अक्षय नवमी पर आंवले के पेड़ की पूजा और आंवले के वृक्ष के नीचे वनभोज के लिए उद्यानों में जुटे सनातनी, शहर के सभी प्रमुख उद्यान में दिखी भीड़

आलोक मित्तल

बुधवार को आंवला नवमी का पर्व उल्लास और भक्ति भाव के साथ मनाया गया। इसे अक्षय नवमी भी कहते हैं। स्वदेशी पिकनिक के इस पर्व का गहरा संबंध आयुर्वेद से भी है। सभी जानते हैं कि आंवला के फल में प्रचुर मात्रा में विटामिन सी, लोह तत्व के अलावा कई औषधीय गुण होते हैं। इस मौसम में बहुतायत में आंवला का फल बाजार में आता है। सनातनी उसका सेवन करें और स्वास्थ्य लाभ ले, इसी के लिए इसी समय आंवला नवमी का पर्व आता है, जिस का धार्मिक महत्व भी है ।पुराणों में महत्वपूर्ण कार्तिक मास में ही भगवान श्री हरी विष्णु योग निद्रा से जागृत होते हैं ।

इसी महीने में माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु की विधि विधान के साथ पूजन की परंपरा है। दीपावली, करवा चौथ, तुलसी विवाह जैसे कई व्रत इसमे में शामिल है। इन्हीं में से एक है अक्षय नवमी। कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी को आंवला नवमी के रूप में मनाया गया। लोग उन उद्यानों में पहुंचे, जहां आंवले के पेड़ मौजूद है। विधि विधान के साथ आंवले के पेड़ की पूजा की गई। इसके पश्चात पूरे परिवार के साथ आंवला वृक्ष के नीचे बैठकर भोजन किया गया।

पुरानी पौराणिक कथा के अनुसार एक बार महालक्ष्मी भ्रमण करने के लिए पृथ्वी लोक पर आई थी। रास्ते में उन्हें भगवान विष्णु और शिव की पूजा एक साथ करने की इच्छा हुई, क्योंकि तुलसी भगवान विष्णु को प्रिय होती है और बेलपत्र भगवान शिव को, इसलिए माता लक्ष्मी को ख्याल आया कि तुलसी और बेल का गुण एक साथ आंवले के पेड़ में ही पाया जाता है। ऐसे में आंवले के वृक्ष को भगवान विष्णु और शिव का प्रतीक मानकर देवी लक्ष्मी ने उसकी पूजा की, जिससे प्रकरण प्रसन्न होकर भगवान विष्णु और शिव प्रकट हुए। लक्ष्मी माता ने आंवले के वृक्ष के नीचे भोजन बनाकर विष्णु और शिव को भोजन कराया। तब से इस तिथि पर आंवला नवमी का पर्व मनाया जाता है।


मान्यता है कि आंवला वृक्ष के मूल में भगवान विष्णु, ऊपर ब्रह्मा, स्कंध में रुद्र, शाखाओं में मुनिगण, पत्तों में वसु, फूलों में मरुद्गण और फलों में प्रजापति का वास होता है । ऐसे में आंवले के पेड़ की पूजा करने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। साथ ही इस की पूजा-अर्चना से व्यक्ति के जीवन में धन, विवाह, संतान दांपत्य जीवन से संबंधित समस्या खत्म हो जाती है। मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए भी अक्षय नवमी पर आंवले के वृक्ष की पूजा करने का विधान है।


इस दिन थाल सजाकर महिलाएं उद्यानों में पहुंची। बिलासपुर में विवेकानंद उद्यान, स्मृति वन, कानन पेंडारी समेत कई उद्यानों में महिलाओं ने आंवले के वृक्ष की पूजा अर्चना कर सुत लपेटा। वही पूजा अर्चना में विशेष प्रकार के व्यंजन और फल आदि अर्पित किए गए। आरती एव कथा श्रवण के बाद सपरिवार सभी ने आंवले के वृक्ष के नीचे बैठकर भोजन किया, जिसमें आंवले का भी सेवन किया गया। आंवले को अमृत माना जाता है। इस दिन उद्यानों में भारी भीड़ नजर आई । पूजा अर्चना के बाद सभी तरह-तरह के व्यंजनों का स्वाद लेते देखे गए। इसके साथ ही अब पिकनिक का दौर भी आरंभ हो जाएगा।

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