बिलासपुर। छत्तीसगढ़ शासन की आदिवासी लोककला अकादमी ने पं द्वारिका प्रसाद तिवारी की स्मृति में संवाद कार्यक्रम का आयोजन गुरुवार 28 सितंबर की शाम उसलापुर में किया गया। अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार नंदकिशोर तिवारी ने की। शुरुआत में संस्कृति विभाग के अधिकारी सतीश कश्यप ने अतिथियों का स्वागत किया। कवि विजय कुमार तिवारी ने कार्यक्रम की रूपरेखा प्रस्तुत करते हुए पं द्वारिका प्रसाद तिवारी विप्र के योगदान को रेखांकित किया।
इस दौरान भिलाई के कल्याण स्नातकोत्तर महाविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ सुधीर शर्मा ने कहा कि छत्तीसगढ़ के लोकगीतों में जीवन दर्शन, परंपरा, नारी विमर्श और आज के जीवन की चुनौतियां का समाधान है। लोकगीतों और संस्कृति के सहारे इस राज्य का निर्माण हुआ है। हबीब तनवीर, रामचंद्र देशमुख, तीजन बाई, देवदास बंजारे जैसे कलाकारों ने छत्तीसगढ़ी संस्कृति को दुनिया में पहुंचाया है। आज यही हमारी अस्मिता है। बाजार, राजनीति और प्रशासन को संस्कृति प्रभावित कर रही है। इंदिरा संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़ के प्रोफेसर डॉ राजन यादव ने कहा कि विप्र जी ने लोक छंदों का द्वार खोला और उसके बाद के कवियों ने इस परंपरा को आगे बढ़ाया। आजादी के बाद छत्तीसगढ़ में भी व्यवस्था को लेकर असंतोष था। कवियों ने इसे आवाज दी। अनेक उदाहरण और प्रसंगों से डा यादव ने साबित किया कि लोक गीतों की परंपरा ने समूचे छत्तीसगढ़ी काव्य को प्रभावित किया।
अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ कवि नंदकिशोर तिवारी ने भोजली गीतों के भीतर समाई परंपराओं का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि आकाश से गिरने वाली पानी की हर बूंद गंगा की तरह है। ददरिया उन्मुक्त यौवन का उदाहरण है। हमारे प्रबंध काव्य नारी के विविध रूपों को दिखलाते हैं।
कार्यक्रम में केशव शुक्ल, अजय शुक्ला, सुनीता तिवारी, महेश कुमार शर्मा, उषा तिवारी, पूर्णिमा तिवारी और बुधराम यादव सहित अनेक कवि और लेखक उपस्थित थे। संवाद की परिकल्पना अकादमी के अध्यक्ष नवल शुक्ल ने की है। अंत में आभार व्यक्त सतीश कश्यप ने किया। कार्यक्रम का संचालन हरवंश शुक्ल ने किया।