26 हफ्ते में जन्मे 950 ग्राम के बच्चे को मिला नया जीवन, बिलासपुर के श्री शिशु भवन में हुआ मेडिकल मिराकल

प्रवीर भट्टाचार्य

मॉडर्न मेडिकल साइंस और समर्पित चिकित्सकों के प्रयासों ने एक बार फिर से चमत्कार कर दिखाया है। आमतौर पर 28 सप्ताह से पहले जन्म लेने वाले प्रीमेच्योर बच्चों के जीवित रहने की संभावना बेहद कम होती है, लेकिन बिलासपुर के मध्य नगरी के पास स्थित छत्तीसगढ़ के सबसे बड़े बच्चों के अस्पताल श्री शिशु भवन में 26 सप्ताह में जन्मे और मात्र 950 ग्राम वजनी बच्चे को नवजीवन दिया गया है। यह एक मेडिकल मिराकल से कम नहीं है।

चाम्पा प्रकाश इंडस्ट्रीज में कार्यरत अधिकारी विवेक काले और शासकीय स्कूल की शिक्षिका स्वाति काले के घर आठ साल बाद दूसरी बार मातृत्व की खुशी दस्तक देने वाली थी। परिवार में खुशी की लहर दौड़ गई थी, लेकिन यह खुशी ज्यादा दिन टिक नहीं सकी। गर्भधारण के महज चार माह बाद चाम्पा की डॉक्टर निहारिका ने बताया कि स्वाति की बच्चेदानी का मुंह खुल गया है, जिसे बचाने के लिए तुरंत स्टिच करना आवश्यक था। यह प्रक्रिया पूरी हुई लेकिन छह माह में स्वाति को अचानक लेबर पेन शुरू हो गया। हालात बिगड़ते देख डॉक्टरों ने इमरजेंसी ऑपरेशन का निर्णय लिया और 21 अप्रैल को मात्र 950 ग्राम वजनी एक नवजात शिशु का जन्म हुआ, जो न ठीक से सांस ले पा रहा था और न ही उसकी स्थिति स्थिर थी। डॉक्टर निहारिका ने तत्काल सुझाव दिया कि बच्चे को बेहतर इलाज के लिए बिलासपुर के श्री शिशु भवन ले जाया जाए।

विवेक और स्वाति ने एक उम्मीद के साथ शिशु भवन से संपर्क किया, जहां से एंबुलेंस में वेंटिलेटर के सहारे बच्चे को बिलासपुर लाया गया। यहां से शुरू हुई एक कठिन, लंबी और बेहद चुनौतीपूर्ण चिकित्सकीय यात्रा। डॉक्टर श्रीकांत गिरी ने बताया कि इतने कम समय में जन्मे और इतने कम वजन वाले बच्चे का जीवित रहना सामान्यत: संभव नहीं होता, खासकर जब बच्चे को सांस लेने में कठिनाई हो और फेफड़े भी पूरी तरह विकसित न हुए हों। लेकिन श्री शिशु भवन में अमेरिका से मंगाए गए बेबी इनक्यूबेटर और इटली के विशेष वेंटिलेटर ‘सिंक्रोनाइज एनआईपीपी’ जैसे वर्ल्ड क्लास संसाधन मौजूद हैं, जिनकी मदद से उपचार आरंभ किया गया।

बच्चा करीब एक महीने तक वेंटिलेटर पर रहा। इस दौरान डॉक्टर श्रीकांत गिरी, डॉक्टर रवि द्विवेदी और उनकी पूरी टीम दिन-रात प्रयासरत रही। धीरे-धीरे बच्चे की स्थिति में सुधार आने लगा। उसने सामान्य रूप से सांस लेना शुरू किया, वजन बढ़ने लगा। पहले ड्रिप के जरिए पोषण दिया गया, फिर पाइप के जरिए दूध पिलाया गया। इस दौरान श्री शिशु भवन का यशोदा मदर मिल्क बैंक अत्यंत मददगार साबित हुआ। डॉक्टर गिरी ने बताया कि छत्तीसगढ़ में श्री शिशु भवन एकमात्र निजी अस्पताल है जहां मदर मिल्क बैंक की सुविधा है। यह मिल्क बैंक विश्व हिंदू परिषद और श्री शिशु भवन द्वारा संचालित है, जहां जरूरतमंद बच्चों के लिए मां का दूध उपलब्ध कराया जाता है।

इन सभी संसाधनों, डॉक्टरों की मेहनत और माता-पिता के धैर्य एवं विश्वास के चलते आखिरकार वह पल आया जब बच्चा स्वस्थ घोषित हुआ। करीब 58 दिन अस्पताल में रहने के बाद जब उसे डिस्चार्ज किया गया तो शिशु भवन के डॉक्टर्स और स्टाफ के चेहरों पर भी उतनी ही संतुष्टि थी जितनी विवेक और स्वाति काले के चेहरे पर। उन्होंने बार-बार डॉक्टरों और अस्पताल का आभार जताया और कहा कि यह उनके लिए किसी वरदान से कम नहीं।

डॉक्टर श्रीकांत गिरी ने कहा कि यह उपलब्धि केवल आधुनिक चिकित्सा उपकरणों और दवाओं की नहीं, बल्कि माता-पिता के विश्वास, टीम की निष्ठा और ईश्वर की कृपा का परिणाम है। इस घटना ने एक बार फिर से यह सिद्ध कर दिया है कि यदि संसाधन, समर्पण और समय पर सही निर्णय हों, तो असंभव को भी संभव बनाया जा सकता है। 26 हफ्ते में जन्मे बच्चे को जीवनदान देना वास्तव में मॉडर्न मेडिकल साइंस की एक मिसाल है।

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