गाय को राष्ट्र माता घोषित न किए जाने के विरोध में अपना प्रण पूरा करते हुए गौ सेवक आदेश सोनी ने अपनी उंगली काट कर दी बलि

शशि मिश्रा

रायपुर। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में सोमवार को गौ माता की उपेक्षा और सड़क दुर्घटनाओं में हो रही उनकी अकाल मृत्यु के विरोध में गौ भक्त आदेश सोनी ने अपनी प्रतिज्ञा निभाते हुए अत्यंत साहसिक किंतु पीड़ादायक कदम उठाया। आदेश सोनी ने पूर्व में घोषणा की थी कि यदि गौ माता को राज्य माता का दर्जा नहीं दिया गया तो वे अपने शरीर का अंग अर्पित करेंगे। आज उन्होंने इस शपथ को पूर्ण करते हुए अपनी एक उंगली काटकर अलग कर दी।

आदेश सोनी लंबे समय से गौ संरक्षण और गौ सेवा के लिए संघर्षरत रहे हैं। उन्होंने कई बार राज्य सरकार से निवेदन किया कि गाय को राज्य माता का दर्जा दिया जाए, जिससे समाज और शासन दोनों स्तर पर गौ माता की रक्षा सुनिश्चित हो सके। परंतु सरकार की ओर से कोई ठोस निर्णय नहीं लिए जाने पर उन्होंने यह चरम कदम उठाया।

भारतीय संस्कृति में गौ माता का स्थान सर्वोपरि माना गया है। शास्त्रों में कहा गया है कि “गावः सर्वसुखप्रदा” अर्थात् गाय सभी प्रकार का सुख देने वाली है। गौ का दूध, दही, घी, गोबर और गोमूत्र पंचगव्य के रूप में न केवल धार्मिक अनुष्ठानों में उपयोग होता है बल्कि औषधीय गुणों से भरपूर है। गाय को ‘कृपा और मातृत्व’ का प्रतीक माना गया है। यही कारण है कि वेदों और पुराणों में गौ हत्या को महापाप कहा गया है।

गौ हत्या रुकना क्यों आवश्यक

  1. धार्मिक दृष्टि से – गौ रक्षा को धर्म रक्षा के समान माना गया है। गाय को माता का दर्जा इसलिए दिया गया क्योंकि वह निस्वार्थ भाव से समाज को पोषण प्रदान करती है।
  2. आर्थिक दृष्टि से – ग्रामीण अर्थव्यवस्था में गाय का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण है। खेतों की उपजाऊ शक्ति बढ़ाने में गोबर और गोमूत्र की भूमिका अद्वितीय है।
  3. पर्यावरणीय दृष्टि से – गोबर और गोमूत्र से बनी जैविक खाद और अन्य उत्पाद पर्यावरण संतुलन बनाए रखने में सहायक हैं।
  4. सामाजिक दृष्टि से – समाज में करुणा, दया और जीवों के प्रति संवेदना का भाव जीवित रखने के लिए गौ रक्षा अत्यंत आवश्यक है।

आदेश सोनी की यह घटना समाज और शासन दोनों को झकझोरने वाली है। यह केवल व्यक्तिगत बलिदान नहीं बल्कि उन करोड़ों गौ भक्तों की आवाज़ है जो गौ माता को राष्ट्र और संस्कृति की धरोहर मानते हैं।

अब समय आ गया है कि शासन-प्रशासन और समाज मिलकर ठोस कदम उठाए—सड़क दुर्घटनाओं से गायों की रक्षा के लिए समुचित व्यवस्था हो, गौठानों में पर्याप्त चारा और पानी उपलब्ध कराया जाए तथा गौ हत्या पर सख्त रोक लगाई जाए।

आदेश सोनी का यह त्याग आने वाली पीढ़ियों को यह संदेश देता है कि गाय की रक्षा केवल आस्था का विषय नहीं, बल्कि अस्तित्व और संस्कृति की रक्षा का प्रश्न है।

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