता नजर आ रहा है।

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