गुरुवार ज्येष्ठ मास की अमावस्या पर न्याय के देवता शनि देव की जयंती मनाई गई। इस अवसर पर अंचल के सभी शनि मंदिरों में सुबह से लेकर रात तक उपासकों की भीड़ लगी रही।

गुरुवार को शशि राजयोग, सर्वार्थ सिद्धि योग के बीच शनि जयंती मनाई गई ।ज्योतिष शास्त्र में शनि देव को क्रूर ग्रह माना जाता है लेकिन इसी के साथ वे न्याय के देवता और कर्म के फल दाता भी है, इसलिए मान्यता है कि शनि जयंती पर शनि देव की पूजा अर्चना और तेल अभिषेक करने से जातक के सभी प्रकार के कष्टों का निवारण होता है, साथ ही नौकरी में तरक्की, बंद भाग्य के द्वारा भी खुल जाते हैं। सूर्य देव के सबसे बड़े पुत्र शनि देव, छाया पुत्र है लेकिन उनका अपने पिता सूर्य देव के साथ शत्रुता है। महाबली रावण ने उन्हें लंका में कैद कर लिया था, जहां लंका दहन के समय हनुमान जी ने उन्हें कैद से मुक्त कराया। कैद में रहने के कारण उनके पूरे शरीर में पीड़ा हो रही थी। सरसों तेल से की गई मालिश से उनकी पीड़ा कम हुई , इसीलिए भक्त शनिदेव और शनि देव और शनि शिलाओं पर तेल अर्पित करते हैं । साथ ही उन्हें काले और नीले वस्तु अत्यंत प्रिय है। शनि जयंती पर शनि मंदिरों में उमड़े भक्तों ने शनिदेव को तिल, उड़द, नीले फूल, चना लोहा, काले वस्त्र आदि अर्पित करते हुए उनका तेल अभिषेक किया। साथ ही दीपदान और आरती भी की गई । इस अवसर पर कई स्थानों पर भंडारे का भी आयोजन किया गया। राजकिशोर नगर स्थित शनि धाम में भक्त ने एक किलो चांदी का छत्र प्रदान किया। यहां होने वाले विशेष पूजा में 50 से अधिक यजमान सम्मिलित हुए।

बिलासपुर में अलग-अलग स्थान पर मौजूद शनि मंदिरों में दिनभर भक्तों की कतार लगी रही। हरदेव लाल मंदिर, तिफरा काली मंदिर, कुदुदंड काली मंदिर, भैरव बाबा मंदिर पुराना, बस स्टैंड हनुमान मंदिर , सिम्स काली मंदिर आदि स्थानों पर भक्तों ने शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए उनकी विधिवत पूजा अर्चना की।

मान्यता है कि शनि जयंती पर शनि देव की विधिवत पूजा अर्चना से शनिदेव प्रसन्न होते हैं और साढ़ेसाती एवं ढैय्या के कष्टों से मुक्ति मिलती है। ज्योतिष शास्त्र में शनि ग्रह शनैह अर्थात धीमे चलने वाले ग्रह है, जो अपना एक चक्र साढे सात वर्षों में पूरा करते हैं। वे जिस घर में होते हैं उससे आगे और पीछे के घर को भी प्रभावित करते हैं। शनि देवता क्रोधित हो जाए तो फिर जातक को अपार कष्टों का सामना करना पड़ता है, वैसे तो शनिवार को उनकी पूजा उपासना से भी वे प्रसन्न होते हैं लेकिन शनि जयंती पर की गई पूजा उपासना से विशेष फल प्राप्त होती है। इस दिन शनि देव के साथ बजरंगबली की पूजा अर्चना की भी परंपरा है, क्योंकि शनि देव ने वरदान दिया था कि जो भी बजरंगबली को प्रसन्न करेंगे उन पर शनिदेव कभी कुपित नहीं होंगे। शनि जयंती पर सभी शनि मंदिरों में दिन भर चहल-पहल नजर आई।

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