संस्कारधानी बिलासपुर में सभी तरह के पर्व पूरे उत्साह उल्लास के साथ मनाने की परंपरा है। छत्तीसगढ़ और विशेष कर बिलासपुर में देशभर की सभी संस्कृतियों को आत्मसात करने की विलक्षण शक्ति है। इसी के दर्शन तरह-तरह के उत्सवो में भी नजर आते हैं, जब बंगाल का दुर्गा उत्सव बिलासपुर में उसी उल्लास के साथ मनाया जाता है। छठ महापर्व पर बिहार से भी बढ़कर भव्य आयोजन इसी शहर में होते हैं।

रविवार शाम 5:00 बजे कार्यालय का शुभारंभ

इस वर्ष आगामी 17 से लेकर 20 नवंबर को होने वाले छठ पूजा की तैयारी एक बार फिर से आरंभ हो चुकी है। शुक्रवार को इसी संबंध में आयोजित बैठक में अध्यक्ष और सचिव का मनोनयन किया गया, जिनके द्वारा नई कार्यकारिणी के गठन के साथ छठ समिति आयोजन को दिशा देने के लिए छठ समिति कार्यालय का शुभारंभ रविवार 5 नवंबर संध्या 5:00 बजे बिलासपुर तोरवा पुल के पास स्थित छठ घाट में किया जाएगा। इस अवसर पर छठ पूजा समिति की बैठक होगी, जिसमें नई कार्यकारिणी के सदस्यों पर निर्णय लिया जाएगा।

वैसे तो पिछले करीब महीने भर से छठ घाट की सफाई, रंग रोगन का कार्य जारी है लेकिन आशा की जाती है कि कार्यालय उद्घाटन के बाद इस कार्य में तेजी आएगी।

17 से 20 नवंबर तक छठ महापर्व

सनातन परंपराओं में 33 कोटि देवताओं की आराधना की जाती है मगर इनमें से सूर्य देव ही संभवतः एकमात्र ऐसे देव है जिन्हें हम प्रतिदिन प्रत्यक्ष देख पाते हैं । उन्ही के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करने और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने छठ महापर्व पर छठी मैया के साथ सूर्य देव को भी अर्घ्य चढ़ाया जाता है । बिहार और उत्तर भारत में इस पांच दिवसीय महोत्सव का अपना ही अलग अंदाज है। इसके लिए लोग अपने घरों की ओर लौटते हैं। कुछ वैसी ही परंपरा बिलासपुर में भी है । बिलासपुर में रहने वाले बिहार और उत्तर भारत के लोग छठ पर्व से पहले अपने घर में लौट आते हैं और इसकी तैयारी में जुट जाते हैं। इस वर्ष 17 नवंबर को नहाय खाय के साथ इस कठिन व्रत का आरंभ होगा । 17 नवंबर की शाम बिलासपुर छठ घाट में अरपा मैया की महा आरती और दीपदान होगा। इससे पहले यहां मंचीय कार्यक्रम भी होगा। 18 नवंबर को खरना का प्रसाद तैयार किया जाएगा, तो वही 19 नवंबर को व्रत धारी छठ घाट पहुंचकर अस्त होते सूर्य देव को अर्घ्य प्रदान करेंगे। वहीं 20 नवंबर की सुबह उदित सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत का समापन किया जाएगा। इसी की तैयारी में छठ पूजा समिति जुट गई है, जिन्हें पाटलिपुत्र संस्कृति विकास मंच ,भोजपुरी समाज, सहजानंद सरस्वती समाज जैसे अलग-अलग संगठनों का सहयोग मिल रहा है।

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