स्कूल कॉलेज के पुराने सहपाठियों का रीयूनियन तो अपने खूब देखा- सुना होगा, लेकिन इस रविवार को बिलासपुर में बाल्को के ऐसे कुछ पुराने साथी जुटे जिनमें से कोई सहपाठी था तो कोई खेल के मैदान का साथी। कोई कॉलोनी का बड़ा भैया था तो कोई लंगोटिया यार। सभी बाल्को, कोरबा के पुराने साथी जिन्हें एक लंबे अंतराल के बाद एक साथ बैठकर, पुराने दिनों को याद करने का अवसर मिला। जब बाल्को के सारे साथी अपने यार के पंधी स्थित फार्म हाउस में जुटे तो फिर बातों और यादों के साथ, सारे साथी फ्लैशबैक में चले गए। उन पुराने दिनों को याद कर खूब ठहाके लगाए गए , एक दूसरे की टांगे भी खींची गई और शिकायतें भी हुई।

बचपन में सब साथ खेले-पढ़े, लेकिन जिंदगी की व्यस्तता ने राहें जुदा कर दी। कामकाज और परिवार की देखभाल के बीच पुराने साथी कब पीछे छूट गए, पता ही नहीं चला। कभी-कभी फोन पर बातचीत हो जाया करती या फिर किसी खास अवसरों पर मुलाकात भी होती, लेकिन पुराने दिनों की तरह एक साथ बैठकर बिना वजह बातें करने, मौज मस्ती करने का अवसर बहुत दिन बाद मिला, और जब मिला तो फिर सारी परते खुलती चली गई।

इन सभी में एक बात कॉमन थी कि इन सभी का बचपन बाल्को में बीता था। वैसे तो किशन यादव इन सबसे कुछ बड़े थे और यह सभी बचपन में उन्हें भैया रहते थे लेकिन खास बात यह है कि उस दौरान भी किशन भैया, पिंटू को पिंटू भैया पुकारा करते थे। वह पिंटू भैया, जिनकी प्रतिभा के कायल यह सभी बचपन में भी थे और आज भी हैं। वह पिंटू, जिसे ऑलराउंडर माना जाता था, क्योंकि पिंटू जितना चपल खेल के मैदान में था, उतना ही कुशाग्र बुद्धि स्कूल की पढ़ाई में भी रहा करता था। पिंटू में बचपन से ही नेतृत्व क्षमता थी, जो वक्त के साथ और निखरती चली गई। अपने इन्हीं बहुमुखी प्रतिभा के चलते आज सफलता के आसमान को छू रहा पिंटू इन सभी दोस्तों के लिए गौरव का विषय है।

बाल्को के पुराने साथियों में से किशन भैया के अलावा शशिकांत मिश्रा, सौरभ झा, संजय लांझियाना, विश्वास बारीक और कोमल यादव जुटे, जिनका मानना है कि बेहद सामान्य शुरुआत के बाद आज लगभग सभी साथी अपने-अपने क्षेत्र में कामयाब है , लेकिन इनके बचपन का पिंटू आज डॉक्टर धर्मेंद्र दास बन चुका है, जिसकी बहू मुखी प्रतिभा के कायल सभी साथी बचपन में भी थे और उन्हें भरोसा था कि पिंटू एक दिन जरूर कामयाब होगा। और आज जब दोस्तों की नजर में पिंटू यानी डॉक्टर धर्मेंद्र दास उसी सपने की मानिंद कामयाब है तो उनके इस कामयाबी को सेलिब्रेट करने और उनका अभिनंदन करने पुराने साथी पंधी स्थित फार्म हाउस में जुटे, जहां किशन यादव, शशिकांत मिश्रा, सौरभ, संजय ,विश्वास और कोमल यादव ने पुष्पहार पहनाकर और गुलदस्ता भेंट कर अपने पुराने साथी डॉक्टर धर्मेंद्र दास का अभिनंदन किया।


डॉक्टर धर्मेंद्र दास होम्योपैथी डॉक्टर है लेकिन उनकी पहचान बिलासपुर के एक सफल बिल्डर के तौर पर अधिक है, जिन्होंने कई बड़ी-बड़ी कॉलोनियो का निर्माण किया। बिलासपुर के सबसे बड़े आयोजनों में से एक छठ पूजा समिति के भी डॉक्टर धर्मेंद्र दास अध्यक्ष बने। छठ पूजा आयोजन में शामिल पाटलिपुत्र संस्कृति विकास मंच के भी वे वर्तमान अध्यक्ष हैं। राजनीति में भी रुझान रखने वाले डॉक्टर धर्मेंद्र कुमार दास भाजपा सांस्कृतिक प्रकोष्ठ के प्रदेश सहसंयोजक है । साथ ही उनकी पहचान बिलासपुर में एक प्रखर हिंदूवादी नेता के रूप में भी है। और वे यारो के यार तो है हीं। उनके इसी बहुमुखी प्रतिभा के कायल मित्रों ने रविवार शाम की महफिल में दिल खोलकर उनकी तारीफ की एवं उनके उज्जवल भविष्य की कामना करते हुए भरोसा जताया कि एक दिन वे कुछ ऐसा बड़ा कर गुजरेंगे कि उन्हें अपना दोस्त बताने में सबको फक्र महसूस होगा।


यह सभी साथी एक लंबे अरसे बाद मिले। फिर बातों का सिलसिला चल निकला। बातों के बीच-बीच में खुलकर बेतकल्लुफ ठहाके लगे , जिसमें औपचारिकता और बनावटी पन के लिए कोई जगह नहीं थी। पुराने यार मिले तो आपस में खूब नाच गाना हुआ, शेरो शायरी की गई। पुराने दिनों की यादें ताजा की गई और जल्द ही अयोध्या यात्रा एवं बचपन के फेवरेट पिकनिक स्पॉट केसला जाने का भी प्लान बना।
इस मुलाकात के बाद सभी ने माना कि बचपन के वह दिन बहुत खास थे। आज जिंदगी में लगभग सब कुछ पा लिया, जिसकी कभी तमन्ना थी, लेकिन फिर भी उन दिनों जैसी खुशी आज ढूंढे नहीं मिलती, लेकिन इस रविवार को जब पुराने साथी मिले तो जैसे खुशी के दरवाजे में लगे ताले की चाबी मिल गई, फिर उम्र जैसे किसी खिड़की से बाहर निकल गई और सभी पुराने साथी बचपन की यादों में खो गए । इसलिए बचपन वाली ही सहजता और निश्छलता सब में नजर आने लगी। इसे किसी ने रियूनियन कहा तो किसी ने गेट टूगेदर। किसी के लिए तो यह, जहां चार यार मिल जाए तो फिर रात को गुलजार वाली पंक्तियां साकार होने जैसी बात थी। रविवार की इस मुलाकात से पुरानी यादें ताजा हुई, तो नई यादें भी बनी। वादा किया गया कि इस मेल मुलाकात की कड़ी को निरंतर रखा जाएगा, ताकि रिश्ते कभी मुरझा न पाए।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!