श्री पीतांबरा पीठ सरकंडा में भगवान गणेश, भैरवनाथ और हनुमान जी की प्रतिमा का हुआ प्राण प्रतिष्ठा समारोह, चैत्र नवरात्र में रूद्र चंडी महायज्ञ और श्रीमद् देवी भागवत कथा का भी आयोजन

श्री पीतांबरा पीठ त्रिदेव मंदिर सुभाष चौक सरकंडा बिलासपुर छत्तीसगढ़ में चैत्र नवरात्र उत्सव हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है।इसी कड़ी में नवरात्रि के सातवे दिन माँ श्री ब्रह्मशक्ति बगलामुखी देवी का पूजन श्रृंगार कालरात्रि देवी के रूप में किया गया एवं प्रातः कालीन श्री शारदेश्वर पारदेश्वर महादेव का रुद्राभिषेक नमक चमक विधि के द्वारा किया गया तत्पश्चात रूद्र चण्डी महायज्ञ एवं दुर्गा सप्तशती पाठ देवघर झारखंड से पधारे यज्ञाचार्य गिरधारी वल्लभ झा के नेतृत्व में विद्वानों के द्वारा निरंतर किया जा रहा है।

पीठाधीश्वर आचार्य डॉ दिनेश जी महाराज ने कहा कि दैवी सम्पदा और असुरी सम्पदा दोनों संसार को चलाती है। दैवी सम्पदा अर्थात देवी की उपासना से प्राप्त। कर्म,भक्ति,ज्ञान,श्री सम्पदा संसार में सुख, समृद्धि के साथ-साथ अंत में मोक्ष में सहयोगी होती है, परंतु असुरी सम्पदा दुख और दरिद्र बनाती है। और अंत में चौरासी गुना बंधन बनाती है।जैसे माँ अपने बालक के कल्याण के लिए आतुर रहती है,वैसे ही भगवती अपने भक्तों के लौकिक ,पारलौकिक और परमार्थिक कल्याण के लिए तत्पर रहती है।

पीठाधीश्वर आचार्य डॉ दिनेश जी महाराज ने बताया कि चैत्र शुक्ल पक्ष षष्ठी अधिवास-जलाधिवास, अन्नाधिवास, घृताधिवास, फलाधिवास, पुष्पाधिवास, शय्याधिवास पूजन संपन्न था।इसी कड़ी मे 15 अप्रैल 2024, सोमवार, चैत्र शुक्ल पक्ष सप्तमी को श्री गणेश जी, श्री हनुमान जी, श्री भैरव जी का प्राण प्रतिष्ठा (अभिजीत मुहूर्त में)किया गया।
इस अवसर पर श्रीमद् देवी भागवत महापुराण नवरात्र उत्सव एवं प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव में सम्मिलित होने के लिए भक्ति पीठाधीश्वर स्वामी सर्वेश्वरानंद सरस्वती जी महाराज श्री कृष्ण आश्रम गढ़मुक्तेश्वर हापुड उत्तरप्रदेश से एवं स्वामी योगानंद जी पधारे। इस अवसर पर अनेक भक्तजन एवं गणमान्य नागरिक उपस्थित रहे।

16 अप्रैल 2024, मंगलवार, चैत्र शुक्ल पक्ष अष्टमी कन्यापूजन, अग्नि स्थापन, हवन श्री दुर्गासप्तशती पाठ किया जाएगा।

17 अप्रैल 2024, बुधवार, चैत्र शुक्ल पक्ष नवमी हवन रुद्राष्टाध्यायी, मध्याह्न अभिजीत मुहूर्त में यज्ञ पूर्णाहुति, भण्डारा का आयोजन किया जाएगा।

