संजय ‘अनंत ‘ ©
महासचिव
विमल साहित्य संस्थान

सरकार या स्वार्थी जन का विरोध, सरकारी सम्मान या सत्य की साधना.. बिमल मित्र ने सत्य की साधना की।बिमल मित्र को अपने जीवनकाल में जो लोकप्रियता मिली , वो कम से कम साहित्यकारों के लिए तो दुर्लभ ही है , जहाँ जाते उनको सुनने , देखने, पूरा सभागार भरा रहता किन्तु बिमल मित्र को अपने जीवनकाल में कड़े विरोध का भी सामना करना पड़ा। 100 से अधिक उपन्यास व सैकड़ो कथाओं को बिमल मित्र की जिस लेखनी ने लिखी उसे जीवन मे अनेक विरोध, प्रतिबंध का सामना करना पड़ा। ‘सुरसुतिया’ इस लघु उपन्यास के कारण छत्तीसगढ़ खासकर बिलासपुर में उनका पुतला फूका गया ,उस समय की प्रमुख पत्रिका ” साप्ताहिक हिन्दुस्तान ” की प्रतिया जलाई गई ये अलग बात है की उस विरोध के सूत्रधार ने इतने वर्षो के बाद मुझ से कहा की जो किया था वो गलत था | ये कथा मार्मिक है , बिमल मित्र ने अपनी रेल्वे की नौकरी के कई वर्ष बिलासपुर में बिताए | उनके अनेक पात्र उनके जीवन के अनुभव से प्रगट हुए , इस मार्मिक कथा की मुख्य नायिका का पति छेदी जो रेल्वे क्रासिंग फाटक का गेट कीपर था , उसे बिमल मित्र जानते थे , कथा सत्य पर आधारित थी | उनकी दूसरी कृति ” इकाई दहाई सैकड़ा ” , तत्कालीन प. बंगाल सरकार द्वारा प्रतिबंधित की गई , पर बिमल मित्र ने न सत्य लिखना छोड़ा न सत्ता के चाटुकार बने पुरस्कारों के लिए …