



डॉ अलका यतींद्र यादव बिलासपुर छत्तीसगढ़
ॐ पंचवक्त्राय विद्महे, महादेवाय
धीमहि, तन्नो रुद्र: प्रचोदयात्।
. “नाग पंचमी” को रुका था “सर्प यज्ञ”
सर्प-यज्ञ रोकने का दिन है, नाग-पंचमी। सर्प-fc fcयज्ञ करने वाले राजा जनमेजय को आस्तिक ऋषि ने प्रसन्न किया। जनमेजय ने जब ऋषि से वरदान मांगने को कहा तो आस्तिक ऋषि ने सर्प-यज्ञ रोकने का अनुरोध किया। जिस दिन जनमेजय ने सर्प-यज्ञ रोका, वह श्रावण शुक्ल पक्ष पंचमी ही थी।
: ◆परीक्षित पुत्र जन्मेजय ही नहीं हम भी ‘सर्पयज्ञ’ कर सकते हैं।
◆मन के इंद्रासन से लिपटा तक्षक यज्ञ में भस्म होकर रहेगा।
◆काम-क्रोध, मद-लोभ सबसे घातक सर्प होते हैं। ये खुद को ही डंसते है।
◆ये सर्प मन से संचालित पांचों ज्ञानेंद्रियों से लिपटे रहते हैं ‘तक्षक’ की तरह।
◆मन ही इंद्र है और ज्ञानेंद्रियां उसकी अप्सराएं ।
◆’मेनका’ यानी मन के भाव, ‘रम्भा’ यानी मन में रमण करने वाली प्रवृत्तियाँ, ‘उर्वशी’ का आशय उर (हृदय) में बसने वाली आकांक्षाएं हैं।
◆इसके लिए खुद ही परीक्षण करने वाले विवेक रूपी ‘परीक्षित’ पुत्र ‘जन्मेजय’ को सर्प-यज्ञ करना पड़ेगा, कोई बाहर से न कर सकेगा।
◆’जन्मेजय’ का मतलब ही जब विजय के भाव का मन में ‘जन्म’ हो वरना कुंडली मारे कामनाओं का जहर जीवन बर्बाद कर देगा

आज नाग पञ्चमी है। महान् भाषाविद् महर्षि पाणिनि का जन्म आज के दिन हुआ था। महर्षि पाणिनि के जन्म स्थान पर अनेक विचार हैं, परन्तु शलातूर (वर्तमान में लाहूर, जो पाकिस्तान के अटक जिले में काबुल और सिन्धु नदी के संगम के पास है, प्राचीन काल में यह गांधार कहलाता था, काबुल नदी का नाम कुभा नदीक् था) है। पाणिनि ने कहा वे पाणिनि शलातुरीय है अतः वही उनका जन्म स्थान है। योगसूत्र के रचयिता महर्षि पतञ्जलि इनके शिष्य थे। महर्षि पाणिनि को शेषावतार माना जाता है और महर्षि पतञ्जलि को वासुकी का अवतार। इसी कारण श्रावण शुक्ल पञ्चमी को नाग पंचमी कहा जाता है। प्राचीन काल से यह दिवस प्रतियोगिता का होता रहा है। विद्वान् शास्त्रार्थ करते हैं और अखाड़ों में पहलवान अपने शारीरिक बल का प्रदर्शन करते हैं। गाँवों में इस पर्व को बड़े गुरु और छोटे गुरु का जन्मदिन मानते हैं, बड़े गुरु- महर्षि पाणिनि, छोटे गुरु- महर्षि पतञ्जलि।