तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में 7 देशों के इतिहासकार हुए शामिल,भारत ने सदैव विश्व कल्याण की भावना को सर्वोपरि रखा- कुलपति प्रो. चक्रवाल




बिलासपुर। गुरू घासीदास विश्वविद्यालय (केन्द्रीय विश्वविद्यालय) के कुलपति प्रोफेसर आलोक कुमार चक्रवाल ने कहा कि भारत ने सदैव वसुधैवकुटुंबकम की भावना के साथ विश्व कल्याण की बात की है। यह बात प्रो. चक्रवाल ने भारत और दक्षिण पूर्व एशिया के मध्य बहुआयामी ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक संपर्क विषय पर आयोजित तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन अवसर पर कही। यह तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी दिनांक 10 से 12 फरवरी, 2023 तक आयोजित की जा रही है।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ. बालमुकुंद पांडे, राष्ट्रीय संगठन सचिव अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना नई दिल्ली ने कहा कि भारत के गौरवशाली एवं वैभवशाली इतिहास को समझने के लिए पश्चिमी चश्में को उतारना होगा। हमें भारत को भारत के दृष्टिकोण से दिल्ली को केन्द्र में रखकर देखना होगा। प्राचीनकाल से भारत का दक्षिण पूर्व एशिया के देशों के साथ व्यापारिक तथा सांस्कृतिक संबंध रहा है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता विश्वविद्यालय के माननीय कुलपति महोदय प्रोफेसर आलोक कुमार चक्रवाल ने कहा कि भारत सदैव विश्व कल्याण के लिए तत्पर रहा है। हाल ही में तुर्की में आए विनाशकारी भूकंप के बाद पीड़ितों की मदद के लिए दुनिया में सर्वप्रथम भारत ने मानवीय सहायता का हाथ बढ़ाया है। उन्होंने कहा कि हमारे इतिहासकारों को भारत के ऐतिहासिक गौरव को स्वतंत्र दृष्टिकोण एवं तथ्यात्मक विश्लेषण कर प्रस्तुत करना चाहिए। वर्तमान विश्व भारत की सांस्कृतिक उपलब्धियों से अभिसिंचित हो रहा है।
कुलपति प्रो. चक्रवाल ने कहा कि पं. दीनदयाल उपाध्याय के एकात्म मानववाद में भारत के दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के साथ संबंधों की स्पष्ट व्याख्या की गई है। भारत ने हमेशा विश्व में शांति, प्रेम और सद्बभाव की बात की है। भारतवर्ष में जितनी विविधताएं है उतनी समूचे विश्व के किसी भी राष्ट्र में नहीं हैं।


कार्यक्रम का बीज वक्तव्य प्रो. भगवती प्रसाद शर्मा, पूर्व कुलपति गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय नोएडा उत्तरप्रदेश ने देते हुए बताया कि भारत का दक्षिण पूर्व एशिया के देशों के साथ बहुत ही प्रगाढ़ संबंध रहा है। इसका प्रमाण बाली, म्यामार, थाईलैंड और कंबोडिया जैसे देशों के पूजास्थलों एवं प्राचीन स्थापत्य कला में स्पष्ट उल्लेखित होता है। पावर प्वाइंट प्रस्तुति में चित्रों के माध्यम से उन्होंने इन देशों के विभिन्न एयरपोर्ट एवं अन्य मंदिरों आदि में स्थित भारतीय पुरातन संस्कृति की झलक दिखाया।
मंचस्थ विशिष्ट अतिथिगण
विशिष्ट अतिथियों में श्री थैरापत मॉगकोलनवीन मंत्री डिप्टी चीफ ऑफ मिशन किंगडम ऑफ थाईलैंड, पद्मश्री डॉ. जे.के. बजाज, अध्यक्ष भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद नई दिल्ली, प्रो, वैद्यनाथ लाभ कुलपति नव-नालंदा महाविहार नालंदा बिहार, प्रो. सच्चिदानंद मिश्र सदस्य सचिव भारतीय दार्शानिक अनुसंधान परिषद नई दिल्ली, प्रो, अल्केश चतुर्वेदी कुलसचिव सांची विश्वविद्यालय, सांची, प्रो. डी.सी. चौबे आईजीएनसीए नई दिल्ली एवं प्रो. ताशी छेरिंग, केन्द्रीय उच्चतिब्बती शिक्षा संस्थान, सारनाथ वाराणासी उत्तर प्रदेश शामिल रहे।


स्वागत एवं सरस्वती वंदना
कार्यक्रम के प्रारंभ में मंचस्थ अतिथियों ने दीप प्रज्जवलन कर मां सरस्वती की प्रतिमा पर पुष्प अर्पित किये। छत्तीसगढ़ के लोक कलाकारों के द्वारा वैदिक मंत्रोचार किया गया। तत्पश्चात अतिथियों का पुष्पगुच्छ से स्वागत किया गया।
07 देशों के प्रतिभागी शामिल
भारत के अलावा थाईलैंड, म्यामार, इंडोनेशिया, कंबोडिया, तिब्बत, मलेशिया एवं वियतनाम के प्रतिभागियों ने संगोष्ठी में हिस्सा ले रहे हैं। इस संगोष्ठी में 200 से अधिक शोधपत्र पढ़े जाएंगे।
पुस्तक एवं स्मारिका का विमोचन एवं स्मृति चिह्न भेंट
इस अवसर पर माननीय कुलपति प्रो. आलोक कुमार चक्रवाल द्वारा संपादित पुस्तक भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष के जनजातीय नायक एवं अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी की स्मारिका का विमोचन मंचस्थ अतिथियों द्वारा किया गया। इसके साथ ही छत्तीसगढ़ी गमछा एवं बस्तर आर्ट के स्मृति चिह्न भेंट किया गया। कार्यक्रम के अंत में विश्वविद्यालय के कुलसचिव प्रो. मनीष श्रीवास्तव ने धन्यवाद ज्ञापन एवं संचालन डॉ. नीतेश मिश्रा ने किया।

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