सर्वार्थ सिद्धि योग के बीच धूमधाम से मनाया जा रहा है महाशिवरात्रि पर्व, मंदिरों में उमड़े शिवभक्त , जगह-जगह भंडारे का आयोजन

देवों के देव महादेव की आराधना का महापर्व महाशिवरात्रि शनिवार को पूरे संसार में धूमधाम से मनाया जा रहा है। फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को सर्वसिद्धि योग के बीच सुबह से ही शिवालयों में पूजा अर्चना के लिए शिव भक्त कतार बांधे खड़े नजर आए। पौराणिक मान्यता अनुसार महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था। इस वर्ष शनिवार की तिथि को सर्व सिद्धि योग के बीच महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जा रहा है। इस दौरान प्रदोष व्रत भी पड़ रहा है।

प्रदोष में भगवान शिव और मां पार्वती की पूजा विशेष शुभ फलदाई मानी जाती है।
बिलासपुर और आसपास के सभी शिव मंदिरों में एक दिन पहले ही तैयारी कर ली गई थी। सुबह से ही यहां भक्त बड़ी संख्या में पहुंचते रहे। कतार में भक्तों ने पंचामृत से शिव का अभिषेक किया, जिसके पश्चात बेलपत्र, तुलसी, आक के फूल, धतूरा, बेल, नारियल, मिठाई, तिलक आदि अर्पित करते हुए उन्हें भोग लगाया और उनकी आरती की। मंदिरों में ओम नमः शिवाय का जाप दिनभर गूंजता रहा।


शिव भोले भंडारी कहे जाते हैं । वे तो मात्र बेलपत्र और जलाभिषेक से ही प्रसन्न होकर भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं ।इसलिए महाशिवरात्रि पर उन्हें प्रसन्न करने में भक्तों ने कोई कसर नहीं छोड़ी। दूध दही , घी, शहद, पंचामृत और जल से उनका अभिषेक किया ।उनके प्रिय आक के फूल, धतूरा आदि अर्पित की। इस अवसर पर जगह-जगह भंडारे का भी आयोजन किया गया।
हर महीने की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को शिवरात्रि मनाई जाती है लेकिन फाल्गुन मास की चतुर्दशी विशेष होती है, यह महाशिवरात्रि है क्योंकि इसी दिन माता पार्वती का विवाह देवों के देव महादेव से हुआ था।

महाशिवरात्रि पर भगवान शिव की आराधना करते हुए पूजा, जप और ध्यान करते हुए पूरी रात जागरण का भी विधान है। मान्यता यह भी है कि महाशिवरात्रि का व्रत रखने से अविवाहित महिलाओं का विवाह शीघ्र होता है, तो वहीं निसंतान को संतान की प्राप्ति होती है। ईशान संहिता के अनुसार इसी तिथि पर भगवान शिव प्रकट हुए थे इसलिए इसे भोले भंडारी का जन्मोत्सव भी कहा जाता है।

वहीं एक अन्य मत का मानना है कि शिवमहापुराण के अनुसार आज के दिन ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए भगवान शिव का भगवान ब्रह्मा और भगवान विष्णु ने पहली बार पूजन किया था।
शिवविवाह की तिथि का उल्लेख मार्गशीर्ष में है आज नहीं।

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