भगवान जगन्नाथ हुए स्वस्थ, रविवार सुबह नेत्र उत्सव और नवजोबन उत्सव के साथ भक्तों को दिया एक बार फिर से दर्शन, आज निकलेगी उनकी भव्य रथ यात्रा

आकाश मिश्रा

ऐसा 72 वर्ष बाद हुआ जब ग्रहों के संजोग से एक ही दिन नेत्र उत्सव और रथ यात्रा का पर्व मनाया जा रहा है। देव स्नान पूर्णिमा पर 108 कलश जल से स्नान करने के बाद संसार के पालन कर्ता भगवान जगन्नाथ, उनकी बहन सुभद्रा, भाई बलभद्र और सुदर्शन चक्र ज्वर से पीड़ित हो गए थे, जिसके बाद मंदिर के कपाट भक्तों के लिए बंद रखकर 14 दिनों तक उनका आयुर्वेदिक पद्धति से काढ़ा आदि से उपचार किया गया। मान्यता अनुसार 14 दिन के उपचार से तीनों भाई-बहन अब स्वस्थ हो गए हैं ।

मनाया गया नेत्र उत्सव

नियम अनुसार हर वर्ष आसाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को नेत्र उत्सव मनाया जाता है, लेकिन इस बार प्रतिपदा और द्वितीया की तिथि एक होने से रविवार सुबह नेत्र उत्सव मनाया गया। बिलासपुर के रेलवे क्षेत्र स्थित श्री जगन्नाथ मंदिर में सुबह 6:00 बजे अनुष्ठान आरंभ हुए। सुबह एक बार फिर से मंदिर के कपाट श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए गए। नियम अनुसार पुजारी ने भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा को विशेष चंदन का लेप लगाया जिसे पारंपरिक रूप से खाली प्रसाद लागी नीति कहा जाता है। इसके पश्चात भगवान को नया कलेवर धारण कराया गया, इसे घाना लागी गुप्त नीति कहा जाता है ।मान्यता है कि 15 दिन बीमार पड़ने के बाद भगवान को नया जीवन मिला है इसीलिए इसे नव जोबन उत्सव कहा जाता है। इस मौके पर भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा को नए नेत्र प्रदान किए जाते हैं इसीलिए इसे नेत्र उत्सव भी कहा जाता है। 15 दिन बाद जैसे ही भगवान ने भक्तों को दर्शन दिए तो मंदिर में दर्शन करने के लिए श्रद्धालु उमड़ पड़े। नियम अनुसार मंदिर के रंग रोगन और सजावट के बाद इस तिथि पर मंदिर में नया ध्वज भी लगाया गया।
श्री जगन्नाथ मंदिर में सुबह से ही तरह-तरह के अनुष्ठान आयोजित किया गए । भगवान को विशेष नैवेद्य का भोग अर्पित किया गया।

दोपहर 2:00 बजे रथ यात्रा

पौराणिक कथा अनुसार राजा धृष्टद्युम्न और उनकी रानी गुंडीचा देवी को भगवान जगन्नाथ ने स्वप्न में आदेश देकर एक नीम के पेड़ की पूजा करने को कहा था। बाद में राजा ने उसी नीम के पेड़ की लकड़ी से ही देव प्रतिमाओं का निर्माण किया। मान्यता है कि हर वर्ष बीमार पड़ने के बाद अपनी मौसी मां गुंडिचा का आतिथ्य स्वीकार करने तीनों भगवान उनके घर जाते हैं। इस बहाने भगवान स्वयं श्रद्धालुओं के बीच पहुंचकर उन्हें दर्शन और आशीर्वाद देते हैं। मान्यता है कि भगवान जगन्नाथ के विशाल नेत्रों से वे श्रद्धालुओं को देखकर उन्हें आशीर्वाद देते हैं। इस अवसर पर उनके रथ की रस्सी खींचने की होड़ मची रहती है, क्योंकि भक्तों का विश्वास है कि ऐसा करने से पुण्य लाभ होता है।
इस वर्ष राजा धृष्टद्युम्न की परंपरा का निर्वहन बिलासपुर में उपमुख्यमंत्री अरुण साव करेंगे। वे दोपहर 1:00 बजे छेरा पहरा की रस्म पूरी करते हुए रथ के आगे झाड़ू लगाएंगे। इसके बाद देव प्रतिमाओं को रथ पर आरूढ़ किया जाएगा। दोपहर करीब 2:00 बजे रथ यात्रा निकलेगी।

इस रास्ते निकलेगी रथ यात्रा

हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी यह रथ यात्रा मंदिर से निकलकर तितली चौक, स्टेशन चौक, बारह खोली, बड़ा गिरजा, तार बाहर, गांधी चौक, दयालबंद होते हुए मंदिर के बगल में उड़िया स्कूल प्रांगण में बने गुंडीचा मंदिर पहुंचेगी । यहां आगामी 15 जुलाई तक उड़िया संस्कृति से जुड़े विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होगा। इसके पश्चात 16 जुलाई को वापसी यात्रा यानी कि बहुड़ा यात्रा आयोजित कर भगवान वापस अपने मंदिर पहुंचेंगे। इस बीच भगवान कई लीलाएं भी करेंगे। बिलासपुर में रथ यात्रा की तैयारी पूरी कर ली गई है। इसके लिए 16 फीट लंबा, 17 फीट ऊंचा और 12 फीट चौड़ा रथ तैयार किया गया है। इस दिन भक्तों को भगवान जगन्नाथ का महाप्रसाद कनिका बांटा जाएगा, इसके लिए 5 क्विंटल चावल, काजू किशमिश, लौंग , इलायची चीनी हल्दी आदि से कनिका का का महाप्रसाद तैयार किया गया है।

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