श्री पीताम्बरा पीठ सुभाष चौक सरकंडा में शारदीय नवरात्र उत्सव में स्थापित श्री मनोकामना घृत ज्योति कलश ,पीताम्बरा मांँ बगलामुखी देवी का विशेष पूजन,श्रृंगार स्कंदमाता के रूप में किया गया।एवं जप ,यज्ञ श्री देवाधिदेव महादेव का रुद्राभिषेक एवं श्री दुर्गा सप्तशती पाठ ब्राह्मणों के द्वारा निरंतर चल रहा है।आचार्य पं. दिनेश चंद्र पांडेय जी महाराज ने बताया कि नवरात्र के छठवें दिन मांँ बगलामुखी देवी का कात्यायनी देवी के रूप में पूजा-आराधना किया जाएगा। नवरात्रि के छठे दिन मां कात्यायनी की पूजा की जाती है।माँ कात्यायनी की पूजा में कात्यायनी महामाये , महायोगिन्यधीश्वरी। नन्दगोपसुतं देवी, पति मे कुरु ते नमः।।मंत्र का प्रयोग करने से देव गुरु बृहस्पति प्रसन्न हो जाते हैं और कन्याओं को अच्छा पति मिले इसका वरदान देते हैं।माँ को जो सच्चे मन से याद करने से रोग, शोक, संताप, भय आदि का हमेशा के लिए नाश हो जाता है।
जन्म-जन्मांतर के पापों को नष्ट करने के लिए मां के चरणों में और मां की सेवा में हमेशा तत्पर रहना चाहिए.माँ कात्यायनी की भक्ति और उपासना द्वारा मनुष्य को बड़ी सरलता से अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति हो जाती है.इस दिन यानी नवरात्रि के छठे दिन साधक का मन ‘आज्ञा चक्र’ में स्थित होता है, योगसाधना में इस आज्ञा चक्र का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है, इस चक्र में स्थित मन वाला साधक माँ कात्यायनी के चरणों में अपने आप को पूर्ण रूप से समर्पित कर देता है और साधक को मांँ के दर्शन, मांँ का स्नेह और पूर्ण रूप से मां का आशीर्वाद प्राप्त होता है.माँ कात्यायनी अमोघ फलदायिनी हैं,ब्रज की गोपियों ने भगवान कृष्ण को पतिरूप में पाने के लिए मांँ कात्यायनी की पूजा कालिन्दी-यमुना के तट पर की थी।मांँ कात्यायनी ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी के रूप में प्रतिष्ठित हैं।माँ का नाम कात्यायनी कैसे पड़ा इसके विषय में एक कथा प्रचलित है-कत नामक एक प्रसिद्ध महर्षि थे.कत के पुत्र ऋषि कात्य हुए,इन्हीं कात्य के गोत्र में विश्वप्रसिद्ध महर्षि कात्यायन उत्पन्न हुए .महर्षि कात्यायन ने भगवती पराम्बा की कई वर्षों तक कठिन तपस्या करी.महर्षि कात्यायन चाहते थे कि मां भगवती पुत्री के रूप में उनके घर जन्म ले महर्षि कात्यायन की इतनी कठोर तपस्या देखकर मांँ भगवती प्रसन्न हो गई और उन्होंने उनकी प्रार्थना को स्वीकार कर ली.कात्यायन ऋषि की तपस्या से खुश होकर मां ने पुत्री के रूप में उनके घर जन्म लिया ,इसलिए उनका नाम कात्यायनी पड़ा ,वे शक्ति की आदि रूपा है.माँ कात्यायनी का स्वरूप अत्यंत दिव्य चमकीला और भव्य है,इनकी चार भुजाएँ हैं. मांँ कात्यायनी का दाहिनी तरफ का ऊपरवाला हाथ अभयमुद्रा में तथा नीचे वाला वरमुद्रा में है.बाईं तरफ के ऊपरवाले हाथ में तलवार और नीचे वाले हाथ में कमल-पुष्प सुशोभित है.यह सिंह पर विराजमान रहती हैं।
भगवती पीताम्बरा शत्रु नाशक श्री बगलामुखी दसमहाविद्या में आठवीं महाविद्या है यह मांँ बगलामुखी की स्तंभय शक्ति की अधिष्ठात्री है इन्हीं में संपूर्ण ब्रह्मांड की शक्ति का समावेश है ,माता बगलामुखी की उपासना विशेष रूप से वाद-विवाद, शास्त्रार्थ ,मुकदमें में विजय प्राप्त करने के लिए, अकारण आप पर कोई अत्याचार कर रहा हो तो उसे रोकने सबक सिखाने,बंधन मुक्त, संकट से उद्धार, ग्रह -शांति, शत्रुनाश ,एवं संतान प्राप्ति के लिए विशेष फलदायी है।