छत्तीसगढ़ में अनूसूचित जन जाति के कद्दावर भाजपा नेता डॉ नंद कुमार साय भाजपा पर उपेक्षा का आरोप लगाकर ,व्यथित होते हुए कांग्रेस में शामिल हो गए । राजनीति में दलबदल का खेल चलता रहता है मगर डॉ साय जैसे व्यक्ति का भाजपा छोड़ जाना , गंभीर व चिंतनीय है ।
विद्वान्,ईमानदार व लोकप्रिय छवि के साय जी ने अपने राजनीतिक जीवन की ५०बरस की यात्रा पूरी की ।जिसमे भाजपा ने उन्हें अनेक दायित्व दिया जिसे उन्होंने बेदाग होकर निभाया भी।
मगर ऐसा क्या हो गया कि डॉ साय की पीड़ा हद से गुजर गई और भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को पता भी नहीं चला ?
यदि छत्तीसगढ़ नेतृत्व यह कहता है कि उन्हें पता ही नहीं था तो यह बहुत गंभीर बात इसलिए है कि छत्तीसगढ भाजपा तीन कार्यकाल सरकार में रहकर भी अब इतनी कमजोर हो गई है कि उसे त्रिकोणीय मुकाबले में बमुश्किल 15 सीट मिल पाई है और जोगी कांग्रेस नहीं होती तो 5 सीट पर ही संतोष करना पड़ता।
इतनी रुग्ण, कमजोर पार्टी अगर चुनाव के मुहाने में खड़ी होकर भी अपने बड़े छोटे कार्यकर्ताओ के दुःख दर्द समस्या पीड़ा से अनभिज्ञ है , मतलब वह अपनी कमजोरी को नजरंदाज कर रही है या फिर सत्ता की अहंकार और खुमारी अब भी चढ़ी हुई है ।
जहां तक बात नंद कुमार साय को बहुत दिया गया इसलिए उन्हें अब कोई पीड़ा नहीं होना चाहिए, यह बेतुका सवाल है । हर लेबल पर पीड़ा का अनुभव होता है उसे दूर किया जाता है।
अभी भाजपा के अंदर जितने भी चेहरे हैं उन्हे भी पार्टी ने बहुत कुछ लगातार दिया है, फिर भी उनमें से किसी एक को संगठन से अभी की स्थिति में दूर रख दिया जाय तो वे भी नाराजगी शिकायत ब्यक्त करेंगे यह स्वाभाविक है और पार्टियां यह नहीं कहती कि आप को बहुत दे दिया गया अब पीड़ा नहीं होनी चाहिए ।
एक वाक्या याद आता है ,भाजपा में किस फेस के सहारे 2023 में चुनाव भाजपा लड़ेगी यह सवाल मीडिया में जोरों से चल रही थी तब पूर्व मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह को कहना पड़ गया कि उनमें एक चेहरा मेरा भी है।
यानी राजनीति में जैसे जैसे पद व कद बढ़ता है उनके अनुभवों का लाभ पार्टियां लेती हैं यह नहीं कहती कि अब बहुत हो गया अब किसी भी दायित्व को आपको नहीं दिया जायेगा ।कद्दावर नेता जीवनपर्यंत राष्ट्र समाज की सेवा करना चाहता है
डॉ साय अनुभवी नेता हैं उनका निर्णय अपना है अच्छा बुरा वो सोचेंगे मगर भाजपा जैसी लगातार सक्रिय रहने वाली ,बूथ लेबल तक नित्यप्रति सतर्क व सजग रहने वाली पार्टी को केवल कामकाज तक ही नही रहना चाहिए बल्की कार्यकर्ताओ की समस्या पीड़ा ,शिकायत व सुझाव पर भी ध्यान देना चाहिए ।नही देने से पार्टी कमजोर होगी
व्यवहारिक बात यह है कि पार्टी में लाबिंग कमजोर जनाधार के नेता करते है और अच्छे कार्यकर्ता बाहर किए जाते हैं । कार्यकर्ता और खानापूर्ति कार्यकर्ता और पदाधिकारी के कार्यव्यवहार में जमीन आसमान का अंतर होता है तो अच्छे लोगों को बचाए रखना पार्टी नेतृत्व का काम है ।कार्यकर्ताओ की संख्या बढ़ जाने से यह नही समझना चाहिए कि प्रभावी फेस का विकल्प मिल गया
