इस वर्ष बिलासपुर संभाग के रायगढ़ घराने के कत्थक नर्तक पंडित रामलाल बरेठ को भी मिला पद्मश्री, पुरस्कार पाकर अभिभूत हुए पंडित रामलाल

गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर पद्म पुरस्कारों की घोषणा की गई, इनमें से बिलासपुर संभाग के रायगढ़ जिले के प्रसिद्ध कथक नर्तक पंडित रामलाल बरेठ का भी नाम शामिल है। रायगंज जिले के रामलाल बरेठ कथक के मूर्धन्य नर्तक है। पूर्व में इन्हें अकादमी पुरस्कार से भी नवाजा जा चुका है। मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने पंडित रामलाल को बधाई और शुभकामनाएं दी है। बिलासपुर संभाग के रायगढ़ जिले में रहने वाले और वर्तमान में मंगला के शैल विहार में रहने वाले पंडित रामलाल बरेठ को कला के क्षेत्र में पद्मश्री सम्मान प्रदान किया गया है। पद्मश्री सम्मान पाकर अभिभूत पंडित रामलाल बरेठ ने बताया कि राजा महाराजाओं के जमाने में कत्थक खूब फला फूला करता था, लेकिन राजशाही खत्म होने के साथ ही इस कला पर भी संकट के बादल गहराने लगे थे। उनके पिता भी देश के जाने-माने कत्थक नर्तक थे, जिन्हें राज संरक्षण हासिल था। पिता दरबारों में अपनी नृत्य कला का प्रदर्शन करते थे। बहुत कम उम्र में पिता से प्रेरित होकर रामलाल भी कत्थक सीखने लगे। 12 साल की उम्र में वे भी दरबारों में अपनी कला प्रदर्शित करने लगे। पंडित रामलाल को कत्थक के क्षेत्र में आने की प्रेरणा अपने पिता से ही मिली थी और वे ही उनके शिक्षक भी थे। कई साल की तपस्या के बाद राजा महाराजाओं के संरक्षण में पिता के सानिध्य में वे अपनी कला में पारंगत हुए।
चर्चा करते हुए रामलाल बरेठ उस दौर में चले जाते हैं और कहते हैं कि किस तरह से हर दिन 6 से 8 घंटे तक वे नियमित अभ्यास किया करते थे । हर दिन सुबह अभ्यास से ही वे पारंगत होते चले लेकिन आजादी के साथ ही बुरा दौर भी आया , जब राजशाही खत्म हो गई तो दरबार भी खत्म हो गए। इसके बाद मंच मिलना मुश्किल हो गया। कत्थक के कलाकार भजन कीर्तन करने लगे, लेकिन फिर चक्रधर महाराज ने अन्य कलाओं के साथ कत्थक को भी संरक्षण दिया। उनके संरक्षण में एक बार फिर अविभाजित मध्य प्रदेश में कत्थक फलने फूलने लगा। चक्रधर महाराज ने कलाकारों को छात्रवृत्ति भी दी। इसके बाद तो पंडित रामलाल बरेठ ने लखनऊ, इटावा, दिल्ली कोलकाता , मुंबई, बनारस समेत देश के लगभग सभी शहरों में अपनी कला का प्रदर्शन किया। पंडित रामलाल बरेठ बताते हैं कि कथक, गुरु शिष्य परंपरा की कला है, लेकिन आजकल लोग डिग्री के फेर में कॉलेज में इसे सीखते हैं लेकिन इसमें वह निखार नहीं आ पाता, जो गुरु शिष्य परंपरा में संभव है। उन्होंने सरकार से भी आग्रह किया कि वह कत्थक को संरक्षण प्रदान करें ताकि देश के शास्त्रीय नृत्य में शामिल कत्थक विलुप्त ना हो जाए और नई पीढ़ी में इसका आकर्षण बना रहे। आपको बता दे कि पद्म पुरस्कारों में इस वर्ष छत्तीसगढ़ से तीन नाम शामिल किए गए हैं जिनमें पंडित रामलाल बरेठ के अलावा जागेश्वर यादव और हेमचंद मांझी भी है। मुख्यमंत्री ने तीनों विभूतियों को ट्वीट कर बधाई दी है।

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