संघर्ष पैनल ने फूंका सेंट्रल विश्वविद्यालय प्रबंधन का पुतला, प्रबंधन पर लगाया पक्षपात का आरोप

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 घासीदास केंद्रीय विश्वविद्यालय में होने वाले छात्रसंघ चुनाव को लेकर रोज नया बवाल सामने आ रहा है। यहां विश्वविद्यालय प्रशासन पर लापरवाही, अनियमितता और पक्षपात का आरोप लगाया जा रहा है। चुनाव कार्यक्रम में किए गए बदलाव को लेकर मंगलवार को अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद समर्थित संघर्ष पैनल के छात्रों द्वारा विश्वविद्यालय प्रशासन के खिलाफ आंदोलन किया गया। आंदोलनकारी छात्रों ने सबसे पहले विश्वविद्यालय मुख्य द्वार पर विश्वविद्यालय प्रशासन का पुतला फूंका,  जिसके बाद छात्र नारेबाजी करते हुए गुरु घासीदास विश्वविद्यालय प्रशासन को ज्ञापन सौंपने प्रशासनिक भवन की ओर बढ़े, मगर बीच में ही उन्हें  यह कहकर रोक दिया गया कि तहसीलदार और डीएसडब्ल्यू मौजूद नहीं है, लेकिन संघर्ष पैनल के छात्रों ने आरोप लगाया कि उनके प्रतिस्पर्धी छात्र संगठन को प्रशासनिक भवन के भीतर प्रवेश दिया गया है, लेकिन इन्हें पक्षपातपूर्ण ढंग से रोका जा रहा है।

इस तरह विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा सौतेला व्यवहार किए जाने से नाराज छात्रों ने विश्वविद्यालय के खिलाफ जमकर नारेबाजी की, जिन्होंने आरोप लगाया कि छात्र संघ चुनाव लड़ रहा ब्रदर हुड पैनल विश्वविद्यालय का प्रिय है इसलिए छात्रों के हित में लड़ाई लड़ने वाले अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद समर्थित संघर्ष पैनल के साथ सौतेला व्यवहार किया जा रहा है। अपनी बात मनवाने संघर्ष पैनल के सदस्य प्रशासनिक भवन के सामने ही धरने पर बैठ गए। इस मौके पर निवर्तमान प्रदेश मंत्री सन्नी केसरी ने कहा कि केंद्रीय विश्वविद्यालय में छात्र परिषद चुनाव 24 और 25 जनवरी को होना था लेकिन चुनाव अधिकारी एवं विश्वविद्यालय प्रशासन की लापरवाही अनियमितता तथा छात्र परिषद चुनाव को लेकर विश्वविद्यालय की उदासीनता के कारण छात्र परिषद चुनाव की तिथि आगे बढ़ा दी गई है। उल्लेखनीय है कि लिंगदोह कमेटी की अनुशंसा के अनुसार छात्र परिषद चुनाव सत्र शुरू होने के 8 हफ्ते के भीतर कराना होता है , परंतु विश्वविद्यालय की हठधर्मिता के कारण यह चुनाव सत्र आरंभ होने के 6 महीने बाद कराया जा रहा है। जो कि लिंगदोह कमिटी की सिफारिशों का उल्लंघन है। इस दौरान विश्वविद्यालय एबीवीपी इकाई के अध्यक्ष अमन कुमार ने कहा कि विश्वविद्यालय अपने करीबी छात्र संगठन को लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से सारा प्रपंच कर रहा है, साथ ही उन्होंने अधिकारी और डीन पर लापरवाही अनियमितता का आरोप लगाया। बार बार चुनाव की तारीख बदलने से भी सेंट्रल यूनिवर्सिटी राजनीति का अखाड़ा बनता जा रहा है। देश के कई विश्वविद्यालय आज छात्र राजनीति के चलते बर्बादी के कगार पर है ।वामपंथ के प्रवेश से विश्वविद्यालय में टुकड़े टुकड़े गैंग प्रभावी होते जा रहे हैं, इससे अंततः उन छात्र-छात्राओं को ही नुकसान होता है जो वास्तव में विश्वविद्यालय केवल शिक्षा प्राप्त करने आते हैं, जिन्हें छात्र राजनीति से कोई सरोकार नहीं है, लेकिन भविष्य की राजनीति में कैरियर बनाने का मंसूबा रखने वाले छात्र नेताओं के लिए तो कॉलेज भी किसी चुनावी अखाड़े से कम नहीं है। इसलिए वे किसी ना किसी आंदोलन के बहाने अपनी छात्र राजनीति को चमकाने का अवसर तलाशते रहते हैं। विश्वविद्यालय प्रबंधन को ऐसे छात्रों को इस तरह का अधिक अवसर ना देकर सत्र के शुरू में ही छात्र संघ चुनाव की औपचारिकता पूरी कर लेनी चाहिए, ताकि शेष शैक्षणिक सत्र में विश्वविद्यालय में केवल पढ़ाई हो सके।

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