देवउठनी एकादशी के साथ एक बार फिर से सभी मांगलिक कार्य आरंभ हो गए। इस वर्ष 29 जून को श्री हरि विष्णु योग निद्रा में चले गए थे। चार माह के देव शयन के बाद 23 नवंबर गुरुवार को देवउठनी एकादशी पर एक बार फिर भगवान जागृत हो गए। देव उठानी एकादशी पर पारंपरिक रूप से तुलसी विवाह का आयोजन किया गया। इसी दिन से विवाह और अन्य मांगलिक कार्य भी आरंभ हो गए। विष्णु पुराण के अनुसार मान्यता है कि इन चार मास में भगवान श्री हरि विष्णु क्षीर सागर में शयन करते हैं और फिर जब तुला राशि में सूर्य प्रवेश करते हैं तो उन्हें उठाया जाता है। इसे देव उत्थान एकादशी भी कहते हैं। देवउठनी एकादशी के साथ कई कथा प्रचलित है। देवउठनी एकादशी पर भगवान विष्णु के शालिग्राम स्वरूप में तुलसी के साथ विवाह की परंपरा है। भगवान विष्णु की भक्त और राक्षस जलंधर की पत्नी वृंदा के श्राप फिर भगवान विष्णु के दिए आशीर्वाद के कारण देवउठनी एकादशी पर भगवान विष्णु का वृंदा के तुलसी रूप में भगवान के साथ पूजा अर्चना की जाती है।
इस दिन सभी सनातनियों के घर में तुलसी के चौरा के पास गन्ने का मंडप सजा कर विधि विधान के साथ शालिग्राम और तुलसी का विवाह संपन्न किया गया। सुहाग की सामग्री अर्पित कर पूजा अर्चना के बाद प्रसाद वितरित किया गया। मान्यता है कि इससे दांपत्य जीवन में खुशहाली आती है। गुरुवार संध्या को छोटी दिवाली मनाते हुए घर के आंगन में तुलसी के गमले की सजावट कर पूरे विधि विधान के साथ पूजा अर्चना की गई। शालिग्राम और तुलसी की परिक्रमा कर सुख संपत्ति की कामना की गई। इस अवसर पर एक बार फिर दीपावली की तरह घरों में सजावट भी की गई ।
सरकंडा सुभाष चौक स्थित त्रिदेव मंदिर में भी देव उठनी एकादशी मनाई गई। यहां भगवान शालिग्राम और तुलसी का विवाह संपन्न कराया गया।
इसी तरह बिलासपुर के प्राचीनतम मंदिरों में से एक सदर बाजार स्थित श्री लक्ष्मी नारायण मंदिर में भगवान का षोडशोपचार पूजन एवं सूक्त पुरुष सूक्त से अभिषेक किया गया। दोपहर को छप्पन भोग का प्रसाद भगवान को अर्पित किया गया। देवउठनी एकादशी के पावन अवसर पर शाम को मंदिर में तुलसी विवाह का भी आयोजन हुआ, जिसमें भक्तों ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। इस अवसर पर भक्तों को साबूदाने की खीर प्रसाद स्वरूप बांटी गई। कार्यक्रम में मंदिर संचालक प्रपन्न मिश्रा , शुभाषिणी मिश्रा, पंडित संतोष तिवारी, दुर्गेश शुक्ला यजमान डॉक्टर आरती पांडे आदि सम्मिलित हुए ।
देव उठानी एकादशी से ही छत्तीसगढ़ के पारंपरिक रावत नाच उत्सव का भी आरंभ हो गया। वहीं कई स्थानों पर सुवा नृत्य और गौरा- गौरी विवाह का भी आयोजन किया गया।