अब कह दिया जाए कि जो जाना चाहते हैं चले जाएं उन्हे शुभकामना ।
भाजपा कह सकती है कि कुछ लोगो के चले जाने से पार्टी के सेहत में कोई असर नहीं पड़ेगा
बिल्कुल सही मगर कौन जा रहा देखना पड़ेगा
जातीय नेता के बदले जातीय नेता नही प्रभावी फेस चाहिए
भाजपा को श्री साय के चले जाने के बाद भले ही कोई फर्क नही पड़ने की जिद्द करनी पड़ रही ,यह विशुद्ध राजनीतिक बयान है मगर बड़े पैमाने पर असंतोष का खामयाजा 2018 के चुनाव में भुगत चुकी भाजपा को कहना पड़ गया था पार्टी कार्यकर्ताओं के कारण हम हारे।
क्या इसका चिंतन मंथन पार्टी ने किया ? अगर किया होता तो साय जी पार्टी छोड़ने विवश न होते ,भाजपा नेतृत्व को विचार करना चाहिए । ग्रास रूट तक की समस्याओं की चीरफाड़ करनी चाहिए । केडर बेस्ड पार्टी से नंद कुमार साय जी का कांग्रेस में चला जाना सामान्य घटना नहीं है।
यह हो सकता है कि उनके समर्थन में अनुशासित तपस्वी कार्यकर्ता न बोलें और वो लोग जरूर बोलेंगे जो संगठन में हैं।बयानबाजियां चलेंगी उससे असाध्य रोग दूर नहीं होगा और बढ़ेगा
इस घटना ने भाजपा में उपेक्षित चल रहे ग्रासरूट कार्यकर्ताओं के दर्द को एक बार फिर से मंच दे दिया है। पार्टी भले ही बार-बार दोहरा रही हो को कि वह कार्यकर्ताओं का सम्मान करती है, लेकिन वास्तविकता इससे कोसों दूर है। धमनी वाले अजय शर्मा भी ऐसे ही एक सक्रिय और समर्पित भाजपा कार्यकर्ता है जो पिछले 32 साल से भाजपा के लिए काम कर रहे हैं, लेकिन एक स्थानीय नेता का कोप भाजन बनकर उन्हें हाशिये पर धकेल दिया गया है।
अजय शर्मा ने पूर्व मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह और पार्टी उपाध्यक्ष को ट्वीट करते हुए सवाल किया कि क्या उन्हें सक्रिय सदस्य का दर्जा देकर सम्मान दिया जाएगा या फिर उन्हें भी शुभकामना देकर विदाई दी जाएगी ? अजय शर्मा ने दुख जाहिर करते हुए कहा कि पिछले 19 साल से वे अपनी व्यथा पार्टी फोरम में रखने का प्रयास कर रहे हैं लेकिन उनकी बात कभी नहीं सुनी गई । दरअसल भाजपा में जमीनी कार्यकर्ताओं का यही हाल है और इसी वजह से भाजपा 14 सीट पर सिमट कर रह गई है। अगर यही स्थिति रही तो आने वाले दिनों में सीटों की संख्या दहाई को भी नहीं छू पाएगी। अजय शर्मा धमनी वाले ने अपना दर्द डॉ रमन सिंह से ट्विटर के माध्यम से कह सुनाया । यह अच्छा मौका है डॉक्टर रमन सिंह अजय शर्मा जैसे योग्य और जमीनी कार्यकर्ताओं को सम्मान देकर यह सिद्ध कर सकते हैं कि पार्टी ने 2018 के चुनाव नतीजों से कोई सबक लिया है ।अगर ऐसा नहीं किया गया तो समझा जाएगा कि कार्यकर्ताओं का सम्मान केवल भाषणों, मीडिया बाईट और मुंह जुबानी खर्च में ही किया जा रहा है।