

श्री पीतांबरा पीठ त्रिदेव मंदिर सुभाष चौक सरकंडा बिलासपुर छत्तीसगढ़ में चैत्र नवरात्र उत्सव हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है।इसी कड़ी में नवरात्रि के आठवे दिन माँ श्री ब्रह्मशक्ति बगलामुखी देवी का श्रृंगार महागौरी देवी के रूप में कर पूजन किया गया तत्पश्चात कन्या भोजन का आयोजन किया गया, नवमी तिथि को श्रीमद् देवी भागवत महापुराण के समापन के साथ ही भंडारा का आयोजन किया जाएगा,

पीठाधीश्वर आचार्य डॉ दिनेश जी महाराज ने कहा कि “यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता” जहां नारी का सम्मान होता है वही देवता का निवास होता है।”कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन” अर्थात कर्म ही सर्वोपरि है।हमारे जीवन में उपासना का अत्यधिक महत्व है प्रत्येक मनुष्य को अपने जीवन में यात्री पूर्वक भगवान की उपासना करनी चाहिए। देवी को माया माया कह निंदा करने और कोसने से नहीं माँ माँ कहने से लोक और परलोक में समृद्धि,सुख और मोक्ष की प्राप्ति होती है,अज्ञानियों के पास जो संसार है वह भी माँ का दिया हुआ है परंतु संसार उसको ही अनुकूल मानता है जो धर्मात्मा और माँ का भक्त होता है अपने निर्धन और प्रतिकूल संसार को सधने और अनुकूल करने के लिए कलयुग में चण्डी माँ और विनायक भगवान अधिकृत हैं। “कलौं चण्डी विनायकौ” देवी भागवत की कथा प्रमाण है कि जिन जिन राक्षसौ और राक्षसी स्वभाव वालों ने भगवान को देर किनारे करके माया को अपनाया है वह रावण की तरह ही संपत्ति,संतति और समान पाने के बाद भी कंगाल हुए और मृत्यु को प्राप्त हुए हैं,मोक्ष को नहीं। इस माया को माँ के कृपा देखते हुए उपास्य और दर्शनीय बनाये।

श्री पीतांबरा पीठ कथा मंडप से कथा व्यास आचार्य श्री मुरारी लाल त्रिपाठी राजपुरोहित कटघोरा ने बताया कि देवर्षि नारद और पर्वतमुनि का एक- दूसरे को शाप देना, राजकुमारी दमयन्ती का नारद से विवाह करने का निश्चय,वानरमुख नारद से दमयन्ती का विवाह, नारद तथा पर्वत का परस्पर शापमोचन,भगवान् विष्णुका नारदजी से माया की अजेयताशका वर्णन करना, मुनि नारद को माया वश स्त्रीरूप की प्राप्ति तथा राजा तालध्वज का उनसे प्रणय-निवेदन करना।राजा तालध्वज से स्त्रीरूपधारी नारदजी का विवाह, अनेक पुत्र-पौत्रों की उत्पत्ति और युद्ध में उन सबकी मृत्यु, नारदजी का शोक और भगवान् विष्णु की कृपा से पुनः स्वरूपबोध,राजा तालध्वज का विलाप और ब्राह्मण- वेशधारी भगवान् विष्णु के प्रबोधन से उन्हें वैराग्य होना, भगवान् विष्णुका नारद से माया के प्रभाव का वर्णन करना,व्यासजी का राजा जनमेजय से भगवती की महिमा का वर्णन करना आदि प्रसंग का विस्तृत वर्णन किया गया इसी के साथ ही श्रीमद् देवी भागवत महापुराण कथा संपूर्ण हुआ।


