कवि नजरुल जयंती समारोह का भव्य आयोजन, निखिल भारत बंग साहित्य सम्मेलन बिलासपुर शाखा के तत्वावधान में सम्पन्न

बिलासपुर, 27 मई — निखिल भारत बंग साहित्य सम्मेलन की बिलासपुर शाखा द्वारा क्रांतिकारी कवि, लेखक एवं संगीतकार काजी नजरुल इस्लाम की जयंती को हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। यह आयोजन रामकृष्ण मंदिर, हेमू नगर स्थित सभा भवन में आयोजित किया गया, जिसमें संस्था के अनेक साहित्यप्रेमी सदस्य, कलाकार एवं गणमान्य नागरिक उपस्थित रहे।

कार्यक्रम की शुरुआत सम्मेलन के अध्यक्ष श्री अचिन्त्य कुमार बोस द्वारा दीप प्रज्वलन एवं कवि नजरुल के छायाचित्र पर माल्यार्पण तथा पुष्पांजलि अर्पित कर की गई। उन्होंने अपने वक्तव्य में कवि नजरुल के क्रांतिकारी विचारों और उनकी रचनाओं की वर्तमान समय में प्रासंगिकता पर प्रकाश डाला। साथ ही सभी उपस्थित सदस्यों को नजरुल की कविताओं और संगीत के माध्यम से उनके विचारों से जुड़ने का आग्रह किया।

इसके पश्चात संस्था की सचिव डॉ. सोमा लाहिड़ी मल्लिक ने काजी नजरुल इस्लाम की जीवनी पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि किस प्रकार से कवि ने अपने जीवन में सामाजिक अन्याय, धार्मिक संकीर्णता और उपेक्षित वर्गों की आवाज बनकर साहित्य और संगीत के माध्यम से क्रांति का शंखनाद किया।

वरिष्ठ सदस्य असित बरन दास ने भी कवि की जीवनी के विविध पहलुओं पर रोशनी डालते हुए उनकी एक प्रेरणादायक कविता का पाठ किया। इसके पश्चात सम्मेलन के सदस्यों द्वारा नजरुल का प्रसिद्ध समूह गीत “मोदेर गरोब मोदेर आशा” प्रस्तुत किया गया, जिसने माहौल को भावविभोर कर दिया।

कार्यक्रम में एकल संगीत प्रस्तुतियाँ निहार रंजन मल्लिक, अचिन्त्य कुमार बोस, प्रबल मुखर्जी, देवाशीष सरकार, मौमिता चक्रवर्ती, बिथीका मंडल, डॉ. सोमा लाहिड़ी मल्लिक एवं शोभा विश्वास ने दी। सभी प्रस्तुतियाँ अत्यंत भावपूर्ण एवं सराहनीय रहीं। तबला संगत दिलीप विश्वास द्वारा किया गया, जिसने संगीत की प्रस्तुतियों को और भी सशक्त बनाया।

कविता पाठ का आयोजन भी समारोह का विशेष आकर्षण रहा, जिसमें अशोक कुण्डु एवं रूपा राहा ने नजरुल की कविताओं का पाठ कर श्रोताओं को भावविभोर कर दिया।

कार्यक्रम का संचालन कुशलता पूर्वक श्रावणी दत्त ने किया। समापन अवसर पर समूह कोरस गीत “तोरा सब जय ध्वनि कर” और “मोरा झन्झार मतों उद्दाम” की प्रस्तुति ने कार्यक्रम को चरम पर पहुँचा दिया।

इस अवसर पर ताप्ती मोइत्रा, संहिता बाघ, उमा दास सहित अनेक गणमान्य सदस्य एवं श्रोतागण उपस्थित थे। यह आयोजन न केवल कवि काजी नजरुल इस्लाम की स्मृति को नमन करने का माध्यम बना, बल्कि उनकी विचारधारा को आज के संदर्भ में पुनः समझने और आत्मसात करने का अवसर भी प्रदान किया।

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