श्री पीतांबरा पीठ कथा मंडप से कथा व्यास आचार्य श्री मुरारी लाल त्रिपाठी राजपुरोहित कटघोरा ने बताया कि व्यक्ति को कभी भी सत्य,धर्म,विनय का त्याग नही करना चाहिए।राजा हरिशचंद्र के बारे में बताया कि एक बार उन्होंने सपने में महर्षि विश्वामित्र को अपना सारा राज्य दान में देते हुए देखा। लेकिन अगले दिन जब वे सुबह जागे तो सपने को भूल गए थे।महर्षि विश्वामित्र महल में आए और राजा हरिश्चंद्र तो उनका सपना याद दिलाया।इसके बाद राजा ने खुशी-खुशी अपना राज्य उन्हें दान में दे दिया।लेकिन दान के बाद दक्षिणा की बारी आई तो वे बोले,पहले ही सब कुछ मैंने दान कर दिया अब अब दक्षिणा के लिए धन कहां से लाऊं।बहुत विचार कने के बाद राजा हरिशचंद्र ने खुद को बेचने का फैसला किया और काशी की ओर चल पड़े।इधर रानी तारामती और पुत्र रोहिताश्व को एक व्यक्ति ने खरीद लिया।उधर राजा हरिशचंद्र को श्मशान के एक स्वामी ने खरीद लिया।हरिशचंद्र की पत्नी उस व्यक्ति के घर पर बर्तन मांजने और चौका-चूल्हा का काम करने लगी. वहीं कभी सिंहासन पर बैठने वाले राजा हरिशचंद्र श्मशान का काम करने लगे।एक दिन राजा के पुत्र रोहिताश्व को सांप ने डंस लिया, जिससे उसकी मौत हो गई।लेकिन तारामती के पास कफन तक के पैसे नहीं थे।तारामती किसी तरह दुखी मन से पुत्र के शव को गोद में उठाकर शमशान पहुंची,लेकिन श्मशान पहुंचते ही हरिश्चंद्र तारामती से श्मशान का कर मांगने लगे क्योंकि श्मशाम का कर लेना नियम था और वो अपने मालिक की आज्ञा का पालन कर रहे थे।राजा हरिशचंद्र पत्नी से बोले कि,श्मशान का कर तो देना ही पड़ेगा।फिर हरिशचंद्र ने पत्नी से कहा कि यदि तुम्हारे पास कर देने के लिए धन नहीं है तो अपनी साड़ी का कुछ भाग फाड़कर दे दो।उसे ही कर के रूप में रख लूंगा।लाचार होकर जैसे ही तारामती ने अपनी साड़ी फाड़ना शुरू किया उसी समय तेज गर्जन हुआ और विश्वामित्र प्रकट हो गए।विश्वामित्र बोले- हे राजा! तुम धन्य हो। ये सब तुम्हारी परीक्षा हो रही थी, जिसमें तुमने यह सिद्ध कर दिया कि तुम श्रेष्ठ, दानवीर, सत्यवादी और धार्मिक हो।इसके बाद पुत्र रोहिताश्व भी जीवित हो उठा और राजा को उसका पूजा राज्य भी लौटा दिया गया।इतना ही नहीं महर्षि विश्वामित्र ने कहा कि, संसार में जब भी धर्म, दान और सत्य की बात की जाएगी, राजा हरिश्चंद्र का नाम आदर-सम्मान के साथ सबसे पहले लिया जाएगा।

पवित्र तीर्थों का वर्णन, चित्त शुद्धि की प्रधानता तथा इस सम्बन्ध में विश्वामित्र और वसिष्ठ के परस्पर वैरकी कथा, राजा हरिश्चन्द्र का वरुणदेव के शाप से जलोदरग्रस्त होना।राजा हरिश्चन्द्र का शुनःशेप को यज्ञीय पशु बनाकर यज्ञ करना, विश्वामित्र से प्राप्त वरुणमन्त्र के जप से शुनः शेप का मुक्त होना, परस्पर शाप से विश्वामित्र और वसिष्ठ का बक तथा आडी होना आदि प्रसंग का वर्णन किया गया।

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