इलेक्ट्रिक बस सेवा आरंभ करने में पिछड़े राज्यों से भी पिछड़ा छत्तीसगढ़ ,अधिकारियों के टाल मटोल रवैये के चलते योजना नहीं आ पा रही धरातल पर

आकाश दत्त मिश्रा

कभी-कभी सरकार की अच्छी भली योजना को प्रशासनिक अधिकारी पलीता लगा देते हैं। ऐसा ही कुछ इन दिनों छत्तीसगढ़ में भी हो रहा है। बदलते समय के साथ ई- बस न केवल समय की मांग है बल्कि यह आज की जरूरत भी है। डीजल पेट्रोल से चलने वाले बसों की तुलना में इलेक्ट्रिक बस से प्रदूषण नहीं के बराबर होता है। साथ ही से ऊर्जा की बचत होती है। कम खर्चे में पब्लिक ट्रांसपोर्ट सेवा उपलब्ध सम्भव होता है और यह शांत और सुगम यात्रा उपलब्ध कराती है, इसीलिए भविष्य को देखते हुए इलेक्ट्रिक बस तैयार की जा रही है, और केंद्र एवं राज्य सरकार द्वारा अपने प्रदेश में इन्हें प्रोत्साहित किया जा रहा है।

आपको जानकर शायद हैरानी होगी कि कर्नाटक के बेंगलुरु में 2014 से ही अंतर शहरी बसों की सेवा शुरू हो चुकी है। महाराष्ट्र में भी 2019 से इस तरह की सेवा उपलब्ध कराई जा रही है। देश के लगभग सभी बड़े शहरों में इस तरह की सेवा उपलब्ध है, लेकिन छत्तीसगढ़ इस दौड़ में काफी पिछड़ चुका है। काफी प्रयासों के बावजूद आज तक प्रदेश में एक भी इलेक्ट्रिक बस सड़क पर नहीं उतर सकी , जबकि केंद्र सरकार ने इस उद्देश्य से कई प्रयास किये। कई योजनाएं चलाकर प्रस्ताव भेजे गए लेकिन राज्य की मशीनरी में जिनके इशारों पर पहिया घूमता है, उनकी अधूरदर्शिता या फिर व्यक्तिगत स्वार्थ के कारण योजना कभी धरातल में आ ही नहीं पासी।


वैसे तो 2022 से ही छत्तीसगढ़ में इलेक्ट्रिक बस सेवा आरंभ करने का प्रयास किया जा रहा है। केंद्र सरकार ने छत्तीसगढ़ में वायु प्रदूषण कम करने के लिए 20 करोड रुपए उपलब्ध कराये। योजना अनुसार इस राशि का उपयोग कर प्रदेश में इलेक्ट्रिक बस सेवा आरंभ करना था। इसके लिए एक नहीं बल्कि तीन बार टेंडर की प्रक्रिया हुई लेकिन किसी ने भी इसमें दिलचस्पी नहीं ली। इसके बाद प्रशासन ने एक निजी कंपनी को किसी तरह से टेंडर के लिए राजी करवाया। 10 इलेक्ट्रिक बसों के लिए दिसंबर 2023 में टेंडर की प्रक्रिया पूरी हुई लेकिन इसके बाद आगे कुछ भी नहीं हुआ।
तत्कालीन कमिश्नर ने कभी कोरोना महामारी तो फिर कभी आदर्श आचार संहिता का बहाना बनाकर वर्क आर्डर लागू नहीं किया और चुनाव के बाद नई सरकार बन जाने के बावजूद भी इसमें किसी तरह का परिवर्तन नहीं हुआ। वर्तमान योजना के अनुसार राजधानी रायपुर में 10 इलेक्ट्रिक बसे चलानी थी, लेकिन वर्तमान कमिश्नर अविनाश मिश्रा इसमें जरा भी दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं। हालांकि पूरा विभाग चाहता है कि छत्तीसगढ़ में भी ई बस सेवा आरंभ हो, लेकिन निगम आयुक्त इसके इसमें रोड़ा बन रहे हैं।


केंद्र द्वारा वायु प्रदूषण की दिशा में बेहतर कार्य के लिए मिली राशि का उपयोग कर ई बस सेवा आरंभ करने की बजाय निगम कमिश्नर इससे सड़क पर पेवर ब्लॉक लगाने की योजना बना रहे हैं। सूत्रों के अनुसार ऐसा शायद इसलिए किया जा रहा है क्योंकि ई बस आरंभ करने से कमीशन के बंदरबांट की गुंजाइश कम है लेकिन वही पेवर ब्लॉक लगाने की योजना में खूब कमीशन खोरी हो सकती है।
इधर निगम प्रशासन द्वारा आम लोगों को भ्रमित किया जा रहा है कि जल्द ही छत्तीसगढ़ में भी पीएम बस सेवा के तहत प्रदेश को 100 इलेक्ट्रिक बस उपलब्ध हो जाएंगे, लेकिन सच्चाई तो यह है की पीएम ई बस योजना में फिलहाल टेंडर की प्रक्रिया भी पूरी नहीं हुई है और योजना 2027 से पहले धरातल पर आएगी नहीं। जबकि प्रशासनिक अधिकारी यह कहने से नहीं गुरेज करते कि जल्द ही उन्हें 100 ई बस मिलने वाली है, यानी यह पूरी तरह से भ्रामक है। बताया जा रहा है कि पूर्व आयुक्त महेंद्र चतुर्वेदी इस योजना को लेकर प्रयासरत थे लेकिन वर्तमान में प्रशासनिक स्तर पर इस तरह का कोई प्रयास नहीं हो रहा। जिस कंपनी को छत्तीसगढ़ में ई बस सेवा के लिए टेंडर मिला है उनके अधिकारी भी लगातार दफ्तरों के चक्कर लगा रहे हैं और उन्हें केवल भटकाया जा रहा है ।
भारत के पिछड़े राज्यों में भी इलेक्ट्रिक बस सेवा आरंभ हो चुकी है जबकि छत्तीसगढ़ में वर्तमान में एक भी ई बस उपलब्ध नहीं है। ऐसा इसलिए भी क्योंकि यहां के अधिकारियों की इसमें जरा भी दिलचस्पी नहीं है, जबकि केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार इसे प्रोत्साहित कर रहे हैं। संभव है कि प्रदेश की नई सरकार और मुख्यमंत्री को भी इसकी गहरी जानकारी नहीं है और अधिकारी उन्हें भी भरम में रखकर व्यक्तिगत लाभ के लिए केंद्र द्वारा आवंटित राशि का कहीं और उपयोग करने की योजना बना रहे है, जाहिर है इससे नुकसान प्रदेश वासियों को हो रहा है ।पड़ोसी राज्यों में भी इलेक्ट्रिक बस सेवा आरंभ हो चुकी है , जो बेहद लग्जरी, आरामदायक और सुविधाजनक है। लेकिन छत्तीसगढ़ में अन्य जिलों की क्या कहे राजधानी में भी आज तक एक ई बस सड़क पर नहीं उतर पाई, इसके लिए सचमुच कौन जिम्मेदार है, यह नीति निर्धारकों को तय करना होगा, नहीं तो लोग यही कहेंगे कि डबल इंजन की सरकार एक इलेक्ट्रिक बस तक नहीं चला पा रही।

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